Wednesday, December 22, 2010

उर्दू पत्रकारिता का प्रारंभिक विकास और चुनौती


उर्दू पत्रकारिता का प्रारंभिक विकास और चुनौती

अर्चना
आजादी के बाद भारतीय समाचार जगत में क्रांतिकारी बदलाव आया। इस दौरान तकनीकी क्षेत्र में नए-नए प्रयोग हुए और उसका असर मीडिया के बाजार पर भी पड़ा। लेकिन आज से करीब डेढ़-दो सौ साल पहले समाचार पत्रों के प्रकाषन और संपादन पर विचार करें तो लगता है कि कैसे संभव हुआ होगा। भारत में अंग्रेजों के आने के बाद राजकाज की भाषा भले ही अंग्रेजी रही हो, लेकिन आम कामकाज की भाषा उर्दू व फारसी ही थी। वैसे में उर्दू पत्रकारिता की विकास यात्रा कम रोचक नहीं रही होगी।
यूरोप के देशों में स्थापित सामंतशाही और राजशाही के खिलाफ आंदोलनकारियों ने समाचारपत्रों का इस्तेमाल एक दुर्जेय हथियार के रूप में किया था तो भारत में प्रारंभिक वर्षों में समाचार पत्रों का इस्तेमाल समाज सुधार और सामाजिक जागृति के लिए ही किया गया। इस दिशा में उर्दू पत्र और पत्रिकाओं की भूमिका अहम रही थी। भारतीय पत्रकारिता की विकास यात्रा 1780 से शुरू हुई। पहले तीन दशक तक यह अंग्रेजी भाषा के पत्र-पत्रिकाओं तक ही सीमित रही। 1785 के आसपास अंग्रेजी साप्ताहिक कलकत्ता गजट में फारसी में एक कालम की शुरूआत की गई, परंतु इसका जीवन काल काफी संक्षिप्त था।
बताया जाता है कि कलकत्ता से 1810 में प्रकाशित (फारसी में) प्रथम भारतीय भाषा का समाचार पत्र था, जो साप्ताहिक था। इस समाचार पत्र की एक भी प्रति उपलब्ध नहीं है। इसके बाद 1822 तक कोई अन्य फारसी या उर्दू जर्नल प्रकाशित नहीं हुए। पहला उर्दू समाचार पत्र जाम-ए-जहान लाल सदासुख लाल के संपादन में कलकत्ता से प्रकाशित हुआ।
उर्दू पत्रकारिता के विकास में ईस्ट इंडिया कंपनी की दमनात्मक नीतियां बाधक रहीं। अंग्रेजी समाचार पत्रों को कंपनी का आर्थिक सहयोग तथा समर्थन प्राप्त था। परंतु, भारतीय भाषाओं के समाचार पत्र को किसी का सहयोग व समर्थन नहीं था। 1822 के अंत तक कलकत्ता से दो बंगला साप्ताहिक तथा दो फारसी का प्रकाशन हुआ। एक फारसी साप्ताहिक मीरत-उल-अखबार के संपादक राजा राममोहन राय थे। 1823 में मनीराम ठाकुर ने सम्सूल अखबार का प्रकाशन आरंभ किया, जो पांच वर्षों तक चला। लखनऊ से प्रकाशित अवध अखबार ने लंदन टाइम्स के हवाले से लिखा था कि भारतीय भाषाओं के अखबार जो 1835 में 6 तथा 1850 में 28 थे, 1878 में 97 हो गए तथा इनका प्रसार 1.50 लाख था। सबसे पहले उर्दू प्रेस का रिकार्ड 1848 से प्राप्त होता है, जब 26 समाचार पत्र छपते थे, जिनमें 19 उर्दू में, तीन हिन्दी तथा तीन फारसी में तथा 1 बंगला में थे। इनमें दो पत्रिकाएं भी सम्मिलित थीं। 1852 में भारतीय समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं की संख्या 34 हो गई तथा उत्तर भारत समाचार पत्रों के केंद्र के रूप में विकसित हुए। 1853 में समाचार पत्रों की संख्या बढ़कर 37 हो गई। उत्तर भारत में एक बड़े तबके के द्वारा उर्दू संचार के माध्यम के रूप में इस्तेमाल की जा रही थी। पहले ये समाचार पत्र हिन्दुओं द्वारा संपादित थे, जिनका उर्दू पत्रकारिता में बहुत बड़ा योगदान था। 1848 से 1853 के बीच बहुत सारे समाचार पत्र बंद हुए और नए आए।
