Wednesday, March 9, 2022

आज का बचन / 09032021

 

 


परम गुरु हुज़ूर मेहताजी महाराज के भंडारे के पावन अवसर पर यह

प्रेम प्रचारक - विशेषांक


उनके चरण कमलों में अत्यंत श्रद्धा व दीनता के साथ


सादर समर्पित है।


 


          तीसरी आँख या अंतर की आँख खोलने का एक तरीक़ा यह है कि आप अपने दिल में बुरे विचार न पैदा होने दें। आपका अंतरी तार राधास्वामी दयाल के चरणों से जुड़ा रहे । ”साहब इतनी बिनती मोरी - लाग रहे दृढ़ डोरी” और व्यर्थ बातों से परहेज़ किया जावे। हर वक़्त मालिक के चरणों की याद बनी रहे। जिनकी ऐसी दशा है या जो इस दशा को पैदा करने की कोशिश में लगे रहते हैं उनका यह वैयक्तित अनुभव होगा कि उनकी मुश्किलें समय से पहले या ऐन वक़्त पर हल हो जाती हैं। उनको गुप्त रूप से ऐसी मदद मिलती है और इस तरह से अपनी मुश्किल आसानी से हल होते देखकर वे हैरान हो जाते हैं। क्या यह दशा प्रकट नहीं करती कि उनको वह लाभ व दर्जा प्राप्त हो रहा है जो अंतर की आँख खुलने पर होता है।


संदेश


(परम गुरु हुज़ूर मेहताजी महाराज)


          प्रातः काल उठने वाले एवं मितव्ययीo, परिश्रमी, सत्यभाषी, दयावान और विचारशील, उत्तम नागरिक और हुज़ूर राधास्वामी दयाल के सच्चे भक्त बनिए।


         यदि आप भोजन चाहते हैं तो पहले परिश्रम करके पसीना बहाइए। यदि आप स्वशासन चाहते हैं तो पहले अपने ऊपर शासन व संयम करना सीखिए। यदि आप अपने आपको किसी वस्तु के पाने के योग्य बनाना चाहते हैं तो दूसरों की सेवा करना सीखिए।


         किसी चीज़ को नष्ट न करना मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त रहा है। मैंने हमेशा पुरुषों और स्त्रियों, बूढ़ों और नौजवानों सबको, समान रूप से यह परामर्श दिया है कि वे हमेशा ध्यान रक्खें कि वे अपना समय, अपनी शक्ति, अपने विचार, अपना धन, अपनी खाने की चीज़ और वस्त्र अर्थात् जो कुछ उनके पास हो उसे नष्ट न होने दें ताकि ज़रूरत के समय उनको उसकी कमी महसूस न हो। मेरा यह भी विचार है कि किसी चीज़ का नष्ट करना पाप से कुछ कम नहीं है।


         जो संगत अपने काम में आगे बढ़ना चाहती है उसे अपने उद्देश्य, विचार एवं क्रिया में एक होना चाहिए। उसे यह भी चाहिए कि अपने कार्यकर्त्ताओं, धन और सामान से संबंधित सभी साधनों को सुरक्षित रक्खे और दूरदर्शिता से काम ले तथा अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिये उचित समय के अंदर इंतज़ाम करे। यह केवल तभी मुमकिन हो सकता है जब उस संगत का हर सदस्य अपनी संगत के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये यथाशक्ति ज़ोर लगाये। अनुशासन, क़ुरबानी और लगातार सख़्त मेहनत इस प्रयास में न सिर्फ़ सहायक हैं बल्कि निहायत ज़रूरी हैं।



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