Sunday, August 28, 2011

जन लोकपाल विधेयक आंदोलन २०११

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जन लोकपाल विधेयक (नागरिक लोकपाल विधेयक) के निर्माण के लिए जारी यह आंदोलन अपने अखिल भारतीय स्वरूप में ५ अप्रैल २०११ को समाजसेवी अन्ना हजारे एवं उनके साथियों के जंतर-मंतर पर शुरु किए गए अनशन के साथ आरंभ हुआ, जिनमें मैग्सेसे पुरस्कार विजेता अरविंद केजरीवाल, भारत की पहली महिला प्रशासनिक अधिकारी किरण बेदी, प्रसिद्ध लोकधर्मी वकील प्रशांत भूषण, पतंजलि योगपीठ के संस्थापक बाबा रामदेव आदि शामिल थे। संचार साधनों के प्रभाव के कारण इस अनशन का प्रभाव समूचे भारत में फैल गया और इसके समर्थन में लोग सड़कों पर भी उतरने लगे। इन्होंने भारत सरकार से एक मजबूत भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल विधेयक बनाने की माँग की थी और अपनी माँग के अनुरूप सरकार को लोकपाल बिल का एक मसौदा भी दिया था। किंतु मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार ने इसके प्रति नकारात्मक रवैया दिखाया और इसकी उपेक्षा की। इसके परिणामस्वरूप शुरु हुए अनशन के प्रति भी उनका रवैया उपेक्षा पूर्ण ही रहा। किंतु इस अनशन के आंदोलन का रूप लेने पर भारत सरकार ने आनन-फानन में एक समिति बनाकर संभावित खतरे को टाला और १६ अगस्त तक संसद में लोकपाल विधेयक पास कराने की बात स्वीकार कर ली। अगस्त से शुरु हुए मानसून सत्र में सरकार ने जो विधेयक प्रस्तुत किया वह कमजोर और जन लोकपाल के सर्वथा विपरीत था। अन्ना हजारे ने इसके खिलाफ अपने पूर्व घोषित तिथि १६ अगस्त से पुनः अनशन पर जाने की बात दुहराई।

अनुक्रम

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[संपादित करें] इतिहास

[संपादित करें] अप्रैल २०११

५ अप्रैल २०११ को एक सशक्त लोकपाल विधेयक के निर्माण की माँग पर सरकारी निष्क्रियता के प्रतिरोध में अन्ना हजारे ने आमरण अनशन शुरु कर दिया। भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी इस मुहिम में अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी, प्रशांत भूषण, बाबा रामदेव एवं अन्य अनेक प्रसिद्ध समाजसेवी शामिल थे। सरकार ने इसे उपेक्षित करना जारी रखा। इस अनशन को भारत एवं शीघ्र ही विश्व के संचार माध्यमों में विस्तृत रूप से प्रकाशित और प्रसारित किया जाने लगा। भ्रष्टाचार के खिलाफ जारी इस कोशिश को शीघ्र ही व्यापक जनसमर्थन मिलने लगा। भारत के प्रायः सभी शहरों में युवा सड़कों पर उतर आए एवं इसके समर्थन में प्रदर्शन किया तथा पर्चे बाँटे।
अन्ना हजारे के अनशन के देशव्यापी जन आन्दोलन के रूप में फैल जाने से चिंतित सरकार ने जनलोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने के लिये झटपट एक समिति की घोषणा की। उसने १६ अगस्त से पहले संसद में एक मजबूत लोकपाल विधेयक पास कराने पर भी सहमति प्रकट कर दी। इस तरह यह अनशन समाप्त हुआ और भ्रष्टाचार के विरुद्ध पनपता जन आंदोलन मजबूत लोकपाल के निर्माण की आशा के साथ समाप्त हुआ। किंतु सरकारी मंशा संदिग्ध थी इसलिए अन्ना हजारे ने साथ ही घोषणा की कि यदि आगामी १५ अगस्त तक अपेक्षित लोकपाल विधेयक निर्मित नहीं हुआ तो वे १६ अगस्त से पुनः अनशन पर जाएँगे।

