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मशहूर टेलीविजन प्रोग्राम कौन बनेगा करोड़पति में एक बार सवाल पूछा गया था, ”जिन्ना हाउस कहां है?” करीब तीन चौथाई लोगों ने इसे पाकिस्तान के शहरों में बताया, जबकि सही जवाब था मुंबई। जी हां, कभी अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई में देश का नेतृत्व करने वाले जिन्ना का मकान आज भी हिन्दुस्तान की व्यवसायिक राजधानी मुंबई में मौजूद है। लेकिन आज यह इतना बदहाल है कि इसे ऐतिहासिक धरोहर कहने में भी शर्म आती है।
पिछले दिनों मुंबई में था। सन् 1857 और 1947 के बीच स्वतंत्रता संग्राम में गुमनाम वीर योद्धाओं और शहीदों के जीवित वंशजों की खोज में जो देश की आजादी के 65 साल बीतने पर भी गुमनाम जिन्दगी जी रहे हैं। इस दरम्यान मुंबई स्थित मोहम्मद अली जिन्ना के निवास स्थान भी गया। स्थानीय पुलिसकर्मियों, मकान की देख रेख करनेवाले श्री दुबे जी और अन्य गणमान्य व्यक्तियों से बातचीत की। मेरे पास आवाक रह जाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था। हम चाहे भारत-पाकिस्तान संबंधों के बारे में कार्यालय में बैठकर चाहे जितना भी ढिन्ढोरा पीट लें कि हम सही दिशा की ओर उन्मुख हैं सच्चाई यह है कि सरकारी स्तर पर हम आज भी उनते ही कन्जेर्वेटिव हैं जितना 65 साल पहले थे।
सरकार की ढीली-ढाली नीति, न्यायपालिका प्रक्रिया और कुछ दबंग लोगों की निगाह के कारण मोहम्मद अली जिन्ना का दक्षिण मुंबई के मालाबार हिल स्थित 2, मौंटप्लीजेंट रोड (अब भाऊसाहेब हीरेमार्ग) भवन अपनी किस्मत पर आज भी रो रहा है और सालों से इंतजार कर रहा है अपने नए स्वामी का जो इसे फिर से संवारे।
सन् 1936 में लगभग दो लाख रूपये की लागत पर बनी और तीन एकड़ मे फैली मोहम्मद अली जिन्ना की यह कोठी, जो किसी जमाने में साउथकोर्ट के नाम से जानी जाती थी, आज जहरीले सापों का घर बन गई है। यह अलग बात है कि भवन के 100 गज की दूरी पर महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री का आवास है। समुद्र की ओर मुख किये इस भवन का निर्माण क्लोड बाटली ने यूरोपियन स्टाइल से किया था। यह भवन स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरु, सरदार बल्लभ भाई पटेल और अन्य नामी-गिरामी लोगों को देखा हैं। आज इस भवन की अनुमानित कीमत 80 करोड़ से भी अधिक होगी और इस बहुमूल्य भवन पर किसी का भी दिल आ सकता है चाहे कोई भी हों?
यह भवन विवादस्पद है और मुंबई उच्च न्यायलय में पेंडिंग है। इस बीच सार्क देशों ने भारत सरकार से अनुरोध किया है कि चुंकि भारत में सार्क का कोई अधिकृत कार्यालय नहीं है और सार्क देशों के कला और संस्कृति को आपस में देखने-दिखाने के लिए यह भवन बहुत ही उपयुक्त होगा, इसलिए इस भवन को सार्क को दे दिया जाये। इस बात पर टिपण्णी करते हुए, महाराष्ट्र सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है, ”मुफ्त में कौन इसे नहीं लेना चाहेगा और खास कर तब, जब सरकार भी उसका साथ दे !”
