Wednesday, October 29, 2014

छठ पर्व पर मुस्लिम महिलाओं की भूमिका





प्रस्तुति-- धीरज पांडेय / ज्ञानेश पांडेय
पटना: सूर्योपासना का पर्व छठ यहां सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल भी कायम करता है. बिहार की राजधानी में छठ पर्व के लिए व्रती महिलाएं मिट्टी से बने जिस कच्चे चूल्हे पर प्रसाद बनाती हैं, उसे कई मुस्लिम महिलाएं बड़े मनोयोग से बनाती हैं और सफाई-शुद्धता का पूरा ख्याल रखती हैं.


पटना के कई मोहल्लों की मुस्लिम महिलाएं दिवाली से पहले ही छठ पर्व के लिए चूल्हा तैयार करने में जुट जाती हैं. चूल्हे के लिए मिट्टी वे गंगा तट से लाती हैं. उसमें से कंकड़-पत्थर चुनकर निकालती हैं, फिर भूसा और पानी मिलाकर मिट्टी को आटे की तरह गूंथकर उसे चूल्हे का आकार देती हैं और धूप में सुखाती हैं.

गांवों में व्रती महिलाएं तो यह कठिन काम भी खुद कर लेती हैं, लेकिन शहरों में समस्या रहती है कि वे मिट्टी और भूसा कहां से लाएं और बनाने के बाद चूल्हे को सुखाएं कहां. ऐसे में पटना की कुछ मुस्लिम महिलाएं उनका काम आसान कर देती हैं.

पटना के दारोगा राय पथ की ये मुस्लिम महिलाएं सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल बन गई हैं. ये मजहब की बंदिश तोड़ वर्षो से छठ पूजा के लिए चूल्हे बना रही हैं.

पटना के आर ब्लॉक मोहल्ले की मेहरुन्निसां कहती हैं कि चूल्हे बनाने के दौरान पूरी सावधानी बरती जाती है. इस काम में साफ-सफाई का पूरा खयाल रखा जाता है, क्योंकि यह पर्व पूरी तरह श्रद्धा और विश्वास का है.

वह कहती हैं, "कई लोग तो चूल्हे की अच्छी कीमत देकर जाते हैं, लेकिन कई लोग कम कीमत लगाते हैं. बात आस्था से जुड़ी है, इसलिए मैं मोल-जोल नहीं करती. ज्यादा पैसा भी कभी नहीं लेती."

दरोगा राय पथ की नसीमा पिछले 25 वर्षो से छठ पूजा के लिए चूल्हा बनाकर बेचती हैं. वह प्रतिवर्ष 400 से 500 चूल्हे तैयार करती हैं. कहती हैं, "छठ व्रत से मेरे पूरे परिवार की आस्था जुड़ी हुई है. लगभग 35 वर्षो से मेरे परिवार के सदस्य चूल्हा बनाने और बेचने का काम कर रहे हैं. यह एक तरह की सेवा है, कोई मुनाफे का धंधा नहीं."

वह कहती हैं कि चूल्हे बनाने में जितनी मेहनत होती है, उस हिसाब से कमाई नहीं होती, फिर भी श्रद्धाभाव से वह हर साल चूल्हे बनाती हैं.

नसीमा बताती हैं कि चूल्हे के लिए मिट्टी खोजना और उसे सुखाने में काफी परिश्रम होता है. गीली मिट्टी से बने चूल्हों को सुखाने के दौरान परिवार का कोई न कोई सदस्य चूल्हे के पास हमेशा बैठा रहता है, ताकि कोई चूल्हा अशुद्ध न हो जाए यानी कोई बच्चा जूठे हाथ से उसे छू न दे या कोई कुत्ता उसे अपवित्र न कर दे.नसीमा का कहती हैं कि छठ के लिए चूल्हे बनाने में उन्हें आत्मसंतोष मिलता है.

गौरतलब है कि छठ व्रती मिट्टी के चूल्हे पर ही अघ्र्य के लिए प्रसाद तैयार करती हैं और खरना के दिन गुड़खीर या अन्य पकवान भी इसी चूल्हे पर बनाए जाते हैं.।

औरंगाबाद बिहारसे किशोर प्रियदर्शी ने बताया है कि इस जिले में सूर्य उत्सव का माहात्म अधिक है । देव में हर साल चैत और कार्तिक माह में छठ का मेला लगता है।, जिसमें लाखों लोग मनौती पूरा होने के उपरांत ही छठ करने यहां  आते है। देव बाजार से गुजरने के बाद छठ तालाब के समीप करीब एक दर्जन मुस्लिम परिवार छठ व्रतियों के लिए सूप दौरी और अन्य उपयोगी वस्तुओं को बनाते है। यहां आने वाले लाखों  लोग इन मुस्लमानों द्वारा बनाए छठ सामानों का ही उपयोग करते है।



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