Friday, February 25, 2022

सहजता / ओशो

 मैंने सुना है, एक महिला अपने पुत्र के साथ बस में बैठी हुई थी। उसने मात्र एक टिकट खरीदा। कंडक्टर ने बच्चे को संबोधित किया, छोटे बच्चे तुम्हारी आयु कितनी है?

मैं चार वर्ष का', लड़के ने उत्तर दिया।


और तुम पांच वर्ष के कब होओगे? कंडक्टर ने पूछा।

बच्चे ने अपनी मां की ओर एक नजर डाली, जो बच्चे की इस बातचीत को मुस्कुरा कर अपनी सहमति दे रही थी, और बोला, जब मैं इस बस से नीचे उतर जाऊंगा।


उस बच्चे को कुछ कहना सिखाया गया है, लेकिन फिर भी वह असली उद्देश्य को नहीं जानता है। उसको टिकट के रुपये बचाने के लिए चार वर्ष कहना सिखाया गया है, लेकिन इसके पीछे उद्देश्य क्या है वह यह नहीं जानता, इसलिए वह इस बात को तोते की तरह दोहरा देता है।


प्रत्येक बच्चा बड़े लोगों की तुलना में मौलिक मन के साथ अधिक लयबद्धता में होता है। बच्चों को खेलते हुए, इधर—उधर दौड़ते हुए देखो, तुम्हें उनका कोई विशिष्ट उद्देश्य नहीं मिलेगा। वे आनंदित हो रहे हैं, और यदि तुम उनसे पूछते हो किसलिए? तो वे अपने कंधे उचका देंगे। उनके लिए बडे लोगों से संवाद कर पाना लगभग असंभव है। बच्चों को यह करीब—करीब नामुमकिन सा महसूस होता है; कोई सेतु नहीं है; क्योंकि बड़े लोग एक बहुत मूर्खतापूर्ण प्रश्न पूछते हैं किसलिए? बड़े लोग एक खास किस्म के अर्थशास्त्रीय मन के. साथ जीते हैं। तुम कुछ कमाने के लिए कुछ करते हो। बच्चे इन सतत उद्देश्यपूर्ण कृत्यों से अभी परिचित नहीं हैं। वे इच्छा की भाषा को नहीं जानते वे खेलपूर्ण होने की भाषा को जानते हैं। जब जीसस कहते हैं, तुम परमात्मा के राज्य में तब तक प्रवेश नहीं कर सकते जब तक कि तुम छोटे बच्चों जैसे नहीं हो जाते, तो यही है उनका अभिप्राय, वे कह रहे हैं कि जब तक कि तुम पुन: बच्चे नहीं बन जाते, जब तक कि तुम उद्देश्य नहीं छोड़ते और खेलपूर्ण नहीं हो जाते...। याद रखो, कार्य कभी किसी को परमात्मा तक नहीं ले गया है। और वे लोग जो परमात्मा की ओर जाने वाले अपने रास्ते पर कार्य कर रहे हैं, बाजार में ही गोल—गोल घेरे में घूमते रहेंगे, वे कभी परमात्मा तक नहीं पहुचेंगे। वह खेलपूर्ण है और तुमको भी खेलपूर्ण होना पड़ेगा। तब अचानक संवाद घटित होगा, अचानक एक संपर्क, एक सेतु बन जाएगा।


खेलपूर्ण ढंग से ध्यान करो, गंभीरतापूर्वक ध्यान मत करो। जब तुम ध्यान—कक्ष में जाते हो तो अपने गंभीर चेहरे वहीं छोड़ दो जहां तुम अपने जूते छोड़ देते हो। ध्यान को एक मजा होने दो। मजा एक बहुत धार्मिक शब्द है; गंभीरता बहुत अधार्मिक शब्द है। यदि तुम मौलिक मन को उपलब्ध करना चाहते हो तो तुमको एक बहुत ही गैर—गंभीर किंतु निष्ठापूर्ण जीवन जीना पड़ेगा, तुमको अपने कार्य को खेल में रूपांतरित करना पड़ेगा; तुम्हें अपने सभी कर्तव्यों को प्रेम में. रूपांतरित करना पड़ेगा। कर्तव्य एक कुरूप शब्द है, निसंदेह यह एक चार अक्षर वाला शब्द है।


कर्तव्य से बच कर रहो। कार्य में और प्रेम अर्पित करो। अपने कार्य को एक नई ऊर्जा में, जिसका तुम आनंद ले सकी, और—और परिवर्तित करो, और अपने जीवन को और अधिक मजे, और अधिक हंसी और कम इच्छा, और कम उद्देश्य वाला हो जाने दो। जितना अधिक तुम उद्देश्यपूर्ण हो उतना ही अधिक तुम एक निश्चित प्रकार के मन से बंध जाओगे। तुमको बंधना ही पड़ेगा, क्योंकि उस उद्देश्य को एक विशिष्ट प्रकार का मन ही पूरा कर सकता है। और यदि तुम सारे मनों का परित्याग करना चाहते हो—और सभी मनों का परित्याग किया जाना है—केवल तब तुम अपने अंतर्तम स्वभाव _ तुम्हारी सहजता को उपलब्ध कर सकते हो। 


ओशो

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