Friday, February 4, 2022

शुभ बसंत एवं सतसंग नववर्ष

 🌻🌻राधास्वामी!                                

 05-02-2022-[शुभ बसंत एवं सतसंग नववर्ष तथा परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज के भंडारा के पावन अवसर पर प्रेम प्रचारक का संयुक्त - विशेषांक-फरवरी-2022-अंक-13]:-

【बसन्त-1935】


(परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज )


“आज का दिन सतसंग जमाअत के लिए निहायत मुबारक (पवित्र) है क्योंकि इसी मुतबर्रक (पवित्र) रोज़ सन् 1861 ई० में यानी आज से 74 वर्ष क़ब्ल(पहले) राधास्वामी मत के प्रथम आचार्य हुज़ूर स्वामीजी महाराज ने इसी आगरा शहर में सतसंग आम जारी करने की मौज फरमाई। बअलफ़ाज़ दीगर (दूसरे शब्दों में) आज राधास्वामी सतसंग 74 वें वर्ष में क़दम रखता है। आम इन्सान के लिए 74 वाँ साल बुढ़ापे की अलामत (निशानी) है लेकिन जमाअतों व संस्थाओं के लिए 74 वर्ष 6 माह का अर्सा भी नहीं होता। यही नहीं बल्कि आज से बीस वर्ष पेश्तर यानी सन् 1915 ई० में इसी बसन्त पंचमी के मुबारक रोज़ इसी शहर आगरा बल्कि इसी मुक़ाम पर, जहाँ आप इस वक्त़ बैठे हैं, एक बच्चे का जन्म हुआ जिसका शुभ नाम दयालबाग़ रक्खा गया। पस बसन्त पंचमी का दिन सतसंग जमाअत के लिए निहायत मुबारक है क्योंकि इसी रोज़ सतसंग जमाअत की बुनियाद रक्खी गई और इसी रोज़ सतसंग के सदर मुक़ाम की दाग़बेल डाली गई।”       

(पुनः प्रकाशित प्रे. प्र. 22 जनवरी, 2007)

चलो री सखी मिल आरत गावें। 

ऋतु बसंत आये पुरुष पुराने।।1।।

अलख अगम का भेद सुनावें। 

राधास्वामी नाम धरावें।।2।।

ऐसे समरथ पुरुष अपारा। 

दृष्टि  जोड़  रहूँ  दर्श  अधारा।।6।।

राधास्वामी राधास्वामी नित गुन गाऊँ। चरन सरन पर  हिया उमगाऊँ।।8।।

(सारबचन, ब.1, श.1)

 सारबचन (नज़्म)

(परम पुरुष पूरन धनी हुज़ूर स्वामीजी महाराज)

।। बचन पहला।।

प्रगट होना परम पुरुष पूरन धनी राधास्वामी का संत  सतगुरु  रूप धर कर वास्ते उद्धार जीवों के।

।। संदेश।।

            सुनावना अधिकारी को इस संदेश का कि परम पुरुष पूरन धनी राधास्वामी जीवों को महादुखी और भ्रम में भूला हुआ देख कर आप उनके उद्धार के निमित्त संत सतगुरु रूप धारण करके प्रगट हुए और अति दया करके भेद अपने निज स्थान का और जुक्ति उसके प्राप्ति की सुरत शब्द के मार्ग से उपदेश करते हैं। जीवों को चाहिए कि उनके चरण-कमल में प्रेम प्रीति करें।

           इस मार्ग की कमाई से मन बस में आवेगा और सिवाय इसके दूसरा कोई उपाव मन के निश्चल और निर्मल करके चढ़ाने का आकाश के परे इस कलयुग में निश्चय करके नहीं है। जितने मत संसार में प्रवृत्त हैं उन सबका सिद्धान्त संतों की पहली मंज़िल निहायत दूसरी मंज़िल तक ख़तम हो जाता है। जो सुरत शब्द का अभ्यास विधि-पूर्वक बन आवे तो मन और सुरत निर्मल होकर और शब्द को पकड़ के आकाश के परे, जो घट घट में व्यापक है, चढ़ेंगे और नौ द्वार अथवा पिंडदेश को छोड़ कर ब्रह्मांड यानी त्रिकुटी में पहुँचेंगे और वहाँ से सुरत मन से अलग होकर आगे चलेगी और सुन्न और महासुन्न के बिलास देखती हुई और सत्तलोक और अलखलोक और अगमलोक में दर्शन सत्तपुरुष और अलखपुरुष और अगमपुरुष का करती हुई राधास्वामी के निज देश में प्राप्त होगी। इसी स्थान से आदि में सुरत उतरी थी और त्रिलोकी में आकर काल के जाल में फँस गई थी, सो उसी स्थान पर फिर जा पहुँचेगी। सुरत-शब्द-मार्गी को ये सब स्थान यानी विष्णुलोक और शिवलोक और ब्रह्मलोक और शक्तिलोक और कृष्णलोक और रामलोक और ब्रह्म और पारब्रह्म पद और जैनियों का निर्वाण पद और ईसाइयों का मुक़ाम ख़ुदा और रूहुल्क़ुद्स और मुसलमानों के आलम मलकूत और जबरूत और लाहूत सुन्न के नीचे नीचे रास्ते में पड़ेंगे। यह सब लीला देखती हुई सुरत संतों के प्रताप से अपने निज़ देश को प्राप्त होगी।

(सारबचन नज़्म, ब.1)

【बसंत】:-

परम पुरुष पूरन धनी हुज़ूर स्वामीजी महाराज ने सारबचन में फ़रमाया है:-(136)-अंत में जिसने जा कर बासा किया, वही बसंत है और वही अच्छा बसंत है और उनको ही हमेशा बसंत है जो चढ़ कर, जहाँ सबका अंत है, वहाँ बसे हैं।

(सारबचन नसर, भाग- 2, ब. 136)

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻🌻🌻

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