1857 की क्रांति के पहले राजनीति में लोगों की रूचि कम थी तथा सार्वजनिक मसले गहराई के सामने नहीं लाए जाते थे। कुछ पत्रिकाएं जैसे फवैद अल नजरीन ने जनता को पश्चिम ज्ञान देने के लिए जनता से संपर्क साधने का प्रयास किया। शुरूआती चरण में 1857 की क्रांति में उर्दू समाचार जगत ने उन्नति के साथ अवनति भी देखी। जून 1857 में गवर्नर जनरल द्वारा एक एक्ट लाया गया, जिसमें तहत प्रिटिंग प्रेस की स्थापना को नियंत्रित करने का प्रावधान था। इसका मकसद छपी किताबों तथा अखबारों के प्रसार को रोकना था। इस अधिनियम के अनुसार प्रेस के लिए लाइसेंस प्राप्त करना आवश्यक था। इस अधिनियम ने बोलने की स्वतंत्रता पर कुठराघात किया तथा संपादकों और प्रकाशकों पर क्रिमनल चार्जेज लगाए गए। समकालीन स्रोत इस दमनात्मक कार्रवाई के बारे में विस्तार से नहीं बताते हैं। परंतु, कुछ उदाहरण हैं। जैसे फारसी अखबार सुल्तान-उल-अखबार को कलकत्ता सुप्रीम कोर्ट में आरोपों का सामना करना पड़ा तथा उसकी लाइसेंस वापस ले ली गई। गुलशन-ए-नौबहार को बंद कर दिया गया तथा रायजुल अखबार के संपादक को जेल भेज दिया गया।
1857 के बाद उर्दू पत्रकारिता
1857 की क्रांति के दौरान उर्दू अखबारों की संख्या 35 (1858) रह गई। परंतु 1857 के बाद उर्दू पत्रकारिता का नया युग आरंभ हुआ। कुछ महत्वपूर्ण समाचार पत्रों का नाम लिया जा सकता है जैसे अवध अखबार लखनऊ, साइंटिफिक गजट अलीगढ़, तहजीव उल अख्लाक अलीगढ़, अवध पंच लखनऊ, पंजाब अखबार लाहौर आदि। इनमें से अवध अखबार लंबे समय तक प्रकाशित होता रहा तथा दैनिक में तब्दील हुआ। इस अखबार ने मुंशी नवल किशोर के प्रकाशन में तथा रतन नाथ के संपादन में कई उपलब्धियां अर्जित की। परंतु उर्दू में प्रथम दैनिक होने का श्रेय उर्दू गाइड कलकत्ता को प्राप्त है, जिसकी स्थापना 1858 में मौलवी कबीर उद-दिर- अहमद खान ने की थी। 1857 के बाद 18 नई पत्रिकाएं आरंभ हुई, जिसमें 11 उर्दू की थीं।
1873 तक समाचार पत्र एवं पत्रिकाओं की संख्या बढोत्तरी हुई, परंतु उनके स्तर में सुधार लाने का प्रयत्न नहीं किया गया। अकबर-ए-अंजुमन-ए-पंजाब ने वैसे लोगों की आलोचना की जो पत्रकारिता को एक शौक की तरह लेते थे। हालांकि इस दौरान सरकार ने प्रत्येक समाचार पत्र की कुछ प्रतियां को खरीदना आरंभ किया, जो इनके विकास में सहायक हुआ। परंतु उत्तर पश्चिम प्रांत की सरकार ने उस व्यवस्था को 1876 में समाप्त किया तो बहुत सारे प्रकाशकों ने अखबार बंद कर दिए।
19 वीं शताब्दी के आठवें दषक में उर्दू अखबारों एवं पत्रिकाओं की गुणवत्ता में सुधार लाया गया तथा उनकी लोकप्रियता भी बढ़ी। इसमें कोहिनूर तथा अवध अखबार का अमूल्य योगदान है। अखबार-ए-आम (संपादन पंडित गोपीनाथ) तथा पैसा अखबार (1887, मुंशी महबूब आलम द्वारा संपादित तथा पंजाब से प्रकाशित) ने पत्रकारिता का एक नया अध्याय खेला। ये दैनिक आधी शताब्दी से ज्यादा समय तक लोकप्रिय रहे। ये व्यावसायिक स्तर पर संचालित थे तथा इन्होंने महत्वपूर्ण सफलता अर्जित की। क्षेत्रीय भाषाओं के अखबारों की लोकप्रियता इतनी बढ़ी की सरकार ने वर्नाकुलर प्रेस अधिनियम 1876 लागू किया, जिसे बाद में 1882 में समाप्त कर दिया गया।