नियमतः, विशेष कर सर्वोच्च न्यायालय के एक मुकदमे के निर्णय के बाद, इस भवन पर बिना किसी हिचकिचाहट से मोहम्मद अली जिन्ना के वंशजों का हक बनता है लेकिन देखना यह है कि उनके वंशज कितने सामर्थवान हैं और सरकार की नियत उनके प्रति कैसी है? जो भी हो, सार्क ने इस भवन के गेट पर अपना दावा ठोंक दिया है और एक बोर्ड लटका दिया है जो यह कहता है कि प्रपोज्ड साईट फॉर साउथ एशिया सेंटर फॉर आर्ट एंड कल्चर।
बहरहाल, पिछले दिनों देश में राजा महमूदाबाद और उनकी सम्पत्ति के हकदार बहुचर्चित रहे। यह मामला क्या केवल राजा साहब की सम्पत्ति तक ही सीमित रहेगा या फिर कानून के दायरे में अन्य पाकिस्तानियों की सम्पत्तियां जो भारत में हैं, उन पर भी लागू होगा ? चूंकि यह सुप्रीम कोर्ट का निर्णय है, इसलिये पाकिस्तान चले गए अनेक मुहाजिर इस मामले में अपनी सम्पत्तियों के बारे में दावा पेश कर सकते हैं। यदि कानून राजा मेहमूदाबाद के उत्तराधिकारियों को उनकी सम्पत्ति लौटा देने का हुक्म देता है, तो फिर पाकिस्तान चले गए अन्य लोगों को क्यों नहीं ? यह तो एक प्रकार का विवाद का पिटारा है, जिसे भारत सरकार ने खोल दिया है। जूनागढ से लगाकर हैदराबाद चले गए मुहाजिरों की बांछे खिल गई है। कुछ ही दिनों में इस प्रकार के विवादों का ढेर लग जायेगा।
बंटवारे के बाद जो पाकिस्तान चले गए उनके परिवार के बहुत सारे वंशज आज भी भारत में रहते हैं, और वे किसी न किसी दस्तावेज के आधार पर यह चुनौती देंगे कि वह अमुक व्यक्ति का कानूनी उत्तराधिकारी है, इसलिये अमुक सम्पत्ति उसकी है और उसे वह संपत्ति मिल जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय इस दिशा में उसके लिए सहायक बनेगा और भारत में रह गए पाकिस्तानियों के सगे संबंधियों को उक्त अचल सम्पत्ति पर अधिकार मिल जाएगा। भारत सरकार ने राजा मेहमूदाबाद सहित इस प्रकार के भगोडों की कुल 2186 सम्पत्ति जब्त की थी। इसमें 1100 सम्पत्ति के अकेले दावेदार राजा मेहमूदाबाद के पुत्र अमीर मोहम्मद खान उर्फ सुलेमान मियां को मिल जाएगी। शेष 1086 सम्पत्ति जो भारत सरकार के पास रहने वाली है। उसके दावेदार भी बिलों से निकल कर इस मांग को दोहराने वाले हैं कि उनके बाप दादा की सम्पत्ति इस निर्णय के तहत उन्हें लौटा दी जाएं। उक्त निर्णय मोहम्मद अली जिन्ना की पुत्री के लिए भी वरदान साबित होनेवाला है।
जब 1949 के कस्टोडियन एक्ट और 1965 के शत्रु सम्पत्ति कानून की बात करते हैं, तब हमारे सामने मोहम्मद अली जिन्ना, जो 1947 में पाकिस्तान चले गए थे, के मुंबई स्थित बंगले का विवाद सामने आकर खडा हो जाता है। जिन्ना के बंगले का मामला पिछले कई वर्षों से मुंबई उच्च न्यायालय में चल रहा है। जाहिर है, उनकी उक्त सम्पत्ति को कस्टोडियन कानून के अंतर्गत भारत सरकार को अधिग्रहित करने में कोई हिचकिचाहट नहीं थी। जिन्ना ने उस समय भारत में रहनेवाले उनके किसी सगे संबंधी को वारिस बनाकर यह बंगला उन्हें सौंपा नहीं था। इसलिये बंगले पर सरकार के लिए कानूनी तौर पर कब्जा करने में कोई कठिनाई नहीं थी। लेकिन जवाहरलाल नेहरू के बीच में आ जाने से ऐसा नहीं हो सका।
