Wednesday, March 23, 2022

जीवन की प्रेरक कथाएं



  !! जीवन का आनंद !!

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बहुत समय पहले की बात है जब सिकंदर अपने शक्ति के बल पर दुनिया भर में राज करने लगा था वह अपनी शक्ति पर इतना गुमान करने लगा था कि अब वह अमर होना चाहता था उसने पता लगाया कि कहीं ऐसा जल है जिसे पीने से व्यक्ति अमर हो सकता है।


देश-दुनिया में भटकने के बाद आखिरकार सिकंदर ने उस जगह को खोज लिया जहां पर उसे अमृत प्राप्त हो सकता था वह एक पुरानी गुफा थी जहां पर कोई आता जाता नहीं था।


देखने में वह बहुत डरावनी लग रही थी लेकिन सिकंदर ने एक जोर से सांस ली और गुफा में प्रवेश कर गया वहां पर उसने देखा कि गुफा के अंदर एक अमृत का झरना बह रहा है।


उसने जल पीने के लिए हाथ ही बढ़ाया था कि एक कौवे की आवाज आई। कौवा गुफा के अंदर ही बैठा था। कौवा जोर से बोला ठहर रुक जा यह भूल मत करना…


सिकंदर ने कौवे की तरफ देखा। वह बड़ी ही दयनीय अवस्था में था, पंख झड़ गए थे, पंजे गिर गए थे, वह अंधा भी हो गया था बस कंकाल मात्र ही शेष रह गया था।


सिकंदर ने कहा तू कौन होता है मुझे रोकने वाला…?


मैं पूरी दुनिया को जीत सकता हूं तो यह अमृत पीने से मुझे तू कैसे रोकता है! तब कौवे ने आंखों से आंसू टपकाते हुए बोला कि मैं भी अमृत की तलाश में ही इस गुफा में आया था और मैंने जल्दबाजी में अमृत पी लिया। अब मैं कभी मर नहीं सकता, पर अब मैं मरना चाहता हूं लेकिन मर नहीं सकता।


देख लो मेरी हालत। कौवे की बात सुनकर सिकंदर देर तक सोचता रहा सोचने के बाद फिर बिना अमृत पीए ही चुपचाप गुफा से बाहर वापस लौट आया।


सिकंदर समझ चुका था कि जीवन का आनंद उस समय तक ही रहता है जब तक हम उस आनंद को भोगने की स्थिति में होते हैं।


*शिक्षा :-* 

जीवन में हमें हमेशा खुश रहना चाहिए। हमें कभी भी खुश रहने के लिए बड़ी सफलता या समय का इंतजार नहीं करना चाहिए, क्योंकि समय के साथ हम बूढ़े होते जाते हैं और फिर अपने जीवन का असली आनंद नहीं उठा पाते हैं।


*सदैव प्रसन्न रहिये।*

*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*

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[3/23, 14:41] Deo Sg सतेन्द्र गुप्ता: 🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚

  *(गुरु और गुरु दक्षिणा).*


*एक बार महाप्रभु श्रीवल्लभाचार्य व्रज परिक्रमा करते करते अपने सेवकों के साथ गहवर वन में से पसार हो रहे थे।*

*वहां रास्ते में एक अजगर पड़ा था। असंख्य चींटीयां उस अजगर के शरीर को काट रही थीं। यह दृश्य देखकर सेवक विचार करने लगे। दामोदरदास हरसानी ने श्रीवल्लभ को इस दृश्य का कारण पूछा।*


 *श्रीवल्लभ ने कहा : यह अजगर पूर्व जन्म में वृंदावन का एक महंत था। ये चींटियां उसकी सेवक थीं।*


*इस महंत ने सेवकों के पास से भारी मात्रा में द्रव्य एकत्रित किया था। उस द्रव्य का उपयोग उसने परोपकार या भगवत्कार्य में नहीं किया, उसने अपने मौज शोख में वह द्रव्य का खर्च किया।*

*गुरु को मौज शोख करते देखकर, सेवकों ने भी धर्माचरण छोड़कर मौजशोख करना शुरू कर दिया।*

 *कालान्तर में उस महंत और उसके सभी सेवकों की मृत्यु हो गयी  महंत को अजगर का शरीर मिला और सेवकगण को चींटी का शरीर मिला।*


 *वे सेवकगण चींटियों के स्वरूप में अजगर को काटकर कहती हैं -- हमारा उद्धार करने की तुम्हारे में शक्ति नहीं थी, तो हमें शिष्य बनाकर क्यों खराब किया?*


 *हमारे पास जो धन (द्रव्य) था वह हमसे क्यों छीन लिया?*

 *गुरुपद पर बैठनेवाले को अपने अंदर गुरु बनने के लक्षण हैं या नहीं उसका विचार करना चाहिए।*

 *श्रीवल्लभ ने अजगर तथा चींटियों पर दया दिखाकर अपने हाथ में जल लेकर, वेदमंत्र का स्मरण करके वह जल उनके ऊपर डाला और उस अजगर तथा चींटियो का उद्धार हुआ।*

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