श्रद्धांजलि/ भारत यायावर की साधना सदा प्रेरणा देती रहेगी
प्रख्यात साहित्यकार, कवि, आलोचक, समीक्षक व संपादक भारत यायावर की साधना सदा हिंदीसेवियों को प्रेरणा देती रहेगी । किसी ने कल्पना भी ना की थी कि इस तरह एकाएक भारत यायावर इस दुनिया से चले जाएंगे । उनका संपूर्ण जीवन हिंदी की सेवा में बीता था। सच्चे अर्थों में वे हिंदी के एक समर्पित साधक थे । इस तरह के साधक का प्रादुर्भाव बर्षों बाद हो पाता है । उनका जाना हिंदी जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है । भारत यायावर का व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों में हिंदी ही समाहित था । हिंदी ही उनका जीवन था । उनके पास हिंदी के अलावा और कुछ नहीं था । वे हिंदी के विस्तार को ही अपने जीवन का विस्तार मानते थे। उनका हर धड़कन हिंदी के लिए ही धड़कता था । वे मृत्यु से पूर्व तक हिंदी की ही साधना में रत थे । उन्होंने हिंदी की साधना में ही अपने देह का त्याग किया था ।
मृत्यु से लगभग छः घंटे पूर्व भारत यायावर का फोन आया । उनसे लगभग पन्द्रह मिनटों तक बातचीत भी हुई । इस बातचीत में कथाकार रतन वर्मा भी शामिल रहे । फोन पर भारत यायावर ने कहा, 'मैं अभी ठीक महसूस कर रहा हूं । एक दिन पूर्व मेरी सांस उखड़ गई थी । बेटा प्रमथ्यू ने होम्योपैथिक की दवा दी, जिससे मैं अभी अच्छा फील कर रहा हूं । मैं इतना जल्दी मरने वाला नहीं हूं । मुझे आगे और भी कई काम करने हैं । राधाकृष्ण की रचनावाली का काम लगभग पूरा हो गया है। 'रेणु एक जीवनी' पुस्तक आ गई है। आगे दूसरे खंड पर काम कर रहा हूं । तबीयत खराब रहने के कारण काम की गति धीमी हो गई है । सभी कामों को धीरे धीरे कर आगे बढ़ा रहा हूं । आप सब भी निरंतर लिखते रहें'।
उक्त बातचीत के बाद मैं और रतन वर्मा, भारत यायावर के स्वास्थ्य पर चर्चा किया । इस बातचीत के लगभग पन्द्रह घंटे पूर्व भारत यायावर ने अपने फेसबुक पोस्ट पर दर्ज किया था,.. 'मैं बीमार हूं । दर्द से शरीर टूट रहा है।' इस पोस्ट को पढ़कर रतन वर्मा जी ने मुझे फोन किया और यायावर जी का हाल जानना चाहा । वे बहुत चिंतित हो रहे थे कि भारत यायावर को क्या हो गया है ? मैं उसी समय भारत यायावर को फोन लगाया । कई बार फोन लगाने के बावजूद भी उन्होंने फोन नहीं उठाया । मैं समझा गया कि उनकी तबीयत जरूर बिगड़ गई होगी । मैं मन बना लिया कि सुबह उनसे मुलाकात कर हाल-चाल लूंगा । इसी निमित्त मैं सुबह झील से टहल कर रतन वर्मा के यहां पहुंचा। मुझे देखते ही रतन वर्मा ने भारत यायावर का हालचाल पूछा । मैंने उनसे कहा कि भारत यायावर की तबीयत खराब है। इसके बाद मैंने पुनः भारत यायावर को दो बार कॉल लगाया । घंटी बजती रही,.. पर वे कॉल नहीं उठाए । इसके बाद हम दोनों भारत यायावर को देखने के लिए जाते । इसी बीच उनका फोन आ गया और उनसे लंबी बातचीत हुई । भारत यायावर से हम दोनों की बातचीत होने के बाद हम दोनों के चेहरे पर खुशी आ गई । रतन वर्मा, भारत यायावर के स्वास्थ्य का समाचार सुनकर बेहद खुश हुए । उक्त बातचीत के लगभग छःघंटे बाद रतन वर्मा जी का फोन आया । उन्होंने कहा कि भारत यायावर के फेसबुक पोस्ट पर यह दर्ज है,.. 