जब नहरी पानी विवाद संबंधी समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिये तत्कालीन सिंचाई मंत्री काका साहेब गाडगिल पाकिस्तान गए थे, उस समय नेहरू जी ने उनसे कहा था कि वे जिन्ना से पूछें कि उनके बंगले का क्या करना है? काका साहेब गाडगिल ने जब जिन्ना से पूछा तो जिन्ना एकदम भावुक हो गए और कहने लगे कि जवाहरलाल से कहो मेरा बंगला मुझसे नहीं छीने। मैंने अपना यह बंगला कितने अरमानों से बनाया है। कुछ जानकारों का मानना है कि जिन्ना ने गाडगिल जी से यह भी कहा था कि क्या पाकिस्तान में सब कुछ ठीक ठाक हो जाने के बाद मैं भारत लौट कर अपने इस बंगले में रहूं ? पाकिस्तान जिन्ना ने अपनी हठधर्मी से बना तो लिया था, लेकिन वहां जिस प्रकार उन्होंने नवाबों और जमीदांरों का उत्पात देखा और कट्टरवादी मौलाना जिस तरह से पाकिस्तान को इस्लामी देश बनाने के लिए उतावले थे, उससे घबराकर मन ही मन जिन्ना अपनी गलती पर पछताने लगे थे। लेकिन उनमें इतना नैतिक साहस नहीं था कि वे पीछे हटते और अखंड भारत के लिए फिर से तैयार हो जाते। कुल मिलाकर जिन्ना के जीवन में भारत लौटने का अवसर कभी नहीं आया और माउंट प्लेजेंट रोड स्थित उक्त बंगला ज्यों का त्यों खडा रहा।
जिन्ना की मृत्यु के समय भारत सरकार चाहती तो तुरंत हस्तगत कर लेती, लेकिन तत्कालीन कांग्रेसियों का जिन्ना प्रेम मन में से नहीं गया और वह बंगला अनिर्णित रहा। जिन्ना की मृत्यु के पश्चात् उनकी पुत्री दीना वाडिया ने उक्त बंगले का वारिसदार स्वयं को बतलाया और भारत सरकार से आग्राह किया कि उक्त बंगला उसको सौंप दिया जाए। इस बीच पाकिस्तान सरकार ने भारत से मांग की कि उक्त सम्पत्ति उसके निर्माता की है, इसलिए यादगार के बतौर उसके हवाले कर दी जाए। यही नहीं सरकार ने अपनी मंशा भी बतला दी कि वह बंगले में पाकिस्तान कौंसलेट खोलना चाहती है। जब दीना वाडिया ने अपना अधिकार जतलाया तो मामला कोर्ट में पहुंच गया। तब से शत्रु की यह सम्पत्ति कानूनी उलझनों में फंसी हुई है।
वास्तव में तो 1949 में एवेक्यू प्रोपेरटी एक्ट के तहत यह बंगला महाराष्ट्र सरकार के अधीन चला गया है। लेकिन मामला कोर्ट के तहत होने के कारण महाराष्ट्र सरकार इसको अपने कब्जे में नहीं ले सकी है। इस समय इसके दो प्रबल दावेदार हैं। एक तो 91 वर्षीय जिन्ना की पुत्री दीना जो भले ही अमेरिका में रहती हों, लेकिन दीना का कहना यह है कि वह अपने पिता की एकमात्र संतान है, इसलिए उन्हें यह जायदाद मिलना चाहिए। लेकिन जिन्ना ने 30 मई 1939 में जो वसीयत की है, वह कुछ और ही कहती है।
उक्त वसीयत के अनुसार उनकी तीन बहनें फातिमा, शीरिन और बिलकीस को उन्होंने अपनी चल अचल सम्पत्ति में हिस्सेदार बनाया है। उनके एक भाई अहमद को भी कुछ नगद धन राशि दी है। इसी प्रकार मुंबई विश्वविद्यालय और अंजुम ने इस्लाम को भी वसीयतनामे में शामिल किया है। इस वसीयत में दीना वाडिया के बारे में कहा गया है कि मैंने अपने मुवक्किल को यह बतलाया है कि मेरे दो लाख रुपए का छः प्रतिशत जोकि लगभग एक हजार रुपए होंगे उनको जीवन भर दिया जाता रहे और उनकी मृत्यु के पश्चात उनकी संतानों में दो लाख रुपये का बंटवारा कर दिया जाए। इनमें पुरुष और स्त्री के बीच कोई अंतर नहीं होगा। इस वसीयत के चौथे