Bhartiya Sanskriti
दुनिया में जितने भी देश हैं, सबकी अपनी-अपनी विशेषताओं के कारण पहचान है। भारत की पहचान उसका अपना वैदिक ज्ञान है। इसी वेद-विज्ञान के कारण भारत और भारतीय-संस्कृति की विश्वभर में श्रेष्ठता के साथ पहचान बनी है। आज का युग विज्ञान और वैज्ञानिकता का युग है। आज पूरे विश्व में भारत के वेद-विज्ञान की वैज्ञानिकता स्थापित हो रही है। भारत इसके प्रत्येक क्षेत्र में व्यावहारिक रूप से लागू करने के विधान-सिद्धान्त की वैज्ञानिकता जानता है। भारत का वैदिक सिद्धान्त `हेयम् दुःखम् अनागतम्' का सिद्धान्त है, जिसमें समस्याएँ उत्पन्न ही नहीं होने पाती हैं। भावातीत ध्यान, त्रिकाल संध्यावंदन, ज्योतिष के अनुसार देवी-देवताओं की पर्व-उपासना, पूजा-अर्चना, वैदिक अनुष्ठान, यज्ञ, ग्रहशांति, वास्तुशांति अनुष्ठान ऐसे ही विधान हैं, जिनके नियमित आयोजन से व्यक्ति और समष्टि में साम्यता आती है, समरसता आती है। सम्पूर्ण क्षेत्र की सामूहिक चेतना में पोषणकारी दैवी सत्ता का सतोगुणी पोषण कायम रहता है। फलस्वरूप कहीं कोई विघ्न-बाधा, विरोध नहीं होता। वैदिक शिक्षा, वैदिक स्वास्थ्य, वैदिक कृषि, वैदिक वास्तु से सर्वत्र स्थायी सुख, शांति और समृद्धि का वातावरण कायम रहता है।
अपना वैदिक धर्म मनुष्य और मनुष्यता को श्रेष्ठ बनाता है। वैदिक धर्म ध्यान से, योग से बना रहता है। ध्यान से, योग से, भक्ति से व्यक्ति समदर्शी, आत्मदर्शी, ब्रह्मदर्शी बनता है, भावातीत ध्यान से चेतना में सर्वज्ञता, सर्वसमर्थता आती है। जो वैदिकता में रहते हैं, वे चेतनावान होते हैं। भारतीय तो स्वभाव से ही चेतनावान होते हैं। जो भारत के इस सिद्धान्त को नहीं जानते, वे भारतीय नहीं हैं। चेतनावान लोग तो बाहर का, भीतर का जानने का सिद्धान्त जानते हैं। इसीलिए भारत अद्वितीय है। यहां की चेतना में सारे विश्व, ब्रह्माण्ड की चेतना को सतोगुणी बनाये रखने का स्वाभाविक गुण है। भारतीयों में अपनी चेतना के भीतर पूरी शांति व पूरी क्रियाशक्ति जगाने की सामर्थ्य है। शांति शिवत्व है और क्रिया विष्णुत्व है। दोनों एक हैं और दोनों भिन्न-भिन्न भी हैं। यह अपनी वेद-विद्या भारत के गांव-गांव में है। कोई सुखी कब होता है, जब उसे शांति मिलती है। शांति कब मिलती है, जब उसे सब कुछ मिल जाता है। सब कुछ कहां मिलता है - आत्मचेतना में, विष्णु की क्रिया-शक्ति में और शिवत्व की शांति में। इसलिए जब भावातीत ध्यान करते हैं तो शिवत्व जागृत होता है, विष्णुत्व जागृत होता है। सम्पूर्ण ज्ञान, सम्पूर्ण क्रिया जागृत होती है।
अपने भारतीय वैदिक ज्ञान से, दैवी आराधना से, दैवी अनुष्ठानों से, त्रिकाल संध्यावंदन से, यज्ञ-अनुष्ठान से, वेदपाठ से, मंत्रजाप से विभिन्न त्योहारों-उत्सवों पर, विभिन्न देवी-देवताओं के लिए निर्धारित दिन पर उनके शक्ति जागरण के विधानों के आयोजन से चेतना में सर्वगुण सम्पन्नता जागृत होती है। भारत के गांव-गांव में यह विद्या प्रचलित है। इसलिए यदि भारत को बनाना है, तो वैदिक-धर्म को अपनाना होगा, वेद के सिद्धान्तों को अपनाना होगा। अपनी भारत की वैदिक ज्ञान-परम्परा के सनातनी मार्ग को अपनाना होगा।