Sunday, December 12, 2010

गुलजार की एक रचना मुझे अफ़सोस है


गुलजार की एक रचना
मुझे अफ़सोस है
मुझे अफ़सोस है सोनां
कि मेरी नज्म से होकर गुजरते वक्त बारिश में
परेशानी हुई तुमको
बड़े बेवक्त आते हैं यहां सावन
मेरी नज्मों की गलियां यों भी अक्सर भीगी रहती है
कई गड्ढों में पानी जमा रहता है
अगर पांव पड़े तो मोच आ जाने का खतरा है
मुझे अफ़सोस है लेकिन
परेशानी हुई तुमको कि मेरी नज्म में कुछ रोशनी कम है
गुजरते वक्त दहलीजों के पत्थर भी नहीं दिखते
कि मेरे पैरों के नाखून कितनी बार टूटे हैं
हुई मुद्दत कि चौराहे पे अब बिजली का खंभा भी नहीं जलता
परेशानी हुई तुमको
मुझे अफ़सोस है सचमुच
(यह कविता जाबिर हुसेन द्वारा संपादित साहित्यिक पत्रिका दोआबा से साभार लिया गया है। मूल कविता गुलजार के नये काव्य संग्रह पंद्रह पांच पचहत्तर से ली गई है)
खंडित आधार
जीवन के उबड़खाबड़,
गोबर से लिपे गये,
जीर्ण-शीर्ण दीवारों पर,
मैं नित नई तस्वीर देखता हूं।
चुल्हे में सिसकती आग,
उपलों के अधजले अवशेष,
तसले में खौलता अदहन,
और,
खुले पड़े अन्न विहीन कोठियों पर,
निर्धनता की नई तस्वीर देखता हूं।
कभी पूरब, कभी पश्चिम की ओर,
जाने वाली रेलगाड़ियों के,
दमघोंटू माहौल में भी,
लोगों के आंखों में पलने वाले,
ख्वाबों को असमय मरते देखता हूं।
सड़कों पर दूधिया रोशनी में,
फ़ुटपाथ पर सोये नौनिहालों के,
शब्दहीन मुख पर,
कल के विकसित बिहार के सपने का,
नित दिन खंडित होता आधार देखता हूं।
मातृ दिवस पर हर माँ को अर्पित
राधाराम
  "माँ तू मेरा मान है"
 माँ तू मेरा मान है,
मेरे रोम रोम में भरा तेरा प्यार है,
मेरे जीवन में कभी  अंत होनेवाला आशीर्वाद है।

मेरी एक मुस्कान पर जान न्योछावर कर देना,
मेरी एक उदासीन झलक पर असंभव को संभव कर देना,
अपनी मधुर लोरी से मेरे जीवन को उभारा,
अपने निश्चय से मुझमे द्रिड विश्वास जगाया,
इस मेरी सफलता का पूर्ण श्रेय है तुझे  माँ,
माँ तू मेरा मान है।

जब भी जीवन में कठिनायियआती हैं,
माँ तू मेरे सामने रहती है,
अपना आँचल मेरे सर पर रखे,
अपनी ममता का रूप लिए,
उसी तरह महसूस होता है मुझे,
जैसे बचपन में मुझे गोद लेती थी,
अपने आँचल में
माँ तू मेरा मान है।

माँ दुर्गामाँ सरस्वतीमाँ काली को कभी नहीं देखा,
पर उन सबका माँ तुझमे रूप देखा,
हर जीवन में तू मेरी माँ हो,
पा सकूं तुझसे वो ज्ञान
वो प्यारवो स्नेह वो निस्वार्थ भाव,
माँ तू मेरा मान है
  विकास से अब तो अपना नाता जोड़ो
आज हिंद में यह कैसा हुआ उद्घोष है,
पिछड़ा बिहार पर चढा यह कैसा जोश है,
हर बिहारी विकसित बिहार को सोच रहा,
आज इस सवाल पर वे क्यों खामोश हैं?

कुर्सी पर बैठ जो शासक की संज्ञा पाते हैं,
लूट खसोट कर अपने घर की तिजोरी भ्ररते हैं,
आम बिहारी भूख से दम तोड़ रहा नितदिन,
वे होटलों में गरीबों के नाम की खस्सी खाते हैं।

आंकड़ों मे ही हो रहा विकास बिहार का,
सभी गुणगाण कर रहे नीतीश सरकार का,
बेचारा किसान धरती का फ़टा कलेजा देख,
खून कर रहा अपने ही हाथों अपने अरमान का।

यह कैसा कोलाहल पूरे बिहार में छाया है,
सुना है इस धरती पर कोई देवदूत आया है,
उसके पैरों तले मर गये कई गरीब बेचारे,
शायद बिहार को विकसित बिहार बनाने आया है।

क्या ये कर सकेंगे बिहार का कोई भला,
या छिड़केंगे नमक जहां बिहार है जला,
अपने बिहार को हम ही विकसित बनायेंगे,
किसी और के बाजूओं में ताकत कहां भला।

जागो हे मेहनतकश बिहारी, अपनी खामोशी तोड़ो,
जिंदा कौम अब तो बिहार से अपना नाता जोड़ो,
धर्म औ जात के नाम पर बहुत लड़ चुके अब तक,
मिटा विभेद, विकास से अब तो अपना नाता जोड़ो।


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