भारतीय नेशनल कांग्रेस की 1885 में स्थापना के बाद सर सैयद अहमद खान तथा राजा शिव प्रसाद जैसे विरोधियों ने अखबारों के माध्यम से अपने विचार प्रकट करना आरंभ किये। जबकि लखनऊ से प्रकाशित अवध पंच, हिन्दुस्तानी व एडवोकेट तथा इलाहाबाद से प्रकाशित कैसरवी अखबार ने कांग्रेस का समर्थन किया।
1884-85 में उर्दू की कुल समाचार पत्रों की संख्या 117 थी, जिसमें 51 उत्तर – पश्चिमी प्रांत से, 39 पंजाब से, 25 अवध से तथा 2 मध्य भारत से प्रकाशित होते हैं। राजपूताना में उर्दू अखबार नहीं था परंतु द्विभाषी अखबार 3 थे। इसी तरह के द्विभाषी अखबार उŸार-पष्चिम प्रांत में 5 थे। आर.आर. भटनागर ने कुछ आंकड़े उपलब्ध कराए हैं जो 1891-1922 के बीच के हैं -
वर्ष प्रसार संख्या वर्ष प्रसार संख्या
1891 16,256 1911 76,608
1901 23,747 1922 1,40,486
बीसवीं शताब्दी के आरंभ में कई उर्दू दैनिक थे परंतु भारत में राजनीतिक लहर के साथ ही अखबारों की संख्या में इजाफा हुआ तथा अखबार एवं पत्रिकाएं जैसे जमींदार, हिन्दुस्तानी अल हिलाल, देश, मुस्लिम गजट इत्यादि ने राजनीतिक जागरूकता लाने में अहम भूमिका निभाई।
इस दौरान कई अखबारों की भी भूमिका महत्वपूर्ण रही। सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों ने भी उर्दू पत्रकारिता को बढ़ावा दिया और उर्दू व फारसी अखबारों को अपने आंदोलन के प्रचार का हिस्सा बनाया। 20वीं सदी के शुरू में समाचार पत्रों के कलेवर और तकनीकी में भी बदलाव आया और कई अखबारों ने इसी अंगीकार भी किया। इस दौरान मासिक पत्र पत्रिकाओं की संख्या में इजाफा हुआ तथा कुछ अखबारों ने अपना अंतर राज्यीय प्रसार संख्या भी बढ़ाया तथा कुछ अखबार पूरे देश में पढ़े जाने लगे, जिनमें अल हिलाल महत्वपूर्ण है। अलहिलाल पहला उर्दू अखबार था, जिसने तस्वीरों को भी प्रकाशित किया तथा यह पहला राजनीतिक पत्र था।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि विचार जब लोगों तक पहुंचते हैं तो वे एक भौतिक शक्ति बन जाते हैं। राष्ट्रीय जागरण, प्रगतिषील विचारों के आत्मसात्करण एवं सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक आंदोलनों में अधिकाधिक सहयोग की दृष्टि से राष्ट्रों के इतिहास में प्रेस की बहुत बड़ी भूमिका रही है और इस मामले में उर्दू प्रेस ने भी अपनी निर्णायक भूमिका का निर्वाह किया।
(लेखिका पटना वीमेंस कालेज के राजनीतिक शास्त्र विभाग में गेस्ट फैक्लटी हैं।)

0 टिप्पणियाँ:

No comments:

Post a Comment

बधाई है बधाई / स्वामी प्यारी कौड़ा

  बधाई है बधाई ,बधाई है बधाई।  परमपिता और रानी मां के   शुभ विवाह की है बधाई। सारी संगत नाच रही है,  सब मिलजुल कर दे रहे बधाई।  परम मंगलमय घ...