Wednesday, October 22, 2014

छठ पूजा का पौराणिक इतिहास है






अनिल बेताब,

प्रस्तुति-- ज्ञानेश भारद्वाज

हमारे देश में कई पर्व,त्योहार ऐसे हैं,जो हमारी संस्कृति से जुड़े हैं। छठ महोत्सव भी ऐसा ही पर्व है। पूर्वाचल में इस पर्व का सर्वाधिक महत्व है, लेकिन अब स्थानीय लोग भी छठ महोत्सव में बढ़कर हिस्सा लेने लगे हैं। एक व दो नवंबर को छठ पूजा है। छठ पूजा का प्राचीन इतिहास है। पुराणों से इस तथ्य की पुष्टि होती है कि भगवान कृष्ण के समय भी यह पूजा प्रचलित थी। पूजा की पौराणिक व ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को जानने के लिए विद्वानों से बातचीत की गई तो कई बातें सामने आई।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी बड़ा महत्व है छठ का
रेजीडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन, भाग तीन, गुलमोहर रेजीडेंसी के अध्यक्ष डा.पीके झा कहते हैं कि छठ का अपना इतिहास है। कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की षष्ठी को सूर्य व्रत करने का विधान है। इस पर्व का अथर्ववेद में भी उल्लेख है। वैसे छठ पूजा का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी बड़ा महत्व है। त्वचा पर जो सफेद धब्बे होते हैं। उगते व डूबते सूरज को जब अ‌र्घ्य दिया जाता है तो उस समय सूरज की किरणें शरीर पर पड़ती हैं, तो इससे त्वचा के धब्बे भी ठीक हो जाते हैं।
पुत्र प्राप्ति के लिए होती है छठ मइया की पूजा
सेक्टर-छह के निजी कंपनी के महाप्रबंधक तथा मिथिला नवयुवक संघ के पूर्व अध्यक्ष तथा सेक्टर आठ निवासी राजेश कुमार झा ने बताया कि छठ मइया की पूजा महिला व पुरुष कोई भी कर सकता है। पुत्र प्राप्ति के लिए छठ मइया की पूजा की जाती है। राजेश झा ने बताया कि ये पूजा वर्ग विशेष के लोगों तक सीमित नहीं है। समाज के हर वर्ग के लोग छठ मइया की पूजा करते हैं।
राजा देवव्रत से जुड़ा है छठ का इतिहास
सेक्टर-22 प्राचीन हनुमान मंदिर कमेटी के अध्यक्ष गंगेश तिवारी कहते हैं कि भगवत पुराण के मुताबिक स्वयंभू मुनि के पुत्र देवव्रत थे, जो राजा थे। इनके विवाह के 12बरस बाद भी संतान नहीं हुई। देवव्रत ने पुत्रयष्टि यज्ञ किया तो उन्हें पुत्र पैदा हुआ, लेकिन वो भी मृत। पुत्र को जन्म देने के बाद रानी बेहोश हो गई। राजा मृत पुत्र को गोद में लेकर श्मशान पहुंचे, पुत्र को सीने से लगाकर रोने लगे। इतने में देवी प्रकट हुई। देवी ने कहा कि मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री हूं। शिव-गौरी के पुत्र कार्तिकेय से ब्याही हूं। प्रकृति के छठे अंश से मेरी उत्पत्ति हुई है। मुझे षष्ठी देवी भी कहा जाता है। देवी ने मृत पुत्र को जीवित कर दिया। ये घटना कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को घटित हुई थी। उस घटना के बाद राजा देवव्रत तथा उनके अनुयायियों ने व्रत रखना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे अन्य लोगों ने भी इस परंपरा को कायम रखा, जो आज भी जारी है।
मनोकामना पूर्ण करती हैं छठ मइया
मिथिला नवयुवक संघ के अध्यक्ष आरसी चौधरी कहते हैं कि मइया सभी की मनोकामना पूरी करती हैं। पहले साल में छठ पूजा के दौरान जिन लोगों की मनोकामना पूरी हो जाती है, वे अगले साल ढोल-नगाड़ों के साथ छठ पूजा करते हैं।
तीन दिन व्रत का विधान है
भोजपुरी-अवधी समाज के अध्यक्ष शिवपूजन दूबे कहते हैं कि छठ पूजा के दौरान तीन दिन व्रत रखने का विधान है। व्रत रखने से आत्मिक बल भी बढ़ता है। इस पर्व से सांप्रदायिक सौहार्द भी बढ़ता है। जब हर वर्ग के लोग मिलकर छठ मइया की पूजा करते हैं तो अलग ही नजारा होता है।

प्रस्तुति-- किशोर प्रियदर्शी, धीरज पांडेय

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