Saturday, December 11, 2021

#दिव्य_दाम्पत्य / साक्षी भल्ला

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सर्वश्रेष्ठ सनातन संस्कृति🙏


मनु और शतरूपा ने जब अपनी पुत्री देवहूति का हाथ कर्दम ऋषि के हाथ में देने की इच्छा प्रकट की। तो कर्दम ने कहा-'मैं भोग-विलास के लिये नहीं, परंतु पत्नी के साथ नित्य सत्संग करके आत्मसुख प्राप्त करने के लिये ही विवाह करना चाहता हूँ। मुझे भोगपत्नी नहीं, धर्मपत्नी चाहिये। हमारा सम्बन्ध संसार का उपभोग करने के लिये नहीं, बल्कि नाव और नाविक की तरह संसार-सागर पार करने के लिये होगा। अत: एक पुत्र की प्राप्ति के बाद मैं संन्यास ले लूँगा। क्या आपको स्वीकार्य है?'


मनु-शतरूपा बड़ी उलझन में पड़े, किंतु देवहूति ने तपस्वी की सेवा स्वीकार कर ली और वल्कल वस्त्र पहन लिये।

          

विवाह के बाद दम्पती ने बारह वर्ष तक ब्रह्मचर्य-व्रत का पालन किया और पत्नी ने पति-सेवा के व्रत का निर्वाह किया।

          

सेवा से प्रसन्न होकर कर्दम ने पत्नी की इच्छा को पूर्ण करना चाहा तो पत्नी ने कहा, 'और दूसरी वस्तु क्या माँगूँ ? हाथ पकड़कर लाये हो तो हाथ पकड़कर प्रभु के दरबार में भी पहुँचा दीजिये।'

          

ऐसे दिव्य दाम्पत्य के द्वार पर ही भगवान् कपिल पुत्ररूप में पधारे। विवाह के बारे में कैसी सुन्दर जीवन-दृष्टि है। 🙏

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