Thursday, December 23, 2010

तलखियाँ << साहिर लुधियानवी


Talkhian
तलखियाँ
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प्रकाशकहिन्दी बुक सेन्टर
आईएसबीएन81-85244-20-0
प्रकाशितजनवरी ०१, २००८
पुस्तक क्रं:7083
मुखपृष्ठ:सजिल्द

सारांश:

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

‘तलख़ियां’ का प्रथम उर्दू संस्करण विभाजन से लगभग तीन-चार वर्ष पूर्व प्रकाशित हुआ था। मैं उस समय विद्यार्थी था और मुझे यह उम्मीद न थी कि इस संग्रह को इतनी अधिक लोकप्रियता प्राप्त हो सकेगी। इसे पाठकों की सोहार्दता कहनी चाहिए कि इस संग्रह की नज़्मों और ग़ज़लों की मांग अभी तक है।
इस संग्रह के जितने संस्करण अब तक प्रस्तुत किए गए उनमें प्रायः कुछ-न-कुछ नज़्मों की वृद्धि की जाती रही। प्रस्तुत संस्करण में भी गत हिन्दी संस्करण के मुकाबले में कुछ नज़्मों की वृद्धि की जा रही है और इसके साथ कुछ नज़्मों को छोड़ भी दिया गया है। कुछ नज़्मों के अन्त में उन वर्षों का हवाला भी दिया है जब से लिखी गई थीं–ताकि पाठकों को उन नज्मों की पृष्ठभूमि एवं उस समय के राजनीतिक वातावरण को समझने में कठिनाई न हो।
हिन्दी में ‘तलख़ियां’ का यह बारहवां संस्करण है, और मैं अपने उन सभी नये पुराने पढ़नेवालों का आभारी हूँ जिनके सहयोग के कारण ही इस संग्रह के इतने संस्करण प्रस्तुत किए जा सके।

साहिर लुध्यानवी

रद्दे-अ़मल१


चन्द कलियां निशात की२ चुनकर
मुद्दतों महवे-यास३ रहता हूं
तेरा मिलना खुशी की बात सही
तुझ से मिलकर उदास रहता हूं
–––––––––––––----------------------------

१. प्रतिक्रिया २. आनन्द की ३. ग़म में डूबा हुआ

एक मन्ज़र१


उफक़ के२ दरीचे से किरनों ने झांका
फ़ज़ा३ तन गई, रास्ते मुस्कुराये

सिमटने लगी नर्म कुहरे की चादर
जवां शाख़सारों ने४ घूंघट उठाये

परिन्दों की आवाज़ से खेत चौंके
पुरअसरार५ लै में रहट गुनगुनाये

हसीं शबनम-आलूद६ पगडंडियों से
लिपटने लगे-सब्ज़ पेड़ों के साये

वो दूर एक टीले पे आंचल सा झलका
तसव्वुर में७ लाखों दिये झिलमिलाये
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१. दृश्य २. क्षितिज के ३. वातावरण ४. शाखाओं ने ५. रहस्यपूर्ण ६. ओस-भरी ७. कल्पना में

एक वाक़या१


अंधियारी रात के आंगन में ये सुबह के क़दमों की आहट
ये भीगी-भीगी सर्द हवा, ये हल्की-हल्की धंधलाहट

गाड़ी में हूं तनहा२ महवे-सफ़र३ और नींद नहीं है आंखों में
भूले-बिसरे रूमानों के ख़्वाबों की ज़मीं है आंखों में

अगले दिन हाथ हिलाते हैं, पिछली पीतें याद आती हैं
गुमगश्ता४ ख़ुशियां आंखों में आंसू बनकर लहराती है

सीने वे वीरां गोशों में५ इक टीस-सी करवट लेती है
नाकाम उमंगें रोती हैं उम्मीद सहारे देती है

वो राहें ज़हन में६ घूमती हैं जिन राहों से आज आया हूं
कितनी उम्मीद से पहुंचा था, कितनी मायूसी लाया हूं
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१. घटना २. अकेला ३. यात्रा-मग्न ४. खोई हुई ५. वीरान कोनों में ६. मस्तिष्क में

यकसूई१


अहदे-गुमगश्ता की तसवीर दिखाती क्यों हो ?
एक आवारा-ए-मंज़िल को२ सताती क्यों हो ?
वो हसीं अहद३ जो शर्मिंदा-ए-ईफ़ा न हुआ४,
उस हंसी अहद का मफ़हूम जताती क्यों हो ?
ज़िन्दगी शो’ला-ए-बेबाक५ बना लो अपनी,
ख़ुद को ख़ाकस्तरे-ख़ामोश६ बनाती क्यों हो ?
मैं तसव्वुफ़ के७ मराहिल का८ नहीं हूं क़ायल९,
मेरी तसवीर पे तुम फूल चढ़ाती क्यों हो ?
कौन कहता है कि आहें हैं मसाइब का१॰ इलाज,
जान को अपनी अ़बस११ रोग लगाती क्यों हो ?
एक सरकश से१२ मोहब्बत की तमन्ना रखकर,
ख़ुद को आईन के१३ फंदे में फंसाती क्यों हो ?
मैं समझता हूं तक़ददुस१४ को तमददुन१५ का फ़रेब,
तुम रसूमात को१६ ईमान बनाती क्यों हो ?
जब तुम्हें मुझसे ज़ियादा है ज़माने का ख़याल,
फिर मेरी याद में यूं अश्क१७ बहाती क्यों हो ?

त़ुम में हिम्मत है तो दुनिया से बगावत कर दो।
वर्ना मां-बाप जहां कहते हैं शादी कर लो।।
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१. फुर्सत, अवकाश २. जिसकी कोई मंज़िल न हो ३. प्रण ४. जो पूरा न हुआ ५. धृष्ट शोला ६. मौन राख ७. सूफ़ीवाद ८. सीढ़ियों का ९. अनुयायी १॰. विपदाओं का ११. व्यर्थ १२. उद्दण्ड १३. कानून के १४. पवित्रता १५. संस्कृति १६. रीति-रिवाजों को १७. आंसू 
मुख्र्य

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