आग लगी संसार में ।
सब कोई तपन सहे ।।
जो माने गुरु वचन को ।
ऊंचे देश चढ़े (१)
चढ़े जो ऊँचे देश को ।
कर्म भरम सब त्याग ।।
शब्द सुने निज भवन में ।
चरनन में रहे लाग (२)
शब्द शब्द पौड़ी चढे ।
निरखे जाय सत नूर ।।
राधास्वामी चरन के ।
दरशन करे हुज़ूर (३)
महा प्रेम आनंद का ।
वहि है निज भंडार ।।
जो पहुँचे वहाँ दया से ।
उसी का होय उद्धार (४)
और सकल परपंच है ।
भौजल पार न जाय ।।
चौरासी के घेर में ।
फिर फिर भटका खाय (५)
याते सब जिव समझ कर।
पकड़ो सतगुरु बाँह ।।
जनम जनम नहिं सहोगे ।
काल करम की दाँह (६)
राधास्वामी सरन लो ।
गावो राधास्वामी नाम ।।
सुरत शब्द अभ्यास कर ।
चढ़ पहुंचो निज धाम (७)
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