Monday, August 30, 2021

❤ ख़ुदा का महल ❤ ( -12

 गुरु नानक साहिब जब काबा में जो मक्का शरीफ़ में है, क़ाज़ी रूकनुद्दीन से मिले, तो उसने पूछा कि ख़ुदा का महल कैसा है ? उसकी कितनी खिड़किया और दरवाज़े  हैं ? कितने बुर्ज हैं ? कितने कँगूरे हैं ? 

अब ये कोई मामूली सवाल नहीं थे, गहरे विचार के योग्य थे । गुरु साहिब ने जवाब दिया कि इस शरीर (जिस्म) के 

बारह बुर्ज हैं ( तीन दाहिनी बाँह के जोड़, तीन बाईं बाँह के जोड़ और दोनों टाँगों के तीन-तीन जोड़, इस प्रकार कुल बारह हुए ), 

नौ दरवाज़े  ( दो कान, दो आँखें, दो नासिका के सुराख़, एक मुँह और दो सुराख़ नीचे के ), 

बावन कँगूरे हैं  ( हाथ-पैरों के बीस नाख़ून और बत्तीस दाँत ),

दोनों आँखे दो खिड़किया हैं ।

महल बहुत अजीब और बे-मिसाल है ।


गुरु साहिब कहते हैं :

" ऊपर खास महल पर देवै बांग खुदाए ।"*

( * भाई बालेवाली जन्म साखी, पृ - 214-15 )

" अर्थात : आपके शरीर (जिस्म) के अन्दर ख़ुदा बाँग दे रहा है । यह शरीर ही ख़ुदा की मसजिद है । हम बाहर माथे रगड़ते हैं । क्या कभी किसी को वह बाहर मिला है

किसी को नहीं । बाँग (शब्द धुन) तो हरएक के अंदर हो रही है, लेकिन लोग सोये हुए हैं ।


" सुते बांग न सुन सकन रिहा खुदाइ जगाइ ।"*

( * भाई बालेवाली जन्म साखी, पृ - 214-215 )

" वह मालिक तो जगाना चाहता है लेकिन कोई जागता ही नहीं ।"


" सुती पई निभाग बस सुने न बांगां कोइ ।"*

( * भाई बालेवाली जन्म साखी, पृ - 215 )

" वे लोग बदक़िस्मत है जो रात को जागकर उस बाँग को नहीं सुनते ।"


" जो जागे सेइ सुने सांईं संदी सोइ ।"*

( * भाई बालेवाली जन्म साखी, पृ - 215 )

" जो जागता है, उसकी सुरत शब्द में लगती है, वही मालिक की आवाज़ यानी शब्द को सुनता है ।"


पुस्तक :  " परमार्थी साखियाँ "

( महाराज सावन सिंह जी )

( साइंस आँफ़ द सोल रिसर्च सेंटर )

" राधास्वामी सत्संग ब्यास "

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