लाइन में लिखा गया है कि मुंबई के मालाबार हिल के माउंटप्लेंजेंट रोड स्थित घर, उसकी समस्त जमीन, घर का समस्त सामान गाडियों सहित फातेमा जिन्ना को (जिन्ना की बहन) को दे दिया जाए। दीनावाडिया ने इस वसीयत को खारिज करते हुए कहा है कि मेरे पिता श्री मोहम्मद अली जिन्ना ने ऐसी कोई वसीयत अपने पीछे नहीं छोडी है। इस बात को लेकर मुंबई उच्च न्यायालय में वर्षों से यह मामला लंबित है। इसमें दो राय नहीं हो सकती कि दीना ने जब पारसी युवक वाडिया से विवाह कर लिया उस पर जिन्ना बहुत नाराज थे। दीना ने उसी समय पाकिस्तान छोड दिया था।
जिन्ना की जब मृत्यु हुई उस समय भी दीना उनके पास नहीं थी। भाई अहमद की तो भारत में ही मृत्यु हो गई थी। दो बहने विवाद के पश्चात मुंबई में स्थायी थी और केवल फातिमा जिन्ना उनके साथ थी। जब जिन्ना ने भारत को हमेशा के लिए अलविदा किया उस समय भी फातिमा उनके साथ थी। अयूब खान के समय में फातिमा की मृत्यु हुई।चूंकि फातिमा ने अयूब खान के विरुद्ध चुनाव लडा था,उसके पश्चात दोनों के बीच अच्छे संबंध नहीं थे। एक दिन सवेरे फातिमा जिन्ना को उनके घर में मृत पाया गया। फातिमा की एक नौकरानी ने जब उन्हें सवेरे मरा हुआ पाया तब लोगों को समाचार मिला। फातिमा जिन्ना ने अपनी आत्मकथा में बहुत कुछ लिखा है । मोहम्मद अली जिन्ना जब बीमार थे, उस समय उन्हें जियारत नामक हिल स्टेशन पर रखा गया था। वहां पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री लियाकत खान ने उनके साथ ऐसा हीन व्यवहार किया उसे पढकर आज भी लोगों की आंखों में आंसू आ जाते हैं। जिन्ना की मौत के समय केवल उनकी बहन फातिमा ही उनके साथ थी।
पिछले दिनों जिन्ना के इस बंगले के उत्तराधिकारी के रूप में एक व्यक्ति का नाम और भी सामने आया। मोहम्मद इब्राहीम नामक एक व्यक्ति ने कोर्ट में याचिका दायर करके यह बतलाया कि वह फातिमा जिन्ना का लडका है। उक्त बंगला मोहम्मद अली जिन्ना ने मेरी मां के नाम पर वसीयत किया है। मेरी मां ने मुझे इस बंगले का कानूनी वारिसदार घोषित किया है। इसलिये यह सम्पत्ति दीना वाडिया की नहीं, बल्कि मेरी माता फातिमा की है। जिन्ना के इस विवादास्पद बंगले का सही वारिसदार कौन है ? इसका निर्णय करने संबंधी मुकदमे की सुनवाई मुंबई उच्च न्यायालय के दो न्यायमूर्ति डी के दिनेश और एन डी देशपांडे की खंड पीठ कर रही है। इसका निर्णय आने के पश्चात ही इस मामले का अंत आ सकेगा। लेकिन सवाल यह है कि अब तक महाराष्ट ªसरकार इस मामले में ढील क्यों दे रही है?
बहरहाल, महाराष्ट्र मुख्यमंत्री कार्यालय के एक अधिकारी का कहना है कि चुंकि यह मामला वर्षों से मुंबई उच्च न्यायालय में लंबित है इसलिए इस विषय पर किसी प्रकार की टिप्पणी करना न्यायालय का अपमान करना होगा। वैसे, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि इस मामले को बहुत ही आसानी से समाप्त किया जा सकता है। एक अन्य अधिकारी ने कहा कि मुंबई जैसे शहर में इस भवन पर कोई भी कब्जा करना चाहेगा चाहे उसके लिए कितनी ही कीमत अदा करनी पड़े। आज कि तारीख में मुंबई शहर में इस भवन की कीमत 80 करोड़ से कम नहीं होगी !
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