Friday, June 11, 2021

संस्कृत में हनुमान चालीसा*

🙏संस्कृत में हनुमान चालीसा🙏



श्री गुरु चरण सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।

बरनऊं रघुवर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ।।


बुद्धि हीन तनु जानिकै सुमिरौं पवनकुमार ।

बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरहु क्लेश विकार ।।


*हृद्दर्पणं नीरजपादयोश्च                                                                                              गुरोः पवित्रं रजसेति कृत्वा ।*   

*फलप्रदायी यदयं च सर्वम्                                                       रामस्य पूतञ्च यशो वदामि ।।*                                             


*स्मरामि तुभ्यम् पवनस्य पुत्रम्                                                    बलेन रिक्तो मतिहीनदासः ।* 

*दूरीकरोतु सकलं च दुःखम्                                                       विद्यां बलं बुद्धिमपि प्रयच्छ ।।*


जय हनुमान ज्ञान गुण सागर                                                      जय कपीस तिहुं लोक उजागर ।


*जयतु हनुमद्देवो ज्ञानाब्धिश्च गुणागरः ।*

*जयतु वानरेशश्च त्रिषु लोकेषु कीर्तिमान् ।।( 1)*


रामदूत अतुलित बलधामा                                                          अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ।


*दूतः कोशलराजस्य शक्तिमांश्च न तत्समः ।*

*अञ्जना जननी यस्य देवो वायुः पिता स्वयम्।।(2)*


महावीर विक्रम बजरंगी                                                             कुमति निवार सुमति के संगी।


*हे वज्रांग महावीर त्वमेव च सुविक्रमः।*

*कुत्सितबुद्धिशत्रुस्त्वम् सुबुद्धेः प्रतिपालकः।।(3)*


कंचन बरन बिराज सुबेसा                                                       कानन कुण्डल कुंचित केसा ।


*काञ्चनवर्णसंयुक्तः वासांसि शोभनानि च ।*                                    *कर्णयोः कुण्डले शुभ्रे कुञ्चितानि कचानि च ।।(4)*


हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै                                                        कांधे मूंज जनेऊ साजे ।


*वज्रहस्ती महावीरः ध्वजायुक्तस्तथैव च।*

*स्कन्धे च शोभते यस्य मुञ्जोपवीतशोभनम्।।(5)*


संकर सुवन केसरी नन्दन                                                          तेज प्रताप महाजगबन्दन ।


*नेत्रत्रयस्य पुत्रस्त्वं केशरीनन्दनः खलु ।*

*तेजस्वी त्वं यशस्ते च वन्द्यते पृथिवीतले।।(6)*


विद्यावान गुनी अति चातुर                                                         राम काज करिबै को आतुर ।


*विद्यावांश्च गुणागारः कुशलोऽपि कपीश्वरः।*

*रामस्य कार्यसिद्ध्यर्थम् उत्सुको सर्वदैव च ।।(7)*


प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया                                                       राम लखन सीता मन बसिया ।


*राघवेन्द्रचरित्रस्य रसज्ञः सः प्रतापवान् ।* 

*वसन्ति हृदये तस्य सीता रामश्च लक्ष्मणः।।(8)*


सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा                                               विकट रूप धरि लंक जरावा ।


*वैदेही सम्मुखे तेन प्रदर्शितस्तनुः लघुः।*

*लंका दग्धा कपीशेन विकटरूपधारिणा । (9)*


भीम रूप धरि असुर संहारे 

रामचन्द्र के काज संवारे ।


*हताः रूपेण भीमेन सकलाः रजनीचराः।*

*कार्याणि कोशलेन्द्रस्य सफलीकृतवान् कपिः।।(10)*


लाय सजीवन लखन जिवाए                                                       श्री रघुवीर हरषि उर लाए ।


*जीवितो लक्ष्मणस्तेन।* *खल्वानीयौषधम् तथा।* 

*रामेण हर्षितो भूत्वा वेष्टितो हृदयेन सः।।(11)*


रघुपति कीन्ही बहुत बडाई                                                        तुम मम प्रिय भरत सम भाई ।


