Friday, December 17, 2010

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना और उनकी पत्रकारिता ।। लेखकः संजय द्विवेदी रायपुर


पत्रकारिता की प्रकृति


सूचना, शिक्षा एवं मनोरंजन प्रदान करने के तीन उद्देश्यों में सम्पूर्ण पत्रकारिता का सार तत्व निहित है । पत्रकारिता व्यक्ति एवं समाज के बीच सतत संवाद का माध्यम है । अपनी बहुमुखी प्रवृत्तियों के चलते पत्रकारिता व्यक्ति एवं समाज को गहराई तक प्रभावित करती है । सत्य के शोध एवं अन्वेषण में पत्रकारिता एक सुखी, सम्पन्न एवं आत्मीय समाज बनाने की प्रेरणा से भरी-पूरी है । पत्रकारिता का मूल उद्देश्य ही अन्याय के खिलाफ प्रतिरोध दर्ज करना है । सच्ची पत्रकारिता की प्रकृति व्यवस्था विरोधी होती है । वह साहित्य की भाँति लोक-मंगल एवं जनहित के लिए काम करती है। वह पाठकों में वैचारिक उत्तेजना जगाने का काम करती है । उन्हें रिक्त नहीं चोड़ती । पीड़ितों, वंचितों के दुख-दर्दों में आगे बढ़कर उनका सहायक बनना पत्रकारिता की प्रकृति है । जनकल्याण एवं विश्वबंधुत्व के भाव उसके मूल में हैं । गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है –

“कीरति भनति भूलि भलि सोई
सुरसरि सम सबकर हित होई ”

उपरोक्त कथन पत्रकारिता की मूल भावना को स्पष्ट करता है । भारतीय संदर्भों में पत्रकारिता लोकमंगल की भावना से अनुप्राणित है । वह समाज से लेना नहीं वरन उसे देना चाहती है । उसकी प्रकृति एक समाज सुधारक एवं सहयोगी की है । वह अन्याय, दमन से त्रस्त जनता को राहत देती है, जीने का हौसला देती है । सत्य की लड़ाई को धारदार बनाती है । बदलाव के लिए लड़ रहे लोगों की प्रेरणा बनती है । पत्रकारिता की इस प्रकृति को उसके तीन उद्देश्यों में समझा जा सकता है ।

1. सूचना देना
पत्रकारिता दुनिया-जहान में घट रही घटनाओं, बदलावों एवं हलचलों से लोगों को अवगत कराती है । इसके माध्यम से जनता को नित हो रहे परिवर्तनों की जानकारी मिलती रहती है । समाज के प्रत्येक वर्ग की रुचि के के लोगों के समाचार अखबार विविध पृष्ठों पर बिखरे होते हैं, लोग उनसे अपनी मनोनुकूल सूचनाएं प्राप्त करते हैं । इसके माध्यम से जनता को सरकारी नीतियों एवं कार्यक्रमों की जानकारी भी मिलती रहती है । एक प्रकार से इससे पत्रकारिता जनहितों की संरक्षिका के रूप में सामने आई है ।

2. शिक्षित करना
सूचना के अलावा पत्रकारिता ‘लोक गुरू’ की भी भूमिका निभाती है । वह लोगों में तमाम सवालों पर जागरुकता लाने एवं जनमत बनाने का काम भी करती है । पत्रकारिता आम लोगों को उनके परिवेश के प्रति जागरुक बनाती है और उनकी विचार करने की शक्ति का पोषण करती है । पत्रकारों द्वारा तमाम माध्यमों से पहुंचाई गई बात का जनता पर सीधा असर पड़ता है । इससे पाठक यादर्शक अपनी मनोभूमि तैयार करता है । सम्पादकीय, लेखों, पाठकों के पत्र, परिचर्चाओं, साक्षात्कारों इत्यादि के प्रकाशन के माध्यम से जनता को सामयिक एवं महत्पूर्ण विषयों पर अखबार तथा लोगों की राय से रुपरू कराया जाता है । वैचारिक चेतना में उद्वेलन का काम भी पत्रकारिता बेहतर तरीके से करती नजर आती है । इस प्रकारपत्रकारिता जन शिक्षण का एक साधन है ।

3 मनोरंजन करना
समाचार पत्र, रेडियो एवं टीवी ज्ञान एवं सूचनाओं के अलावा मनोरंजन का भी विचार करते हैं । इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर आ रही विषय वस्तु तो प्रायः मनोरंजन प्रधान एवं रोचक होती है । पत्र-पत्रिकाएं भी पाठकों की मांग का विचार कर तमाम मनोरंजक एवं रोचक सामग्री का प्रकाशन करती हैं । मनोरंजक सामग्री स्वाभाविक तौर पर पाठकों को आकृष्ट करती है । इससे उक्त समाचार पत्र-पत्रिका की पठनीयता प्रभावित होती है । मनोरंजन के माध्यम से कई पत्रकार शिक्षा का संदेश भी देते हैं । अलग-अलग पाठक वर्ग काविचार कर भिन्न-भिन्न प्रकार की सामग्री पृष्टों पर दी जाती है । ताकि सभी आयु वर्ग के पाठकों को अखबार अपना लग सके । फीचर लेखों, कार्टून, व्यंग्य चित्रों, सिनेमा, बाल , पर्यावरण, वन्य पशु, रोचक-रोमांचक जानकारियों एवं जनरुचि से जुड़े विषयों पर पाठकों की रुचि का विचार कर सामग्री दी जाती है। वस्तुतः पत्रकारिता समाज का दर्पण है। उसमें समाज के प्रत्येक क्षेत्र में चलने वाली गतिविधि का सजीव चित्र उपस्थित होता है । वह घटना, घटना के कारणों एवं उसके भविष्य पर प्रकाश डालती है । वह बताती है कि समाज में परिवर्तन के कारण क्या हैं और उसके फलित क्या होंगे ? इस प्रकार पत्रकारिता का फलक बहुत व्यापाक होता है ।

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