Wednesday, October 29, 2014

माता सीता ने भी रखा था छठ व्रत


 



प्रस्तुति-- धीरज पांडेय  / ज्ञानेश पांडेय

दीपावली को पर्वों की माला माना जाता है जो कुल पांच दिन चलता है लेकिन पर्वों का यह माहौल सिर्फ भैयादूज तक ही नहीं थमता बल्कि यह छठ पर्व (Chhath Festival) तक चलता है. छठ पर्व (Chhath Festival) भी सिर्फ एक पर्व नहीं बल्कि महापर्व है जो कुल चार दिन तक चलता है. नहाय खाय से लेकर उगते हुए भगवान भास्कर को अर्घ्य देने तक चलने वाला यह पर्व बिहार और यूपी का एक बेहद अहम पर्व है जो आज पूरे देश में समान हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है.

Chhath PujaChhath Puja Story: सीता जी ने भी रखा था छठ व्रत
माना जाता है कि छठ पर्व (Chhath Festival) बहुत ही पुराना है. इसका वर्णन रामायण काल से लेकर महाभारत काल तक में होता है. किंवदंति के अनुसार ऐतिहासिक नगरी मुंगेर के सीता चरण में कभी मां सीता ने छह दिनों तक रह कर छठ पूजा की थी. पौराणिक कथाओं के अनुसार 14 वर्ष वनवास के बाद जब भगवान राम अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया. इसके लिए मुग्दल ऋषि को आमंत्रण दिया गया था, लेकिन मुग्दल ऋषि ने भगवान राम एवं सीता को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया. ऋषि की आज्ञा पर भगवान राम एवं सीता माता स्वयं यहां आए और इसके पूजा-पाठ के बारे में बताया गया.

मुग्दल ऋषि ने मां सीता को गंगा छिड़क कर पवित्र किया एवं कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया. यहीं रह कर माता सीता ने छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी.


छठ पूजा के इतिहास की ओर दृष्टि डालें तो इसका प्रारंभ महाभारत काल में कुंती द्वारा सूर्य की आराधना व पुत्र कर्ण के जन्म के समय से माना जाता है.

Worship-of-Chhath-Puja-2010-300x216Chhath Puja 2012: छठ महापर्व 2012
चार दिन तक चलने वाला यह त्यौहार साल 2012 में 17 नवंबर को कार्तिक शुक्ल पक्ष चौथी के नहाए-खाए से शुरू होगा जिसमें पंचमी यानि 18 नवंबर को खरना होगा और 19 नवंबर को सूर्य षष्ठी को महाव्रत यानी छठ पूजा के लिए सूर्य भगवान के डूबते स्वरुप को अर्घ्य दिया जाएगा. सप्तमी के दिन उगते हुए सूर्य भगवान को अर्घ्य देने के साथ ही इस पर्व का अंत होता है. 20 नवंबर तक चलने वाले इस पर्व में भारत की एक अलग ही झलक देखने को मिलती है जो दर्शाती है कि आज भी पर्व किस तरह हमारी संस्कृति के संवाहक हैं.

What is Chhath Puja : छठ क्यूं है महापर्व
छ्ठ को महापर्व इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि सूर्य ही एकमात्र प्रत्यक्ष देवता हैं और छठ पूजा का वर्णन पुराणों में भी मिलता है. अथर्ववेद में छठ पर्व का उल्लेख है जो इसकी महानता और प्राचीनता को दर्शाता है. यह एकमात्र पर्व है जिसमें उदयमान सूर्य के साथ-साथ अस्ताचलगामी सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है. यह पर्व हमें यह संदेश देता है कि जीवन में हमें सिर्फ उन्हें ही सम्मान नहीं देना चाहिए जो आगे बढ़ते हैं बल्कि समय आने पर उनका भी साथ देना चाहिए जो हमसे पीछे छूट गए हैं या जिनका महत्व कम हो गया हो.