*प्राशंसत् मनसा रामः कपीशं बलपुंगवम्।*

*प्रियं समं मदर्थं त्वम् कैकेयीनन्दनेन च।।(12)*


सहस बदन तुम्हरो जस गावैं                                                       अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ।


*यशो मुखैः सहस्रैश्च गीयते तव वानर ।*

*हनुमन्तं परिष्वज्य प्रोक्तवान् रघुनन्दनः।।(13)*


सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा

नारद सारद सहित अहीसा।


*सनकादिसमाः सर्वे देवाः ब्रह्मादयोऽपि च ।* 

*भारतीसहितः शेषो देवर्षिः नारदः खलु।।(14)*


जम कुबेर दिगपाल जहां ते                                                      कबि कोबिद कहि सकहि कहां ते।


*कुबेरो यमराजश्च दिक्पालाः सकलाः स्वयम् ।*

*पण्डिताः कवयः सर्वे शक्ताः न कीर्तिमण्डने।।(15)*


तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा 

राम मिलाय राज पद दीन्हा।


*उपकृतश्च सुग्रीवो वायुपुत्रेण धीमता।*

*वानराणामधीपोऽभूद् रामस्य कृपया हि सः।।(16)*


तुम्हरो मन्त्र विभीषण माना 

लंकेश्वर भए सब जग जाना ।


*तवैव चोपदेशेन दशवक्त्रसहोदरः ।*

*प्राप्नोति नृपत्वं सः जानाति सकलं जगत्।।(17)*


जुग सहस्र जोजन पर भानू 

लील्यो ताहि मधुर फल जानू।


*योजनानां सहस्राणि दूरे भुवः स्थितो रविः ।*

*सुमधुरं फलं मत्वा निगीर्णः भवता पुनः।।18)*


प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं 

जलधि लांघि गए अचरज नाहिं।


*मुद्रिकां कोशलेन्द्रस्य मुखे जग्राह वानरः ।*

*गतवानब्धिपारं सः नैतद् विस्मयकारकम् ।।(19)*


दुर्गम काज जगत के जेते 

सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।


*यानि कानि च विश्वस्य कार्याणि दुष्कराणि हि ।*

*भवद्कृपाप्रसादेन सुकराणि पुनः खलु ।।20)*


राम दुआरे तुम रखवारे 

होत न आज्ञा बिनु पैसारे।


*द्वारे च कोशलेशस्य रक्षको वायुनन्दनः।*

*तवानुज्ञां विना कोऽपि न प्रवेशितुमर्हति।।(21)*


सब सुख लहै तुम्हारी सरना 

तुम रक्षक काहु को डरना ।


*लभन्ते शरणं प्राप्ताः सर्वाण्येव सुखानि च।*

*भवति रक्षके लोके भयं मनाग् न जायते।।(22)*


आपन तेज सम्हारो आपे 

तीनो लोक हांक ते कांपै ।


*समर्थो न च संसारे वेगं रोद्धुं बली खलु ।*

*कम्पन्ते च त्रयो लोकाः गर्जनेन तव प्रभो ।।(23)*


भूत पिसाच निकट नहिं आवै

महाबीर जब नाम सुनावै।


*श्रुत्वा नाम महावीरं वायुपुत्रस्य धीमतः।* 

*भूतादयः पिशाचाश्च पलायन्ते हि दूरतः।।(24)*


नासै रोग हरै सब पीरा 

जो समिरै हनुमत बलबीरा।


*हनुमन्तं कपीशं च ध्यायन्ति सततं हि ये।*

*नश्यन्ति व्याधयः तेषां पीडाः दूरीभवन्ति च।।(25)*


संकट ते  हनुमान छुडावै 

मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।


*मनसा कर्मणा वाचा ध्यायन्ति हि ये जनाः।*

*दुःखानि च प्रणश्यन्ति हनुमन्तम् पुनः पुनः।।26)*


सब पर राम तपस्वी राजा 

तिनके काज सकल तुम साजा ।


*नृपाणाञ्च नृपो रामः तपस्वी रघुनन्दनः ।*

*तेषामपि च कार्याणि सिद्धानि भवता खलु।।(27)*


और मनोरथ जो कोई लावै 

सोई अमित जीवन फल पावै।


*कामान्यन्यानि च सर्वाणि कश्चिदपि करोति यः।*                           *प्राप्नोति फलमिष्टं सः जीवने नात्र संशयः।।(28)*


