Wednesday, December 22, 2010

ब्रिटेन की इस्लामिक मीडिया ने यूरोप में महिलाओं की आजादी पर खड़े किये सवाल!





चौथी सत्ता - Chauthi Satt

ब्रिटेन की इस्लामिक मीडिया ने यूरोप में महिलाओं की आजादी पर खड़े किये सवाल!

चिंता है कि कहीं इस्लाम के कट्टर मूल्य और संहिताएं यूरोप में धार्मिक और महिलाओं की आजादी प्रभावित न करने लगें? कई यूरोपीय देशों ने इस्लाम की अनुदार संस्कृति रोकने के लिए संवैधानिक संहिताएं बनायी हैं क्योंकि आज यूरोप में मजहबी संस्कृति के नाम पर कानून-संविधान का खुला उल्लंघन कर राजनीतिक ताकत बनाने का खेल-खेला जा रहा है।

इससे यूरोप का उदार समाज तब-तक उदासीन था जब तक मजहबी संस्कृतियां राजनीति सत्ता प्रभावित नहीं कर रही थीं पर जैसे ही उदार समाज व्यवस्था पर इस्लाम की मजहबी संस्कृति हावी हुई और अलग कानून या संविधान कोड की मांग शुरू हुई, वैसे ही यूरोप की समाज व्यवस्था ने मजहबी संस्कृतियो के खिलाफ सक्रियता दिखानी शुरू कर दी है। फ्रांस में बुर्के के खिलाफ संवैधानिक प्रतिबंध इसकी सबसे बड़ी कड़ी है।

पहले इस्लाम से जुड़ी संस्थाएं ही मजहबी संस्कृति और खतरनाक संहिताओं की बात करती थीं लेकिन अब मीडिया भी इसमें शामिल हो गया है। इस्लामिक मूल्यों और रूढि़यों के प्रचार-प्रसार के लिए यूरोप में आज अनेक मीडिया संस्थान सक्रिय हैं जो इस्लाम और गैर-इस्लामिक आबादी के बीच टकराव और घृणा के बीज बो रहे हैं। मीडिया पर मजहबी संहिताएं हावी होना न सिर्फ यूरोप बल्कि शेष दुनिया के लिए भी चिंता का विषय है।

ओसामा बिन लादेन की स्त्री विरोधी मानसिकता और अराजक खूनी शक्ति ने इस्लामिक मीडिया को और खूंखार बना दिया है। जब से 'अल जजीरा' लादेन की खूनी सोच दुनिया भर में फैलाने और इस्लाम को संघर्ष के प्रतीक जैसी भ्रांतियां फैलाने में कामयाब हुआ, तब से इस्लाम की कट्टरवादी संस्थाओं को मीडिया को मोहरे के रूप में नया हथियार मिल गया।

यूरोप में आज कुकुरमुत्तों की तरह गली-गली इस्लामिक मीडिया ने मजहबी कट्टरता का जाल बिछा लिया है। खासकर ब्रिटेन में यह दो तरह की समस्याएं खड़ी कर रहा है। एक में इस्लाम की रूढि़यों को बढ़ावा दिया जा रहा है तो दूसरे में राजनीतिक समीकरण प्रभावित किया जा रहा है। आज ब्रिटेन की 14 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वहां के उदार व समतामूलक संविधान में इस्लामिक हिस्सेदारी चाहती है। वहां इस्लामिक संहिता लागू करने की मांग खतरनाक ढंग से उठी है। समस्या यह है कि राजनीतिक तौर पर ऐसी खतरनाक और मजहबी मांगों के प्रति कठोरता नहीं दिखायी जाती क्योंकि वहां की 14 फीसद मुस्लिम आबादी सत्ता उखाड़ फेंकने की राजनीतिक ताकत रखती है। ब्रिटेन या अन्य अनेक यूरोपीय देशों की सत्ता भी मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति पर चलती है।

ब्रिटेन के एक इस्लामिक मीडिया संस्थान ने हाल में अपने खबरिया चैनल पर प्रसारित एक कार्यक्रम में न केवल घरेलू हिंसा का समर्थन किया बल्कि विवाहिता के साथ उसके पति द्वारा जोर-जबर्दस्ती करने को भी जायज ठहराया। चैनल ने प्रचारित किया कि घरेलू हिंसा या फिर बलात्कार की शिकार महिला कोर्ट नहीं जा सकती और न पुरुष को दंडित करा सकती है। ऐसा करना इस्लाम का तौहीन है और उनके खिलाफ शरीयत में दंड का विधान है। किसी भी मुस्लिम पुरुष पर अपनी पत्नी पर हिंसा की कार्रवाई करने पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। इत्र लगाने वाली महिलाओं को वैश्या कहा गया। श्रृंगार करने वाली महिलाओं पर तलाक जैसी प्रक्रिया का बुलडोजर चलाने और ऐसी महिलाओं की जिंदगी नरक में तब्दील करने की भी अपील की गयी।

कार्यक्रम का प्रसारण अरबी, उर्दू और अफ्रीकी भाषाओं में हो रहा था, इसलिए ब्रिटेन में इस पर काफी बाद में ध्यान गया लेकिन जैसे ही जानकारी आम हुई, वहां का समाज और महिला संगठन उबल पड़े। ऐसे कार्यक्रमों के औचित्य पर प्रश्न उठने के साथ ही ऐसे मीडिया संस्थानों को प्रतिबंधित करने की मांग भी उठी। मीडिया पर निगरानी करने वाली संस्था 'ऑफ्कॉम' ने कहा कि यह नियमावली का उल्लंघन और व्यक्ति की स्वततंत्रा का हनन करने वाला है। इस तरह के प्रसारण से औरतों पर हिंसा बढ़ेगी और यूरोपीय समाज में बर्बर जेहादी-मजहबी संस्कृतियां हावी हो जाएंगी।

अफगानिस्तान या पाकिस्तान में कट्टरपंथियों का महिलाओं के प्रति क्या रवैया है, इससे दुनिया अच्छी तरह परिचित है। अरब देशों में भी महिला उत्पीड़न जगजाहिर है। बहरहाल, यूरोप में इस्लामिक मीडिया न केवल इस्लाम की रूढि़यों के प्रचार-प्रसार में लगा है बल्कि  भारत, इस्राइल और फिलीपींस जैसे देशों में इस्लामिक आतंकवाद को भी खाद-पानी दे रहा है। खबरों में दिखाया जाता है कि मुस्लिम आबादी पर अत्याचार के साथ इस्लाम का तिरस्कार हो रहा है। ऐसे कार्यक्रमों से इस्लाम की रूढि़यों का ग्राफ बढ़ता है और जेहादी मानसिकता फलती-फूलती है।

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