कब मिलेगा आधी आबादी को पूरा हक़ ?
आलेख : – कीर्ति सिंह , सहायक संपादक मीडियामोर्चा , पटना
आधी आबादी का सच यह है कि आज भी आजादी के वर्षों बाद पूरी तरह से सशक्तिकरण नहीं हो पाया है। महिला सशक्तिकरण, कितना हकीकत, कितना फसाना है बन कर रह गया है। इसे खुली आंखों से देखा, समझा जा सकता है।
पिछले ही दिनों संसद में तैंतीस प्रतिशत महिला आरक्षण विधेयक के पेश होने से देश भर में महिला सशक्तिकरण को मुकाम दिलाने में सक्रिय संगठनों/लोगों में उत्साहमयी माहौल देखने को मिला। लेकिन सवाल भी उठा कि इससे क्या आधी आबादी का पूरा सशक्तिकरण होगा ? महाराष्ट्र, बिहार, पंजाब या फिर देश का वह हिस्सा जहां आधी आबादी अभी भी गांव में रहती है, जो सुबह उठते ही गौशाला से गोबार निकालकर उपले ठोंकती है, घरवालों और पशुओं को खाना खिलाती है और फिर खेत-खलिहान का रूख लेती है या फिर मनरेगा के तहत पोखर खोदने वाली, सड़क निर्माण कार्य में लगी या फिर शहरों में सड़क निमार्ण के लिए तपती धूप में गिट्टी तोड़ती, वह आधी आबादी क्या सशक्तिकरण की भागीदारी उस मायने में बन सकती है ? जिस मायने में शहर की आधी आबादी बनती है ? या फिर नेताओं, अफसरों और समाज के सभ्य आधी आबादी ही हर बार की तरह फायदा उठायेंगी ? हालांकि होता यही है।
देश में आज भी आधी आबादी सबसे ज्यादा गांवों में रहती है, जो सुबह से लेकर देर शाम तक सिर्फ काम ही काम करती है। उनका सशक्तिकरण बस मनरेगा में सौ दिन रोजगार या फिर थोड़ा सा सरकारी सहायता भर से ही होता रहता है। हकीकत यह है कि आज भी शहरी और ग्रामीण आधी आबादी में सशक्तिकरण की बागडोर मजबूत नहीं है। बराबरी नहीं है। आधी आबादी की सशक्तिकरण पर थोड़ा जोर दें, तो आज जो महिलाएं शिखर पर हैं, उन्होंने अपने बलबूते एक नई दिशा दी है। किरण बेदी, सानिया मिर्जा, संतोष यादव, पी.टी. उषा, सरीखे आधी आबादी की संख्या अंगुलियों पर है। ये सच है कि आज हर क्षेत्र में आधी आबादी ने जोरदार ढंग से कब्जा जमाया है। लेकिन आज भी गांव की कजरी ओपले ही ठोंक रही है और धनिया जी.टी. रोड के किनारे सड़क निर्माण में लगने वाले गिट्टी तोड़ने का काम चिलचिलाती धूप में कर रही है। उनकी बेटियां भी पास में ही गोबर और गिट्टी से खेलती नजर आती हैं। उनके सामने उनका सशक्तिकरण सबसे बड़ा सवाल है। कहने के लिए तो महिला सशक्तिकरण शिक्षा का अधिकार और न जाने कितने मौलिक अधिकार है, जो हमें बेहतर दिशा देते हुए चमकते हुए सूरज की तरह दिखते है लेकिन उसकी रोशनी कजरी और धनिया क्या उसकी बेटी तक भी नहीं पहुंच पाती है। ऐसे में महिला आरक्षण विधेयक का सबसे ज्यादा फायदा किससे होगा, यह एक सवाल है। क्या इससे महिला सशक्तिकरण और मजबूत होगा? और महिला सशक्तिकरण अगर मजबूत होगा तो इसके दायरे में क्या कजरी या धनिया आयेंगी ? या फिर नेताजी/अफसर और सभ्रांत परिवार की बेटी-पत्नी-बहु का ही केवल महिला आरक्षण विधेयक से महिला सशक्तिकरण होगा। मौजूदा संसद में लोकसभा में 59 महिलाएं है। इनमें चालीस सांसद करोड़पति हैं, जाहिर है राजनीति मंें जो महिलाएं आ रही है अधिकतर सम्पन्न वर्ग से। निचले तबके की जो महिलाएं राजनीति में है वह अंतिम कतार में आज भी खड़ी हैं। भूले भटके से एकाध महिलाएं आरक्षित सीट के तहत आ भी गयी तो बहुत बड़ी बात है।
बात महिला आरक्षण विधेयक की नहीं है। बात है आधी आबादी में सभी को बराबरी का दर्जा मिलने की। हक मिलने की। जो महिलाओं के बीच वर्ग संधर्ष , ,गैरबराबरी है, नीच उच्च है, गरीब- अमीर , दलित-पिछड़ा-सवर्ण का वर्ग है। उसकी दीवारें ढहनी चाहिए और आधी आबादी में अंतिम कतार में खड़ी कजरी और धनिया को भी इसका फायदा मिलना चाहिए। उसे भी उन महिलाओं के बराबर खड़ा होना चाहिए जो शिखर पर हैं। आरक्षण ही सही अगर महिला विधेयक आरक्षण से महिला सशक्तिकरण को मजबूती मिलती है, खासकर अंतिम कतार में खड़ी विकास से दूर आधी आबादी इसे जुड़ती है तो यकीनन एक बहुत बड़ा बदलाव होगा और जब यह बदलाव राजनीतिक स्तर पर होगा तो, स्वतः शेष स्तर पर अपने आप बदलाव होने लगेगा। गांव की कजरी या फिर झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाली धनिया संसद पहुंचेगी तो उसके अंदर की टीस अपनी ही तरह आधी आबादी को आगे लाने के लिए महिला सशक्तिकरण को और मजबूत करेगी।
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