*आज (28-1-22) शाम खेत की छुट्टी के बाद, जब Gracious Huzur ने performance review किया, तो फरमाया - "आप सबने आज बहुत अच्छा काम किया। आपको इसकी बधाई*
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Osho,
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०५ - ०२ - २०२२ (शनिवार)
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आज एक इंटरव्यू था, पर दूसरे शहर जाने के लिए जेब में सिर्फ दस रूपये थे। मुझे कम से कम दो सौ रुपयों की जरूरत थी।
अपने इकलौते इन्टरव्यू वाले कपड़े रात में धो, पड़ोसी की प्रेस माँग के तैयार कर पहन, अपने योग्यताओं की मोटी फाइल बगल में दबाकर, दो बिस्कुट खा के निकला।
लिफ्ट ले, पैदल जैसे तैसे चिलचिलाती धूप में तरबतर। बस ! इस उम्मीद में स्टेंड पर पहुँचा कि शायद कोई पहचान वाला मिल जाए, जिससे सहायता लेकर इन्टरव्यू के स्थान तक पहुँच सकूँ।
काफी देर खड़े रहने के बाद भी कोई नहीं दिखा। मन में घबराहट और मायूसी थी, क्या करूँगा अब कैसे पँहुचूगा ?
पास के मंदिर पर जा पहुंचा, दर्शन कर सीढ़ियों पर बैठा था।
मेरे पास में ही एक फकीर बैठा था, उसके कटोरे में मेरी जेब और बैंक एकाउंट से भी ज्यादा पैसे पड़े थे ! !!
मेरी नजरें और हालात समझ के बोला, "कुछ मदद चाहिए क्या ?" मैं बनावटी मुस्कुराहट के साथ बोला, "आप क्या मदद करोगे ?"
"चाहो तो मेरे पूरे पैसे रख लो।" वो मुस्कुराता बोला। मैं चौंक गया। उसे कैसे पता मेरी जरूरत।
मैनें कहा "क्यों ...?
"शायद आपको जरूरत है" वो गंभीरता से बोला।
हाँ है तो, पर तुम्हारा क्या, तुम तो दिन भर माँग के कमाते हो ?" मैने उस का पक्ष रखते हुए कहा।
वो हँसता हुआ बोला, "मैं नहीं माँगता साहब ! लोग डाल जाते हैं मेरे कटोरे में। पुण्य कमाने के लिए !
मैं तो फकीर हूँ, मुझे इनका कोई मोह नहीं। मुझे सिर्फ भूख लगती है, वो भी एक टाइम। और कुछ दवाइयाँ। बस !
मैं तो खुद ये सारे पैसे मंदिर की पेटी में डाल देता हूँ।" वो सहज था कहते कहते।
मैनें हैरानी से पूछा, "फिर यहाँ बैठते क्यों हो..?"
"जरूरतमंदों की मदद करने।" कहते हुए वो मंद मंद मुस्कुरा रहा था।
मैं उसका मुँह देखता रह गया। उसने दो सौ रुपये मेरे हाथ पर रख दिए और बोला, "जब हो तब लौटा देना।"
मैं उसका शुक्रिया जताता हुआ वहाँ से अपने गंतव्य तक पँहुचा। मेरा इंटरव्यू हुआ और सलेक्शन भी।
मैं खुशी खुशी वापस आया, सोचा उस फकीर को धन्यवाद दे दूँ ।
मैं मंदिर पँहुचा, बाहर सीढ़़ियों पर भीड़ लगी थी, मैं घुस के अंदर पँहुचा, देखा वही फकीर मरा पड़ा था।
मैं भौंचक्का रह गया ! मैने दूसरों से पूछा यह कैसे हुआ ?
पता चला, वो किसी बीमारी से परेशान था। सिर्फ दवाईयों पर जिन्दा था। आज उसके पास दवाइयाँ नहीं थी और न उन्हें खरीदने के पैसे।
मैं अवाक सा उस फकीर को देख रहा था। अपनी दवाईयों के पैसे वो मुझे दे गया था। जिन पैसों पे उसकी जिंदगी का दारोमदार था, उन पैसों से मेरी ज़िंदगी बना दी थी....!
भीड़ में से कोई बोला, अच्छा हुआ मर गया। ये भिखारी भी साले बोझ होते हैं, कोई काम के नहीं....!
मेरी आँखें डबडबा आयी !
