**राधास्वामी!
आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला पहला पाठ:-
मैं गुरु प्यारे के चरनों की दासी ॥ टेक ॥ नित उठ दरशन करूँ उमँग से ।
हार चढ़ाऊँ अपने गुरु सुख रासी ॥१॥ मत्था टेक लेउँ परशादी ।
करम भरम सब होते नाशी ॥२॥
प्रीति बढ़त गुरु चरनन निस दिन ।
शब्द जग से रहती सहज उदासी ॥३॥
शब्द कमाई करूँ प्रेम से ।
मगन होय रहूँ नित गुरु पासी ॥४॥
राधास्वामी मेहर से काज बनाओ ।
दीजे मोहि निज चरन बिलासी ॥५।।
(प्रेमबानी-शब्द-पहला-प्रेम तरंग-
पृ.सं.195) करनाल ब्राँच(हरियाणा)॥**
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