Lord Sri Krishna


एक देही के रूप में भगवान श्रीकृष्ण की जो लीला मथुरा के कारागृह से शुरू हुई थी, उसने सागर के किनारे प्रयास क्षेत्र में विराम लिया। श्रीकृष्ण के प्रत्यक्ष जीवनकाल की अंतिम घटना के बारे में यह कहा जाता है कि वे शाम के समय आराम की मुद्रा में शांत-भाव से एक वृक्ष के नीचे बैठे थे और तभी जरा नामक बहेलिये का तीर उनके पैर में आकर लगा।
और इस लीला के बहाने भगवान अपने धाम गोलोक को वापस चले गये। माना जाता है कि यह लीला द्वापर काल में गुजरात के प्रयास क्षेत्र में अरब सागर के किनारे घटित हुई। वर्तमान में जूनागढ़ जिले के वेरावल कस्बे के बाहर ऐतिहासिक सोमनाथ मंदिर व तीन नदियों के संगम के निकट का यह स्थान कृष्ण-प्रेमियों को अनायास ही रूला देता है। एक देही के रूप में भगवान श्री कृष्ण की जो जीवन-यात्रा मथुरा के कारावास से शुरू हुई, उसने यहां विराम लिया और यहीं से गोलोक चले गये।
यहीं से शुरू हो गई जरा नामक उस बहेलिये की अनंत पीड़ा, जिसने उसे पूरे पांच वर्ष तक धरती के कोने-कोने पर भटकाया। उसके हाथों मरने वाला वो आदमी सिर्फ आदमी ही था, कोई देवता या भगवान नहीं, इस बात के प्रमाण ढूंढने के लिए वह जहां भी गया, वहीं उसे सुनाई दिया कि किसी दुष्ट बहेलिये ने भगवान कृष्ण को मार दिया। पांच वर्ष की असहनीय पीड़ा के बाद उसे अहसास हो गया कि उसने किसी आम-आदमी को नहीं मारा बल्कि मानव की देह धारण करके पृथ्वी पर आए साक्षात भगवान की देह अपने तीर से छीनी है। वापस उसी स्थान पर जाकर ``गोविंद गोविंद'' कहते हुए उस बहेलिये ने समुद्र में समाकर ही अपनी पीड़ा को शांत किया।
जिस स्थान पर जरा ने श्रीकृष्ण को तीर मारा, उसे आज `भालुका तीर्थ' कहा जाता है। वहाँ बने मंदिर में वृक्ष के नीचे लेटे हुए कृष्ण की आदमकद प्रतिमा है। उसके समीप ही हाथ जोड़े जरा खड़ा हुआ है। इन प्रतिमाओं का अनावरण 1967 में तत्कालीन केन्द्राrय मंत्री मोरारजी देसाई ने किया था। कुछ दूरी पर त्रिवेणी-संगम के किनारे श्रीकृष्ण देहोत्सर्ग स्थल है। त्रिवेणी-संगम में कभी कपिला, हिरण्य व लुप्त हो चुकी सरस्वती नदी का संगम होता था। कपिला व हिरण्य का संगम आज भी है।
भगवान कृष्ण के एक बहेलिये के तीर का शिकार होने के पीछे जो धारणाएँ बतायी जाती हैं, उनमें सर्वाधिक प्रचलित धारण यह है कि गांधारी के श्राप से विनाशकाल आने के कारण श्रीकृष्ण यदुवंशियों के साथ प्रयास क्षेत्र में आ गये थे। यदुवंशी अपने साथ अन्न-भंडार भी ले आये थे। कृष्ण ने ब्राह्मणों को अन्नदान देकर यदुवंशियों को मृत्यु का इंतजार करने का आदेश दिया था।
कुछ दिनों बाद महाभारत-युद्ध की चर्चा करते हुए सात्यकि और कृतवर्मा में विवाद हो गया। सात्यकि ने गुस्से में आकर कृतवर्मा का सिर काट दिया। इससे उनमें आपसी युद्ध भड़क उठा और वे समूहों में विभाजित होकर एक-दूसरे का संहार करने लगे। इस लड़ाई में श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न और मित्र सात्यकि समेत सभी यदुवंशी मारे गये थे, केवल बब्रु और दारूक ही बचे रह गये थे। इस संहार के बाद बलराम वनागमन कर गये। क्लांत और खिन्न होकर ही श्रीकृष्ण वृक्ष के नीचे लेटे हुए थे, तभी जरा ने उनके बायें पैर में तीर मारा।
संत लोग यह भी कहते हैं कि प्रभु ने त्रेता में राम के रूप में अवतार लेकर भगवान बलि को छुपकर तीर मारा था। कृष्णावतार के समय भगवान ने उसी बलि को जरा नामक बहेलिया बनाया और अपने लिए वैसी ही मृत्यु चुनी, जैसी बलि को दी थी।
देहोत्सर्ग स्थल पर भगवान कृष्ण के चरण-चिह्न भी बनाये गये हैं। बराबर में ही बलदेव जी की गुफा है। कहते हैं कि श्रीकृष्ण के देह-त्याग देने पर बलराम ने भी नर-रूप त्याग दिया था और यह शेषनाग के रूप में आकर पाताल में प्रवेश कर गये थे। बलदेव जी की गुफा में शेषनाग और बलराम की प्रतिमा है। सन् 1967 में छ प्रतिमाओं का अनावरण किया गया था। बलदेव जी की गुफा से लगा हुआ ही गीता मंदिर है। मंदिर के 18 स्तम्भों पर गीता के 18 अध्याय अंकित हैं। इस मंदिर में श्रीकृष्ण की आदमकद प्रतिमा, बस बोलती हुई प्रतीत होती है। बराबर में ही लक्ष्मी-नारायण मंदिर भी है।