वो भिखारी कहाँ था, वो तो मेरे लिए भगवान ही था। नेकी का फरिश्ता। मेरा भगवान।
मित्रों, हममें से कोई नही जानता कि भगवान कौन हैं और कहाँ हैं ? किसने देखा है भगवान को ? बस ! इसी तरह मिल जाते हैं।
और शायद किसी ने सही कहा है फ़कीर की कुटिया में ही भगवान का वास है।
सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।
🙏🙏
5. इस अवसर पर दयालबाग़ उत्पादों की प्रदर्शनी दयालबाग़ में आयोजित नहीं की जाएगी।
6. जो लोग नियमित रूप से दयाल भंडार से भोजन लेते हैं तथा जो सतसंगी/ जिज्ञासु व उनके परिवार के सदस्य दयालबाग़ में भंडारे में शामिल होने के लिए आयेंगे उन्हें छोड़कर दयालबाग़ निवासी व अन्य लोगों को दयाल भंडार से भोजन नहीं दिया जाएगा। दयालबाग़ निवासियों (जो दयाल भंडार से नियमित रूप से भोजन नहीं लेते हैं) को परामर्श दिया जाता है कि वे भंडारे का भोजन अपने अपने घर से बना कर लायें।
7. अनुमति प्राप्त क्षेत्रों के उपदेश-प्राप्त सतसंगी भाई बहन सोमवार, 7 फ़रवरी, 2022 को भेंट देंगे। भेंट की सीमा निम्नवत् रहेगी-
(i) भारत की सतसंग ब्रांचों में रजिस्टर्ड उपदेश प्राप्त सतसंगी अधिकतम 2,000/- रु. तथा न्यूनतम 10/- रु. तथा इसके गुणांक में भेंट दे सकते हैं।
(ii) विदेशों की सतसंग ब्रांचों में रजिस्टर्ड उपदेश प्राप्त सतसंगी (अनुमति प्राप्त क्षेत्र) जो दयालबाग़ आयेंगे वे अधिकतम 5,000/- रु. तथा न्यूनतम 100/-रु. भेंट दे सकते हैं।
(iii) अनुमति प्राप्त क्षेत्रों के सतसंगी जिन्हें दयालबाग़ आने की अनुमति है वे कार्यक्रमानुसार भेंट दे सकते हैं। उन्हें हैल्मेट, मास्क, पहनना, हाथों की सफ़ाई व सामाजिक दूरी का पालन करना आवश्यक है।
(iv) अनुमति प्राप्त क्षेत्रों के अन्य सतसंगी जो दयालबाग़ नहीं आ सकते हैं वे अपनी भेंट की धनराशि NEFT/ RTGS द्वारा ब्रांच के खाते में जो कि सेक्रेटरी व अन्य दो व्यक्तियों द्वारा संचालित किया जाता है, ऑनलाइन जमा करेंगे या जो लोग ट्रांसफ़र करने में अक्षम हैं वे ब्रांच सेक्रेटरी को नक़द दे सकते हैं। ब्रांच सेक्रेटरी प्रत्येक “ट्रांज़ेक्शन” की जाँच कर यह देखेंगे कि यह धनराशि निर्दिष्ट नियमानुसार की गई है अथवा नहीं। ब्रांच द्वारा एकत्रित की गई भेंट की कुल धनराशि NEFT/ RTGS द्वारा केवल एक transaction से सभा के खाते में जमा करें व Form 'A' सूचि प्रेषित करें, जिससे भेजी गई धनराशि का मिलान हो सके। सभा के खाते का विवरण रीजनल प्रेसीडेन्ट्स को भेज दिया गया है। इस सम्बन्ध में उनसे सम्पर्क करें।
8. (a) अनुमति प्राप्त क्षेत्रों के जिज्ञासु जो कृषि सेवा करना चाहते हैं और पैरा 3 में दी गई शर्तों को पूरा करते हैं व उपदेश प्राप्त करने के इच्छुक हैं उन पर भंडारा फ़रवरी, 2022 के दौरान उपदेश देने के लिए विचार (consider) किया जाएगा। जिज्ञासु जो उपदेश प्राप्त करने के इच्छुक हैं उन्हें सेक्रेटरी, सभा की अनुमति से अधिक दिन तक ठहरने की इजाज़त दी जा सकती है।
(b) दूसरे उपदेश (भजन-उपदेश/रिवीज़न)- कृपया नोट करें कि यह “सुपरवाइज़्ड” वीडियो कॉन्फ़रेन्सिंग मोड में दयालबाग़ से ट्रांस्मिट किया जाएगा। ब्रांच सेक्रेटरीज़ यह सुनिश्चित करें कि सभी आवेदन संबंधित प्रपत्रों सहित उपदेश विभाग, दयालबाग़ में भंडारे की तिथि से कम से कम एक माह पूर्व पहुँच जाएँ।