Chhath Puja Process in Hindi: कैसे रखा जाता है व्रत
यह पर्व चार दिनों का है. व्रती पहले दिन सेंधा नमक और घी से बनी कद्दू की सब्जी और अरवा चावल प्रसाद के रूप में खाते हैं. अगले दिन से उपवास आरंभ होता है. इस दिन को खरना कहते हैं. रात में खीर बनती है. व्रतधारी रात में यह प्रसाद लेते हैं. इस पर्व में पवित्रता का ध्यान रखा जाता है. इस दौरान लहसुन, प्याज खाना वर्जित है. जिन घरों में यह पूजा होती है, वहां भक्तिगीत गाए जाते हैं.

छठ पर्व के पहले दिन को खाए नहाय खाय कहा जाता है यानि लोग उस दिन खा लेते हैं और उसके बाद दो दिन का व्रत रखते हैं जिसमें आखिरी दिन निर्जला व्रत होता है. पर्व के पहले दिन महिलाएं स्नानादि करने के बाद चावल, लौकी और चने की दाल का भोजन करती हैं और देवकरी में पूजा का सारा सामान रख कर दूसरे दिन आने वाले व्रत की तैयारी करती हैं.


छठ पर्व पर दूसरे दिन यानि खरना पर पूरे दिन का व्रत रखा जाता है और शाम को गन्ने के रस की बखीर (कुछ जगह लोग गुड़ से खीर बनाते हैं वह भी बखीर ही मानी जाती है) बनाकर देवकरी में पांच जगह कोशा( मिट्टी के बर्तन) में बखीर रखकर उसी से हवन किया जाता है. बाद में प्रसाद के रूप में बखीर का ही भोजन किया जाता है व सगे संबंधियों में इसे बांटा जाता है. इस दिन का प्रसाद यानि खीर और रोटी बेहद स्वादिष्ट और सेहतमंद होता है.

षष्ठी यानि बड़का छठ के दिन सुबह से ही नदी या तालाबों के घाटों को सजाने-संवारने का काम शुरू हो जाता है. केले के थम्ब, आम के पल्लव, अशोक के पत्ते को मूंज की रस्सी के साथ बांधकर पूरे व्रत स्थल की सजावट करते हैं. व्रत सामग्री में खासकर बांस से बने दऊरा-सुपली, ईख, नारियल, फल-फूल, मूली, पत्ते वाले अदरक, बोरो, सुथनी, केला, आटे से बने ठेकुआ आदि होते हैं जिन्हें एक लकड़ी के डाले में रखा जाता है जिसे लोग दऊरा या ढलिया या बंहगी भी कहते हैं.
Reader’s Blog: छठ का गीत

शाम के अर्घ्य के दिन दोपहर बाद से ही बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग और नौजवान नए वस्त्रों में सुशोभित होकर घाट की ओर प्रस्थान करते हैं. घर के पुरुष सिर पर चढ़ावे वाला दऊरा लेकर आगे-आगे चलते हैं, पीछे-पीछे महिलाएं गीत गाती व्रत स्थल को जाती हैं. वहां पहुंचकर पहले गीली मिट्टी से सिरोपता बनाती हैं. अक्षत-सिंदूर, चंदन, फूल चढ़ाकर वहां एक अर्घ्य रखकर छठी मइया की सांध्य पूजा का शुभारम्भ करती हैं. फिर व्रती नदी में पश्चिम की और मुंह करके खड़े होते हैं और भगवान दिवाकर की आराधना करते हैं.

वैसे तो लोग इस दिन घाट पर अपनी मर्जी और सामर्थ्य से फल ले जाते हैं लेकिन विधिवत रूप से एक सूप में नारियल कपड़े में लिपटा हुआ नारियल,  पांच प्रकार के फल, पूजा का अन्य सामान ही काफी होता है.

शाम को पूजा करने के बाद घर वापस आया जाता है और अगली सुबह की तैयारी की जाती है. अगले दिन सुबह-सुबह सूर्य निकलने से पहले ही घाट पर पहुंचा जाता है और भगवान सूर्य के निकलते ही उन्हें अर्घ्य दिया जाता है. इसके बाद वहीं पर प्रसाद ग्रहण कर व्रत को तोड़ा जाता है और भगवान सूर्य को यह व्रत रखने की क्षमता प्रदान करने के लिए धन्यवाद दिया जाता है.

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