Tuesday, June 8, 2021

नाभि ध्यान साधना

 नाभि ध्यान साधना

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लाओत्से कहता है, चलो, लेकिन ध्यान नाभि का रखो।


बैठो, ध्यान नाभि का रखो। 

उठो, ध्यान नाभि का रखो। 

कुछ भी करो, लेकिन तुम्हारी चेतना नाभि के आस-पास घूमती रहे। 


एक मछली बन जाओ और नाभि के आस-पास घूमते रहो। और शीघ्र ही तुम पाओगे कि तुम्हारे भीतर एक नई शक्तिशाली चेतना का जन्म हो गया।


इसके अदभुत परिणाम हैं। 

और इसके बहुत प्रयोग हैं। 

आप यहां एक कुर्सी पर बैठे हुए हैं। लाओत्से कहता है कि आपके कुर्सी पर बैठने का ढंग गलत है। 

इसीलिए आप थक जाते हैं। 

लाओत्से कहता है, 

कुर्सी पर मत बैठो। इसका यह मतलब नहीं कि कुर्सी पर मत बैठो, 

नीचे बैठ जाओ। 


लाओत्से कहता है, 

कुर्सी पर बैठो, 

लेकिन कुर्सी पर वजन मत डालो। 

वजन अपनी नाभि पर डालो।


अभी आप यहीं प्रयोग करके देख सकते हैं। एम्फेसिस का फर्क है। 

जब आप कुर्सी पर वजन डाल कर बैठते हैं, तो कुर्सी सब कुछ हो जाती है, 

आप सिर्फ लटके रह जाते हैं कुर्सी पर,


 जैसे एक खूंटी पर कोट लटका हो। 

खूंटी टूट जाए, कोट तत्काल जमीन पर गिर जाए। कोट की अपनी कोई केंद्रीयता नहीं है, खूंटी केंद्र है। 


आप कुर्सी पर बैठते हैं–लटके हुए कोट की तरह।


लाओत्से कहता है, आप थक जाएंगे। क्योंकि आप चैतन्य मनुष्य का व्यवहार नहीं कर रहे हैं और एक जड़ वस्तु को सब कुछ सौंपे दे रहे हैं। 


लाओत्से कहता है, कुर्सी पर बैठो जरूर, लेकिन फिर भी अपनी नाभि में ही समाए रहो सब कुछ नाभि पर टांग दो। और घंटों बीत जाएंगे और आप नहीं थकोगे।


अगर कोई व्यक्ति अपनी नाभि के केंद्र पर टांग कर जीने लगे अपनी चेतना को, 

तो थकान–मानसिक थकान–विलीन हो जाएगी। एक अनूठा ताजापन उसके भीतर सतत प्रवाहित रहने लगेगा। 


एक शीतलता उसके भीतर दौड़ती रहेगी। और एक आत्मविश्वास, जो सिर्फ उसी को होता है जिसके पास केंद्र होता है, उसे मिल जाएगा।


तो पहली तो इस साधना की व्यवस्था है कि अपने केंद्र को खोज लें।


और जब तक नाभि के करीब केंद्र न आ जाए ठीक जगह नाभि से दो इंच नीचे, ठीक नाभि भी नही नाभि से दो इंच नीचे जब तक केंद्र न आ जाए, तब तक तलाश जारी रखें,


 और फिर इस केंद्र को स्मरण रखने लगें। श्वास लें तो यही केंद्र ऊपर उठे, 


श्वास छोड़ें तो यही केंद्र नीचे गिरे। 

तब एक सतत जप शुरू हो जाता है–सतत जप। 


श्वास के जाते ही नाभि का उठना, 

श्वास के लौटते ही नाभि का गिरना–

अगर इसका आप स्मरण रख सकें…।


कठिन है शुरू में। क्योंकि स्मरण सबसे कठिन बात है और सतत स्मरण बड़ी कठिन बात है। 

आमतौर से हम सोचते हैं कि नहीं, 

ऐसी क्या बात है?


 मैं एक आदमी का नाम 6 साल तक याद रख सकता हूं।


यह स्मरण नहीं है; यह स्मृति है। 

इसका फर्क समझ लें। 

स्मृति का मतलब होता है, 

आपको एक बात मालूम है, 

वह आपने स्मृति के रेकार्डींग को दे दी। स्मृति ने उसे रख ली। 

आपको जब जरूरत पड़ेगी, 

आप फिर रिकार्ड से निकाल लेंगे और पहचान लेंगे। 


स्मरण का अर्थ है: सतत याद, कांसटेंट रिमेंबरिंग।

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