Monday, January 3, 2022

जीवत श्राद्ध विधान वर्णन / कृष्ण मेहता

 *श्री लिंग पुराण अध्याय – १२२:--*


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*सूतजी बोले - हे मुनीश्वरो! अब मैं जीवत श्राद्ध विधि को संक्षेप से कहूँगा।* 


*जो ब्रह्माजी ने पूर्व में मनु, वशिष्ठ, भृगु आदि के लिये कही है। वह सर्व सिद्धि करने वाली है। उसे आप लोग श्रवण करें।*


*पर्वत पर, नदी के किनारे वन में अथवा आयतन (घर) में मरण समय में जीवत श्राद्ध करना चाहिए।* 


*_जीवत श्राद्ध करने पर जीता हुआ ही मुक्त हो जाता है।_* 


*चाहे वह कर्म करे अथवा न करे, ज्ञानी हो अथवा अज्ञानी हो, वेदपाठी होया अवेद पाठी हो, ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य सभी मुक्त हो जाते हैं, इसमें कोई सन्देह नहीं।* 


*जैसे योगी योग मार्ग के द्वारा मुक्त होता है, वैसे ही जीवत श्राद्ध वाला मुक्त होता है।*

 

*भूमि की परीक्षा करके उसे शुद्ध करे।* 


*बालू का स्थण्डल बनावे उसके बीच में एक हाथ का कुण्ड बनावे अथवा बाण के बराबर का कुण्ड बनावे।* 


*विधान के द्वारा गौ के गोबर से वेदी के स्थान को लीप कर तथा धूप, दीप आदि से वेदी के स्थान को सुगन्धित करे* 


*तथा विभिन्न-विभिन्न प्रकार के मंगल द्रव्यों से सुशोभित करके अग्नि की स्थापना करे।* 


*कुशाओं का परिस्त्रण करके स्थण्डल पर अग्नि का पूजन करके समिधाओं का हवन करे।* 


*पूर्व में समिधाओं का बाद में अलग-अलग चरुओं का हवन करे।* 


*हवन के मन्त्र नीचे लिखे अनुसार हैं:-*


ॐ भू ब्रह्मणे नमः॥ ॐ स्व रुद्राय स्वाहा।। ॐ महः ईश्वराय नमः ॥ ॐ महः ईश्वराय स्वाहा॥ ॐ जनः प्रकृतये नमः॥ ॐ जनः प्रकृत्यै स्वाहा ॥ ॐ तपः मुद्गलाय नमः । ॐ मुग्दलाय स्वाहा।।ॐ ऋतं पुरुषाय नमः ॥ ॐ ऋतं पुरुषाय स्वाहा॥ॐसत्य शिवाय नमः।। ॐ सत्यं शिवाय स्वाहा॥ 


ॐ शर्व! धरों मे गोपाय घ्राणे गन्धं शर्वय देवाय भूनमः।। 


ॐ शर्व! धरौं मे गोपाय घ्राणे गन्धं शर्वय भूः स्वाहा॥


ॐ शर्व! धराँ मे गोपाय घ्राणे गन्धं शर्वस्य देवस्य पल्यै भूनमः॥


ॐ शर्व! धरों मे गोपाय घ्राणे गन्धं शर्व पल्यै भू स्वाहा॥ 


ॐ भव! जलं मे गोपाय जिह्वायां रसम्भवाय देवाय भुवा नमः॥ 


ॐ भव! जलं मे गोपाय जिह्वायां रसम्भवाय देवाय भुवः स्वाहा। 


ॐ भव!जलं मे गोपाय जिह्वायां रसम्भवस्य देवस्य पल्यै भुवो नमः॥ 


ॐ भव! जलं मे गोपाय जिह्वायां रसम्भवस्य पल्यै भुवः स्वाहा॥


ॐ रुद्राग्नि मे गोपाय नेत्रे रूपं रुद्राय स्वरो नमः ।। 


ॐ रुद्राग्नि मे गोपाय नेत्रे रूपं रुद्रस्य देवस्य पत्न्यै स्वः स्वाहा। 


ॐ उग्र! वायु मे गोपाय त्वचि स्पर्शम् उग्राय देवाय महर्नमः॥ 


ॐ उग्र! वायु मे गोपाय त्वचि स्पर्शम् उग्राय देवाय महः स्वाहा॥

ॐ उग्र! वायुमै गोपाय त्वचि स्पर्शम् उग्रस्य देवस्य पत्न्यै महरों नमः॥ 


ॐ उग्र! वायु मे गोपाय त्वधि स्पर्शम् उग्रस्य देवस्य पल्यै महः स्वाहा। 


ॐ भीम! सुषिरं मे गोपाय श्रोन्ने शब्दं भीमाय देवाय जनो नमः॥ 


ॐ भीम! सुषिरं मे गोपाय श्रोत्रे शब्दं भीमाय देवाय जनः स्वाहा॥ 


ॐ भीम! सुषिरं मे गोपाय श्रोत्रे शब्दं भीमस्य देवस्य पल्यै जनो नमः॥ 


ॐ भीम! सुधिर मे गोपाय श्रोत्रे शब्दं भीमस्य देवस्य पन्यै जनः स्वाहा ॥ 


इत्यादि.... तथा ॐ भूः स्वाहा। ॐ भुवः स्वाहा। ॐ स्वः स्वाहा ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः स्वाहा। 


*इस प्रकार मन्त्रों से हवन करके सातवें दिन योगीन्द्रों को जो श्राद्ध के योग्य हों उन्हें भोजन करावे।* 


*ब्राह्मणों के लिए वस्त्र, आभूषण, शैय्या, काँस पात्र, ताम्र पात्र, सुवर्ण पात्र, चाँदी के पात्र, धेनु, तिल, खेत, दासी, दास तथा दक्षिणा आदि प्रदान करनी चाहिये।* 


*पहली तरह पिण्ड को आठ प्रकार से देना चाहिये।*


*हजार ब्राह्मणों को दक्षिणा सहित भोजन कराना चाहिए।* 


*योग में तत्पर भस्म लगाये हुए जितेन्द्रिय योगी को तीन दिन तक महाचरु निवेदन करना चाहिए।* 


*मरने पर करे या न करे, वह तो जीवित ही मुक्त है।* 


*नित्य नैमित्तिक कार्यों को बान्धव के मरने पर नहीं त्यागना चाहिए क्योंकि उसे शौचाशौच नहीं लगता।* उसका सूतक (जन्म या मरण के कारण लगने वाली छूत) स्नान मन्त्र से ही शुद्ध होता है।*


*अपनी स्त्री में पुत्र के उत्पन्न होने पर उसका भी सर्व कर्म ऐसे ही करना चाहिए क्योंकि वह पुत्र भी ब्रह्म के समान होता है।* 


*यदि कन्या उत्पन्न होगी तो वह अपर्णा के समान होगी। उसके वंशज सब मुक्त हो जायेंगे। नर्क से सब पितर मुक्त हो जायेंगे।*


*इस प्रकार यह सब ब्रह्मा जी ने पूर्व में मुनियों से कहा था। सनत्कुमार ने श्री कृष्ण द्वैपायन से इसको कहा और वेदव्यास से मैंने सुना।* 


*सो मैंने अति गोपनीय और कल्याणप्रद रहस्य तुमसे कहा। इसे मुनि पुत्र और भक्त को देना चाहिए,* 


*अभक्त को नहीं देना चाहिए।*


जय श्री कृष्णा

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