(c) उपदेश के इच्छुक (सुमिरन व ध्यान/भजन) लोगों के लिये खेत की चार दिन की हाज़िरी आवश्यक है।
9. अनुमति प्राप्त सतसंगियों/ जिज्ञासुओं के लिये पोथी व च्यवनप्राश की सेल के लिये निर्देशानुसार प्रबंध किया जाएगा।
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भारत सरकार को जल्दी ही इस बात की सूचना मिल गई कि कर्पूरी ठाकुर नेपाल में हैं। नेपाल पुलिस और वहां की खुफिया एजेंसी भी कर्पूरी जी पर निगरानी रख रही थी। नेपाल सरकार ने कर्पूरी जी से कहा कि आप एक जगह से दूसरी जगह जाने से पहले नेपाली अधिकरियों से अनुमति ले लें। आपातकाल में इस देश में दमन जारी था।
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याद रहे कि नेपाल की खुफिया पुलिस को चकमा देकर 6 सितंबर, 1975 को लिबास और अपना नाम बदल कर कर्पूरी ठाकुर थाई एयरवेज के जहाज से काठमांडू से कलकत्ता पहुंच गये। कलकता हवाई अड्डे पर बिहार के चर्चित कांग्रेसी नेता राजो सिंह और रघुनाथ झा मिले। उन लोगों ने कर्पूरी ठाकुर को पहचान लिया। राजो सिंह ने कागज के बहाने कर्पूरी जी के पाकेट में कुछ रुपये भी रख दिये। कांग्रेसी होते हुए भी इन लोगों ने कर्पूरी जी के बारे में पुलिस को सूचना नहीं दी जबकि देश की पुलिस उन्हें बेचैनी से खोज रही थी। संभवतः ऐसा कर्पूरी ठाकुर के शालीन स्वभाव और ईमानदार छवि के कारण हुआ।
*🥉श्रीमद्भगवद्गीता🥉*
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*✍️सुशर्मा एक घोर पापी व्यक्ति था. वह हमेशा भोग-विलास में डूबा रहता. मदिरा और मांसाहार इसी में जीवन बिताता. एक दिन सांप काटने से उसकी मृत्यु हो गई.*
*उसे नरक में यातनाएं झेलीं और फिर से पृथ्वी पर एक बैल के रूप में जन्म लिया.*
*अपने मालिक की सेवा करते बैल को आठ साल गुजर गए. उसे भोजन कम मिलता लेकिन परिश्रम जरूरत से ज्यादा करनी पड़ती.*
*एक दिन बैल मूर्च्छित होकर बाजार में गिर पड़ा. बहुत से लोग जमा हो गए. वहां उपस्थित लोगों में से कुछ ने बैल का अगला जीवन सुधारने के लिए अपने-अपने हिस्से का कुछ पुण्यदान करना शुरू किया.*
*✍️उस भीड़ में एक वेश्या भी खड़ी थी. उसे अपने पुण्य का पता नहीं था फिर भी उसने कहा उसके जीवन में जो भी पुण्य रहा हो उसका अंश बैल को मिल जाए.*
*बैल मरकर यमलोक पहुंचा. बैल के हिस्से में जमा पुण्य का हिसाब-किताब होना शुरू हुआ तो एक बड़े आश्चर्य की बात हुई. ऐसे आश्चर्य की बात जिसके बारे में यदि धरतीलोक पर किसी व्यक्ति को कहो तो विश्वास ही न करें.*
*बैल के हिस्से में सर्वाधिक पुण्य उस वेश्या का दान किया हुआ आया था. उसी वेश्या के किए पुण्यदान के कारण बैल को नर्कलोक से मुक्ति हो गई.*
*इतना ही नहीं उसी पुण्यफल से पृथ्वी लोक का भोग करने के लिए मानव रूप में जन्म देकर भेजा गया. उसके पुण्य इतने थे कि विधाता ने उससे पृथ्वीलोक पर जाने से पहले उसकी इच्छा भी पूछी. ऐसा सौभाग्य करोड़ों में किसी-किसी धर्मात्मा को ही मिलता है.*