'भारत यायावर' मेरे पिताजी अब इस दुनिया में नहीं रहे'।' यह सुनकर मैं स्तब्ध रह गया । भारत यायावर से स्वास्थ्य पर छः घंटे पूर्व ही रतन वर्मा और मुझसे बातचीत हुई । रतन वर्मा ने मुझसे यह जानना चाहा कि फेसबुक में दर्ज यह बात सच है या झूठ ? फिर मैंने फोन काट कर भारत यायावर का फेसबुक पोस्ट देखा । फेसबुक में दर्ज बात को सही पाया । यह खबर मुझे अंदर से बेचैन कर दिया । मैं बेहद चिंतित हो गया । यह समाचार मुझे अंदर से हिला दिया।
अब उनकी एक एक बातें याद आने लगी । उनका नियमित मेरे घर और व्यवसायिक प्रतिष्ठान पर आना । धंटो साथ बैठना । हम दोनों का साथ बैठकर घंटों साहित्य पर चर्चा करना । वे एक साहित्यकार के साथ विविध विषयों के जानकार थे । उनका हिंदी के अलावा विज्ञान, गणित, अंग्रेजी आदि विषयों पर विराट अध्ययन था । वे हिंदी के साहित्यकार जरूर थे, लेकिन हिंदी के अलावा बांग्ला साहित्य, कन्नड़ साहित्य, पंजाबी साहित्य, अंग्रेजी साहित्य आदि विविध प्रांतीय भाषाओं में क्या कुछ लिखा जा रहा है ? सब पर अपनी नजर रखते थे।
उनके निधन की खबर सुनकर हजारीबाग के लगभग तमाम साहित्यकार उनके पार्थिव शरीर का दर्शन करने के लिए पहुंचे । रतन वर्मा , सुबोध सिंह शिवगीत, विजय संदेश सहित कई साहित्यकारों को विश्वास ही नहीं हो पा रहा था कि इस तरह भारत यायावर जी का जाना होगा । सबकी आंखें नम थी । भारत यायावर के घर का माहौल पूरी तरह गमगीन था । भारत यायावर हमेशा हमेशा के लिए चिर निंद्रा में सोए हुए थे । अगरबत्ती धू धू कर जल रही थी । उनका बड़ा बेटा प्रमथ्यू ने कहा,.. 'पापा इससे भी कहीं ज्यादा बीमार पड़े , तब उन्हें कुछ भी नहीं हुआ। आज थोड़ी सी बीमारी में ही हमेशा हमेशा के लिए हम लोगोंचल गए '। प्रमथ्यू की यह बात सुनकर सबकी आंखें भर आई ।
बाईस दिन पूर्व ही भारत यायावर विश्वविद्यालय की सेवा से सेवा निवृत्त हुए थे । सेवा निवृत्ति के पूर्व उन्होंने मुझसे कहा था,.. 'सेवा निवृत्ति के बाद बेटा के मुद्रणालय के पीछे एक ऑफिस बनाऊंगा । एक नया कंप्यूटर खरीदूंगा और जमकर काम करूंगा । वहीं पर हिंदी पर बातचीत होगी । इन गोष्ठियों के माध्यम से नए रचनाकारों को सामने लाना है'।
भारत यायावर की अब तक साठ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । इसके बावजूद उनके मन मस्तिष्क में कुछ और भी नया रचने की उत्कंठा बनी रहती थी। उनकी उत्कंठा देखकर लगता कि भारत यायावर का जन्म साहित्य कर्म के लिए ही हुआ । उनकी हिंदी की साधना गजब की साधना रही ।
