आधुनिक पत्रकारिता और उसका संदर्भ
इंतखाब आलम
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इंतखाब आलम
आधुनिक पत्रकारिता पर आज हम अगर नजर डालें तो पायेंगे कि वर्तमान समय में इसका स्वरुप ही बदल गया है। कभी मिशन से शुरुआत करने वाली पत्रकारिता आज कहां पंहुच गई है किसी से भी छिपा नहीं है। लोकतंत्र का चौथा खंबा आज अपनी अस्मिता को बचाने की गुहार लगा रहा है। महात्मा गांधी का कहना था कि पत्रकारिता को हमेशा सामाजिक सरोकारों से जुड़ा होना चाहिए, चाहे इसके लिए कोई भी कीमत चुकानी पड़े। एक पत्रकार समाज का सजग प्रहरी है,उसमें मानवीय मूल्यों की समझ होना बेहद जरुरी है। तभी वो समाज से जुड़े मुद्दों को सरकार के सामने उचित ढंग से रख पायेगा।
लेकिन वर्तमान परिदृश्य बिल्कुल बदल गया है,आज पत्रकारिता को मानवीय और सामाजिक मूल्यों से कोई सरोकार नहीं। सनसनीखेज खबरें,पेड न्यूज,पीत पत्रकारिता, स्वहित आज पत्रकारिता पर भारी पड़ गया है। आज देश के हर गली मुहल्ले में लाखों छुटभय्यै पत्रकार दिखाई दे रहे हैं। इनका न तो पत्रकारिता से कोई वास्ता है न ही कोई सरोकार, ये बस समाज में अपना रुतबा और कमाई के लालच में पत्रकार बन बैठे हैं। देश के कई अच्छे पत्रकारों को हाशिए पर डाल दिया गया है। आज चाहे प्रिंट हो या इलैक्ट्रानिक मीडिया केवल सामाजिक सरोकारों का दंभ भरते दिखाई देते हैं। कोई भी समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने का प्रयास नहीं करता,बस केवल सरकार की कमियों का हवाला देकर अपना पल्ला झाड़ लेता है।
अगर मीडिया चाहे तो सरकार की योजनाओं को आम गरीब जनता तक पंहुचा सकता है,लेकिन वो भला ऐसा क्यों करेगा। उसे तो नेताओं से संबंध बनाने से फुरसत मिले तब न। मीडिया आज भी देश के एक खास वर्ग तक ही सीमित है। गरीबों के हक के लिए लड़ने वाले पत्रकार अब शायद गिने-चुने ही हैं,वरना अधिकतर तो सिर्फ रौबदाब झाड़ने के लिए ही हैं। क्या कारण है कि मीडिया वो सब नहीं कर पा रहा है जो उसे करना चाहिए,क्या उसके लिए कोई मानक तय है या फिर वो खुद अपने आप से लाचार है। लेकिन अगर ऐसा होता तो शायद मीडिया आज इतना मजबूत न होता। कहने का मतलब ये है कि अगर मीडिया देश की समस्याओं को उजागर कर दूर करने का प्रयास नहीं कर सकता तो उसे सरकार की कमियों को उजागर करने का भी कोई हक नहीं।
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