*इंसान के रूप में जाने से पहले बैल ने मांगा- हे परमात्मा आप मुझे मानवरूप में पृथ्वी पर भेजने का जो उपकार कर रहे हैं उससे मैं धन्य हो गया हूं. अब आपसे और क्या मांगू. बैलयोनि में मेरा जन्म मेरे पूर्व के कर्मों के दंडस्वरूप ही रहा होगा. इसलिए मैं चाहता हूं कि मनुष्य रूप में जाकर मैं उन कर्मों में न पडूं जो मेरा भावी खराब करेंगे. मनुष्य रूप में इसकी आशंका सर्वाधिक है.*
*परमात्मा ने पूछा- तो बताओ मैं तुम्हारा कैसे प्रिय करूं, अपनी एक इच्छा बताओ*
*👉उसने मांगा- मुझे बस वह क्षमता प्रदान करें कि मुझे पूर्वजन्म की समस्त बातें स्मरण रहें. उनका स्मरण करके मैं कर्मों से भटकने से स्वयं को रोक सकूंगा. बस इतनी सी कृपा और कर दे.*
*✍️परमात्मा ने उसकी इच्छा स्वीकार ली और उसे वह योग्यता प्रदान कर दी. पृथ्वीलोक पर आने के बाद उसे पूर्वजन्म स्मरण थे इसलिए उसने सबसे पहले उपकार का फल चुकाने का निर्णय किया.*
*पृथ्वी पर आकर उसने उस वैश्या को तलाशना शुरू किया जिसके पुण्य से उसे मुक्ति मिली थी. आखिरकार उसने उस वैश्या को खोज ही निकाला.*
*उसने वेश्या को सारी बातें बताई और फिर पूछा- देवी! आप धन्य हैं. आपके कर्म तो सबसे नीच कर्मों में आते हैं फिर भी आपके पास इतना संचित पुण्य कैसे था, यह घोर आश्चर्य की बात है. मैं जानना चाहता हूं कि कौन सा पुण्य आपने मुझे दान किया था?*
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*वेश्या ने एक तोते की ओर इशारा करके कहा- वह तोता प्रतिदिन कुछ पढ़ता है. उसे सुनकर मेरा मन पवित्र हो गया. वही पुण्य मैंने तुम्हें दान कर दिया था.*
*सुशर्मा के आश्चर्य का तो कोई अंत ही रहा. एक स्त्री ने उस पुण्यफल का दान किया जिसके बारे में उसे पता तक नहीं है और वह पुण्य इतना प्रभावी है कि उसकी अधम योनि ही बदल गई.*
*उसने तोते को आदरपूर्वक प्रणाम किया और उसके ज्ञान का रहस्य पूछा. तब तोते ने अपने पूर्वजन्म की कथा सुनाई.*
*तोता बोला- पूर्वजन्म में मैं विद्वान होने के बावजूद अभिमानी था और सभी विद्वानों के प्रति ईर्ष्या रखता था. उनका अपमान और अहित करता था.*
*मरने के बाद मैं अनेक लोकों में भटकता रहा. फिर मुझे तोते के रूप में जन्म मिला लेकिन पुराने पाप के कारण बचपन में ही मेरे माता-पिता की मृत्यु हो गई.*
*मैं रास्ते में कहीं अचेत पड़ा था. तभी दैवयोग से वहां से कुछ ऋषि-मुनि गुजरे. मुझे इस अवस्था में देखकर उन्हें दया आई और मुनि मुझे साथ उठा लाए.*
*आश्रम में लाकर मुझे एक पिंजरे में वहां रख दिया जहां विद्यार्थियों को शिक्षा दी जाती थी.*
*मैंने वहां गीता का पूरा ज्ञान सीखा. सुनते-सुनते गीता का प्रथम अध्याय मुझे कंठस्थ हो गया. इससे पहले कि मैं अन्य अध्याय सीख पाता एक बहेलिये ने वहां से चुराकर इन देवी को बेच दिया.*
*मैं अपने स्वभाववश इनको प्रतिदिन गीता के श्लोक सुनाता रहता हूं. वही पुण्य इन्होंने आपको दान किया और आप मानवरूप में आए.*
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*श्रीहरि ने लक्ष्मीजी से कहा है- देवी जो गीता पढ़ता या सुनता है उसे भवसागर पार करने में कोई कठिनाई नहीं होती.*
*गवान ने श्रीमद्भगवद्गीता के विभिन्न अध्यायों को अपने शरीर का अंग मानते हुए बताया है कि गीता में साक्षात उनका वास है।*
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