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राधास्वामी नाम व भेद के प्रकट कर्ता परमपुरुष समद हुज़ूर स्वमीजी महाराज की भूमिका एक पिता के समान है, जिन्होंने सन्तमत के सिद्धांतों को प्रतिपादित किया और निश्चय को दृढ़ कराया।
आपके गुरुमुख शिष्य व राधास्वामी मत के जारी कर्ता समद हुज़ूर महाराज की भूमिका एक माता के समान रही। जिस प्रकार माता बच्चों के हर लाढ़ तान उल्हाना को सहते हुए उन्हें प्रेम और ममता से संभालते हुए , उनमें अपने कुल-वंश के संस्कारों को दृढ़ कराते हुए उनका पालन करती है, सो हुजूर महाराज की भूमिका भी सतसंग में एक माता के समान ही रही।
महाराज साहब का पक्ष लाढ़ प्यार से बढ़ते हुए सतसंग रूपी बालक को अनुशासन में रख कर एक उचित दिशा में आगे बढ़ाने का रहा है।
हुज़ूर महाराज ने भी फरमाया की,
'सतसंग करत बहुत दिन बीते,
अब तो छोड़ पुरानी बात।'
और यह कि, "राधास्वामी मत दुनियां का आला दर्ज़े का विज्ञान है।"
सो पूरनधनी समद महाराज साहब की भूमिका एक सख्त उस्ताद की रही, जिन्होंने राधास्वामी मत को अनुशासन में रह कर एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझाते हुए उसके तकनीकी पहलुओं को दुनियां के सामने रक्खा, और फरमाया की, जब दुनिया का बौद्धिक व तार्किक स्तर इस योग्य हो जाएगा कि राधास्वामी मत के गहन गंभीर सैद्धांतिक और तकनीकी पक्षों को वैज्ञानिक दृष्टि से समझा व समझाया जा सके, तब 'सन्तमत विश्वविद्यालय' की स्थापना की जाएगी। समद गुरु महाराज साहब द्वारा लिखित पोथी 'डिस्कोरसिस आन राधास्वामी फेथ' राधास्वामी मत के इसी वैज्ञानिक व तकनीकी पक्ष को प्रतिपादित करती है।
राधास्वामी सदा सहाय
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राधास्वामी हेरिटेज
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