भारत यायावर बहुत ही संवेदनशील व्यक्ति रहे । किसी के भी दुख - सुख में हमेशा सहयोगी रहे । मैं महसूस किया हूं कि अगर पांच - छः दिन उनसे बातचीत नहीं हो पाई तो वे तुरंत फोन लगाकर हालचाल लिया करते थे। यह बात सिर्फ मेरे साथ ही लागू नहीं होती बल्कि उनसे मिलने जुलने वाले हर लोगों पर लागू थी । यह मेरा सौभाग्य है कि भारत यायावर जैसे शख्सियत से मुझे पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ । जब मैं सातवां क्लास में पढ़ रहा था, भारत यायावर कॉलेज के विद्यार्थी थे। वे घर आकर मुझे और मेरे छोटे भाई राजकुमार को पढ़ाया करते थे । तब से लेकर अब तक वे एक शिक्षक रूप में हम चारों भाइयों का मार्ग प्रशस्त करते रहे। हम चारों भाई उनका बहुत ही आदर किया करते थे । चारों भाइयों की शादी हो जाने के बाद हम भाइयों की पत्नियां भी उनका बहुत सम्मान करती । चारो पत्नियां भी भारत यायावर को अपना गुरु मानती । मैं , भारत यायावर को शिक्षक के साथ अपना गुरु भी मानता । मेरा जीवन भी भीषण संघर्षों से गुजरता रहा है । जब भी मुझे सलाह की जरूरत पड़ी, उन्होंने समय-समय पर हमेशा मेरा मार्ग प्रशस्त किया । फलत: आज हमारे दोनों बच्चे अच्छी नौकरी में है। दोनों बेटियों की शादी घरों में हो गई । हमारे सभी भाइयों के बेटे अच्छी नौकरी और अच्छे संस्थानों में पढ़ रहे हैं । हमारे परिवार के विकास में भारत यायावर के अवदान को कभी भुलाया जा नहीं सकता।
हमारे घर में उनका बड़ा सम्मान रहा । वे हमारे परिवार के एक सदस्य के समान बन गए थे । उनका हमारे परिवार से सदैव मिलना जुलना होता रहता था । हमारे परिवार के किसी सदस्य की तबीयत खराब होने पर वे तुरंत कुछ ना कुछ चिकित्सीय परामर्श जरूर दे दिया करते थे । उनके इस चिकित्सीय परामर्श से तबीयत भी जल्द ठीक हो जाती थी । उन्हें एलोपैथ, आयुर्वेद और होम्योपैथी का ज्ञान था ।
जब मैं कोरोना से ग्रसित हुआ ,तब उनकी सलाह ने मुझे जल्द ही स्वस्थ कर दिया । पिछले दिनों मेरी पत्नी की रीढ़ की हड्डी में चोट आ गई थी। तब उन्होंने होम्योपैथिक की एक दवा बताई थी । यह दवा रामबाण की तरह काम की ।
वे मूलत: एक कवि थे । उनकी कविताएं मर्म को छूती नजर आती हैं । साथ ही लोगों को संदेश भी देती है। प्रख्यात कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु एवं महावीर प्रसाद द्विवेदी की रचनावली के निर्माण में उन्होंने अपनी कविता की बलि चढ़ा दी । कवि भारत यायावर अपने आप में एक संस्था बन गए थे । जिनसे प्रेरणा पाकर देश भर में हजारों की संख्या में हिंदी साहित्य सेवी रचना रत रहे। वे निरंतर हिंदी साहित्य पर बातचीत किया करते थे। वे कभी भी किसी विचारधारा की धारा में नहीं बहते थे । बल्कि उनका विचार लोकहितार्थ रहा । उन्हें ईश्वर पर गहरी आस्था थी। वे दिखावे के कर्मकांड से सदा दूर रहते थे। उनकी साधना कबीर की साधना की ही तरह थी । साहित्य का कर्म ही उनकी ईश्वरीय उपासना थी। इस संदर्भ में भारत यायावर ने कहा,,... मैं साहित्य कर्म को अपनी उपासना मानता हूं । मुझे साहित्य रचने में ही अपने इष्ट देव का दर्शन होता है। मैं चाहता हूं कि साहित्य कर्म करते हुए ही मेरा दम निकले'। भारत जी अब इस दुनिया में नहीं रहे। उन्होंने अपने जीवन काल में जो रचना की सभी महत्वपूर्ण एवं कालजई रचनाएं हैं। उनकी रचनाएं सदा लोगों को प्रेरणा देती रहेंगी।
विजय केसरी,
( कथाकार / स्तंभकार )
पंच मंदिर चौक, हजारीबाग - 825 301,
मोबाइल नंबर : 92347 99550.
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