Tuesday, January 17, 2012

क्या लोक से दूर जा रहा है लोकतंत्र ?



पंकज चतुर्वेदी

बाबा रामदेव की पत्रकार वार्ता में उन पर ‘याही फैंकने की लिखी-लिखाई कहानी का अगला पायदान भी घटित हो गया - बेहद संवेदन’ाील माने जाने वाले, हाई सिक्योरिटी वाले इलाके में कुछ लोग पहुंचे, नारेबाजी क अैर एक पोस्टर पर काला रंग फैंक कर चलते बने। हां, एक बार फिर वही दृ’य दिखा- एक-दो लोगों को निर्ममता से पीटेत हकुछ लोग और उसके बाद आरोेप-प्रत्यारोप का दौर। दिग्गी राजा ने कहा कि ‘याही डालने वाला राजनाथ सिंह का चुनाव-एजंेट था तो बाबा रामदेव ने कहा कि कामरान सिद्धीकी के एन जी ओ को सलमान खुर्’ाीद ने मदद की थी। अब कांग्रेस मुख्यालय पर उधम करने वालों को दिग्गीराजा बाबा का समर्थक कह रहे हैं तो बाबा के प्रवक्ता उनसे अपना कोई ताल्लुक होने से इंकार कर रहे हैं। दिनांक 16 जनवरी यानी कांग्रेस मुख्याला की घटना वाले दिन ही इसी अखबार में छपे मेेरे एक आलेख में मैंने बताया था कि बाबा की पत्रकार वार्ता में बाडी गार्ड के रूप में वे ही चैहरे सक्रिय थे जो पूर्व में प्र’ाात भू”ाण व ‘ारद पवार की पिटाई में सामने आते रहे हैं। इस आलेख में मैंने इ’ाारा भी किया था कि ये ‘ौतानटोली कुछ नया गुल खिलाने वाली है। खेद है कि इस तरह की घटनाएं एक लंबी साजि’ा के तहत हो रही है, भले ही उसका राजनीतिक या कोई क्षणिक लाभ कतिपय लोगों को मिल जाए, लेकिन इसका दूरगामी नुसान दे’ा के लोकतंत्र को ही उठाना पड़ेगा।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि दे’ा में अब लोकप्रिय नेताओं का टोटा है। सुरक्षा या जन प्रतिनिधियों के ‘‘वी आई पी’’ बनने के कारण उनके आम लोगों से सरोकार समाप्त हो गए हैं। जनता से कटने के ही परिणाम है कि अब निर्वाचित संस्थाओं में लोकहित के मसलों पर चर्चा होती ही नहीं है। सरकार व्यापार करने लगी है और जनता की भावनाएं उसकी मूलभूत नीतियों से नदारत हो रही हैं। नेताओं के जनता के बीच जाने से बचने के लिए एक बड़ा बहाना बनते जा रहे है इस तरह के जूता-कालिख फैंकने के ऐसे कृत्य। एक बात तो तय है कि सुरक्षा बल या हथियार किसी पर हमला तो कर सकते हैं, लेकिन इस तरह की दुह्साहसपूर्ण घटनाओं को होने से रोक नहीं सकते हैं। विडंबना तो यह है कि दिल्ली पुलिस का लंबा-चैडा खुफिया अमला एक छोटे से समूह की इस तरह की छिछोरी हरकतों का पूर्वाभास नहीं लगा पाता है। यदि कुछ लोग यह अरोप लगाते हैं कि दिल्ली पुलिस का बड़ा वर्ग कट्टर-ंिहंदुवादी तत्वों का पो”ाक बन गया है तो बीते दिनों हुई कई घटनाओं को देखते हुए इससे इंकार नहीं किया जा सकता। संसद पर हमले के मुख्य सूत्रधर होने के आरोपर व अदालत से रिहा हुए प्रो. गिलानी पर कुछ साल गोली चला दी गई थी, उसके आरोपी कभी पकड़े नहीं गए। क’मीर पर बयान देने वाले प्र’ाांत भू”ाण की पिटाई हुई, उसके अगले दिन पिटाई करने वालों की जब कोर्ट में पे’ाी हो रही थी तब अत्यधिक संवेदन’ाील पटियाला हाउस कोर्ट के बाहर यही हिंदुत्ववादी गुंडों ने प्र’ाांतु भू”ाण के समर्थकों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा था। फिर इन लोगों ने ‘ारद पवांर पर थप्पड़ चलाया। इससे पहले भी यह समूह कई हरकतें करता रहा है। यह तय है कि ये लोग भाजपा को भी खुल कर समर्थन हीं करते, लेकिन कांग्रेस की तुलना में खुद को भाजपा के करीब पाते हैं। वैसे भी आर एस एस की यह कुटिल ‘ौली है कि वह गोडसे से ले कर साध्वी प्रज्ञा तक पकड़े लोगों को खुद से अलग बता देता है। खैर अपराध करने वालों के अपने रास्ते होते हैं, लेकिन दिल्ली पुलिस जैसा संगठन जब बामु’िकल 25 लोगों के संगठन की गतिविधियों की पूर्व सूचना एकत्र नहीं कर पाता है? भरोसा करना जरा मु’िकल है।
यदि राजनेता वास्तव में चाहते हैं कि वे जनता के बीच रहें, यदि वे वास्तव में चाहते हैं कि वे लोप्रिय हों तो आज वक्त आ गया है कि सभी दलों को एक जुट हो कर कौन-किसका है, इसको पीछे छोड़ कर इस बात की साजि’ा के खुलासे के लिए मांग करना चाहिए कि प्र’ाांत भु”ाण् पर हमले से ले कर बाबा रामदेव की पत्रकारवार्ता में मौजूदगी और उसके आगे कांग्रेस मुख्यालय वाली घटना के पीछे असल मकसद क्या है। क्या ये पूरी घटनाएं एकदूसरे से जुड़ी हुई हैं? भंगत सिंह के नाम का इस्तेमाल करने वाले इन लोगों को पैसा-इमदाद कौन दे रहा है ? कांग्रेस मुख्यालय पर ये लोग दो गाडि़यों में भर कर गए थे, कामरान भी कांस्अीट्’ानल क्लब तक एक वेगन-आर कार से गया था। जाहिर है कि ये लोग साधन -संपन्न हैं। जब मुझ जैसा एक पत्रकार पहले से भांप सकता है कि बाबा रामदेव के साथ आए लोग वही हैं जो पहले भी हंगामें करते रहे हैं, फिर पुलिस या बाबा यह क्यों नहीं भांप पाए? असल खेल कुछ भी हो, लेकिन याद रखें कि यदि यह सब चलता रहा तो नेताओं का आम लोगों से रहा-बचा संपर्क भी समाप्त हां जाएग- जूता,’याही, गाली कहीं भी उछल सकती है। ऐसी चीज जिसके कोई स्थाई नि’ाान नहीं होते, लेाकतंत्र को स्थाई नुकसान दे जाएगा।

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