[संपादित करें] लोकपाल मसौदा समिति

अप्रैल में किए गए अन्ना हजारे के अनशन की समाप्ति की शर्तों के अनुरूप सरकार ने १० सदस्यीय लोकपाल मसौदा निर्माण समिति के निर्माण की घोषणा की। इसमें सरकार के ५ एवं नागरिक समाज के ५ प्रतिनिधि रखे गए। अन्ना हजारे ने सरकार के संवैधानिक प्रावधानों की बाध्यता वाले तर्क का विरोध न करते हुए किसी मंत्री को समिति का अध्यक्ष होना स्वीकार कर लिया। किंतु इस समिति के मंत्रियों ने अपनी मनमानी की। प्रधानमंत्री और न्यायधीशों को लोकपाल के दायरे में लाने के मुद्दे पर नागरिक समाज के प्रतिनिधियों और सरकार के बीच विरोध बना रहा। केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि भविष्य में क़ानून बनाने के लिए नागरिक समाज की राय नहीं ली जाएगी। [1] अंततः मंत्रियों ने अन्ना हजारे द्वारा प्रस्तुत जन लोकपाल के सभी महत्वपूर्ण सुझावों को मानने से इनकार कर दिया। दिखावे के लिए जन लोकपाल के वे सभी बिंदु मान लिए गए जो सरकारी मंत्रियों और सांसदों, एवं न्यायधिशों को लोकपाल की पहुँच से बाहर रखते थे। अंततः सरकारी मंत्रियों के रवैये से निराश अन्ना हजारे के साथियों ने जन लोकपाल का मसौदा अलग से निर्मित किया। और इस तरह समिति ने दो मसौदे का निर्माण किया जिसे केंद्रीय मंत्रिमंडल के सामने रखा गया। वहाँ भी मंत्रियों के मसौदे को तो पूर्णतः प्रस्तुत किया गया किंतु जन लोकपाल का सारांश रखा गया। और अपेक्षा के अनुरूप मंत्रिमंडल ने मंत्रियों के मसौदे को अपनाकर संसद में पेश करने के लिए सहमति दे दी।

[संपादित करें] संसद में प्रस्तुत लोकपाल विधेयक

४ अगस्त २०११ को संसद में लोकपाल विधेयक पेश किया गया। सरकार के लोकपाल बिल में प्रधानमंत्री को उनके कार्यकाल के दौरान इसके दायरे से बाहर रखा गया है। लेकिन सभी भूतपूर्व प्रधानमंत्री इसके दायरे में हैं।
इस विधेयक के अनुसार लोकपाल कमिटी होगी जिसके चेयरमैन वर्तमान या सेवानिवृत्त जज होंगे. इसमें आठ सदस्य होंगे जिसमें से चार अनुभव प्राप्त क़ानून को जानने वाले लोग होंगे। लोकपाल में जांच की समय सीमा सात साल रखी गई है। [2]

[संपादित करें] अगस्त २०११ अनशन

भारत का ६५ वाँ स्वाधीनता दिवस समारोह अन्ना हजारे द्वारा अप्रैल के अनशन की समाप्ति की इस घोषणा की छाया में हुआ कि यदि १५ अगस्त तक सरकार ने लोकपाल विधेयक पास नहीं कराया तो वे पुनः अनशन करेंगें। १५ अगस्त से कई दिन पूर्व ही यह स्पष्ट हो चुका था कि १६ अगस्त से घोषित अनशन जरूर होगा। सरकार ने इसे रोकने की हर तरह की कोशिश आरंभ कर दी। दिल्ली पुलिस ने १ अगस्त तक जंतर मंतर पर अनशन की अनुमति देने से इनकार कर दिया। इसके पश्चात अन्ना हजारे ने चार अन्य स्थान सुझाकर वहाँ अनशन करने की अनुमति माँगी किंतु वह भी नहीं दी गई। अंततः १३ अगस्त को अन्ना हजारे ने घोषणा की कि यदि उन्हें अनशन की इजाजत नहीं दी गई तो वे जेल भरो आंदोलन शुरु करेंगे। साथ ही उन्होंने पानी भी त्याग देने की घोषणा की। दिल्ली पुलिस ने जेपी पार्क में अनशन करने की अनुमति २२ प्रतिबंधों के साथ दी। अन्ना हजारे ने इनमें से ६ शर्तों को मानने से इनकार कर दिया। इनमें प्रदर्शनकारियों की संख्या ५००० तक सीमित रखने, अनशन ३ दिन तक ही करने, अनशन स्थल पर लाउडस्पीकर का प्रयोग न करने, टेंट न लगाने आदि की शर्तें शामिल थीं। [3]
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भारत के ६५ वें स्वतंत्रता दिवस समारोह के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित करते हुए एक तरफ तो भ्रष्टाचार को समाप्त करने की इच्छा जताई मगर साथ ही उसके लिए किसी भी तरह के प्रदर्शन को असंवैधानिक करार दिया। अन्ना हजारे सारा दिन राजघाट पर चिंतन करते रहे और शाम को अनशन के जारी रखने की घोषणा की। 'उन्होंने कहा, "हम सुबह अनशन के लिए जेपी पार्क जाएँगे. हमें पता चला है कि वहाँ धारा १४४ लगी है पर अगर हमें वहाँ जाने से मना किया तो हम उसी जगह बैठ जाएँगे कि ले चलो जहाँ चलना है। प्रशासन उन्हें जहाँ भी ले जाए उनका अनशन वहीं होगा, "हम जेल में अनशन पर बैठेंगे, वहाँ ले गए और अगर फिर छोड़ दिया तो वापस जेपी पार्क पर आकर बैठ जाएँगे।" [4]
१६ अगस्त भारतीय सत्ता और जनता की शक्ति की परीक्षा का दिन था। पुलिस ने अनशन से निबटने की पूरी तैयारी कर रखी थी। अनशन शुरु करने के लिए तैयार होते हुए अन्ना एवं उनके साथियों को पुलिस ने दिल्ली के मयूर विहार स्थित सुप्रीम इन्क्लेव से करीब साढ़े सात बजे अनशन शुरु करने से पहले ही गिरफ्तार कर लिया। [5] पुलिस ने वहां मौजूद लोगों को बताया कि वो अन्‍ना को अनशन स्‍थल ले जा रहे हैं। उन्होंने जीवन अनमोल अस्पताल के पास मीडिया और अन्‍ना समर्थकों को आगे बढ़ने से रोक दिया। गिरफतार कर दिल्ली के सिविल लाइन्स पुलिस मेस ले जाये जाने के फौरन बाद उन्होंने वहीं अपना उपवास आरंभ कर दिया और पानी लेने से भी इनकार कर दिया। [6] दिल्ली की एक विशेष अदालत में आगे आंदोलन न करने और अपने समर्थकों को आंदोलन करने के लिए न कहने जैसी शर्तों वाले निजी मुचलका न देने के बाद अदालत ने अन्ना हज़ारे और उनके सहयोगियों को सात दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया। पुलिस ने उन्हें तथा अन्य कार्यकर्ताओं को तिहाड़ जेल भेज दिया।