चारो जुग परताप तुम्हारा 

है प्रसिद्ध जगत उजियारा ।


*कृतादिषु च सर्वेषु युगेषु सः प्रतापवान् ।*

*यशः कीर्तिश्च सर्वत्र दोदीप्यते महीतले ।।(29)*


साधु सन्त के तुम रखवारे 

असुर निकन्दन राम दुलारे।


*साधूनां खलु सन्तानां रक्षयिता कपीश्वरः।*

*असुराणाञ्च संहर्ता रामस्य प्रियवानर ।।(30)*


अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता

अस वर दीन जानकी माता ।


*सिद्धिदो निधिदः त्वञ्च जनकनन्दिनी स्वयम् ।*

*दत्तवती वरं तुभ्यं जननी विश्वरूपिणी ।।(31)*


राम रसायन तुम्हरे पासा 

सदा रहो रघुपति के दासा ।


*कराग्रे वायुपुत्रस्य चौषधिः रामरूपिणी ।*

*रामस्य कोशलेशस्य पादारविन्दवन्दनात् ।।(32)*


तुम्हरे भजन राम को पावै 

जन्म जन्म के दुख बिसरावै ।


*पूजया मारुतपुत्रस्य नरः प्राप्नोति राघवम् ।* 

*जन्मनां कोटिसंख्यानां दूरीभवन्ति पातकाः।।(33)*


अन्त काल रघुवर पुर जाई 

जहां जन्म हरिभक्त कहाई ।


*देहान्ते च पुरं रामं भक्ताः हनुमतः सदा।*

*प्राप्य जन्मनि सर्वे हरिभक्ताः पुनः पुनः ।।(34)*


और देवता चित्त न धरई

हनुमत सेइ सर्व सुख करई ।


*देवानामपि सर्वेषां संस्मरणं वृथा खलु।*

*कपिश्रेष्ठस्य सेवा हि प्रददाति सुखं परम् ।।(35)*


संकट कटै मिटै सब पीरा 

जो सुमिरै हनुमत बलबीरा। 


*करोति संकटं दूरं संकटमोचनः कपिः।*

*नाशयति च दुःखानि केवलं स्मरणं कपेः।।(36)*


जय जय हनुमान गोसाईं 

कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ।


*जयतु वानरेशश्च जयतु हनुमद् प्रभुः।*

*गुरुदेवकृपातुल्यम् करोतु मम मंगलम् ।।(37)*


जो सत बार पाठ कर कोई 

छूटहि बन्दि महासुख होई।


*श्रद्धया येन केनापि शतवारं च पठ्यते।*

*मुच्यते बन्धनाच्छीघ्रम् प्राप्नोति परमं सुखम्।।(38)*


जो यह पढै हनुमान चालीसा 

होय सिद्धि साखी गौरीसा।


*स्तोत्रं तु रामदूतस्य चत्वारिंशच्च संख्यकम्।*

*पठित्वा सिद्धिमाप्नोति साक्षी कामरिपुः स्वयम् ।।39)*


तेरा दास सदा हरि चेरा                                                         कीजै नाथ हृदय मँह डेरा।


*सर्वदा रघुनाथस्य त्वमेव सेवकः परम्।*

*(सर्वदा रघुनाथस्य चन्द्र प्रकाश: सेवकः परम्)*

*विज्ञायेति कपिश्रेष्ठ वासं मे हृदये कुरु ।।(40)*


पवनतनय संकट हरन मंगल मूरति रूप ।

राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ।।


*विघ्नोपनाशी पवनस्य पुत्रः कल्याणकारी हृदये कपीश ।*

*सौमित्रिणा राघवसीतया च सार्धं निवासं कुरु रामदूत ।।*


*चन्द्र प्रकाशो शांडिल्य गोत्रकम्।*

*अनुवादः कृतस्तेन कृपा श्रीराम पादयोः।।*


*आज के पावन मंगलवार श्री हनुमानजी सदैव आपका कल्याण करें।*

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