[संपादित करें] देशव्यापी प्रदर्शन

अन्ना हजारे की गिरफ्तारी के बाद पूरे देश में जम्मू से कर्नाटक तक और कोलकाता से जयपुर तक सैकड़ों लोगों ने सड़कों पर उतर कर विरोध प्रदर्शन और जेल भरो आंदोलन शुरू हो गया। केवल दिल्ली में ही 3 हजार से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया। दिल्ली पुलिस ने दिल्ली के 12 स्टेडियमों को जेल में तब्दील कर दिया। [7] महाराष्ट्र के अहमदनगर ज़िले में स्थित अन्ना हज़ारे के गाँव रालेगण सिद्धि में उनकी गिरफ़्तारी की ख़बर पहुँचते ही गाँव निवासी अपने जानवरों सहित सड़क पर आ गए और रास्ता रोक दिया। दुकानें और स्कूल बंद रहे तथा सैंकड़ों लोगों ने उपवास आरंभ गर दिया। देश की वाणिज्यिक राजधानी मुंबई के आज़ाद मैदान में बडी़ संख्या में लोगों ने एकत्रित होकर जनलोकपाल बिल का समर्थन और अन्ना हज़ारे की गिरफ़्तारी का विरोध किया। पुणे और नासिक में 'मी अन्ना हज़ारे' यानी मैं अन्ना हज़ारे लिखी हुई गाँधी टोपियाँ पहने लोगों ने मोर्चा निकाला। पटना में गाँधी मैदान के पास कारगिल चौक से लेकर डाकबंगला चौराहा और बेली रोड तक अलग-अलग जत्थों में लोग सड़कों पर निकले। जिनमें रोष था किंतु वे हिंसा या तोड़फोड़ जैसी कार्रवाई नहीं कर रहे थे। उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में उच्च न्यायालय के अधिवक्ताओं ने हड़ताल कर दिया। जयपुर में अन्ना के समर्थन में उद्योग मैदान में तीन दिनों का क्रमिक अनशन करने का निर्णय लिया। चंडीगढ़, पंजाब और हरियाणा में विभिन्न स्थानों पर वकीलों, शिक्षाविदों और कार्यकर्ताओं ने रैलियाँ निकाली। पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता सहित राज्य के विभिन्न हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुए।
हैदराबाद में दो जगहों पर बड़े प्रदर्शन हुए। इंदिरा पार्क में सामाजिक कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया और सौ लोग अनशन पर बैठे। दूसरी तरफ तेलुगु देशम पार्टी ने एक रैली निकाली और अपने नेता चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व ने दिन भर का अनशन किया। विजयवाड़ा, वारंगल, तिरुपति और विशाखापट्टनम आदि में भी अन्ना के समर्थन में प्रदर्शन हुए। तमिलनाडु के चेन्नई, कोयबंटूर और मदुराई सहित कई शहरों में विरोध प्रदर्शन हुए। केरल और कर्नाटक में भी बड़ी संख्या में लोग विरोध प्रदर्शन के लिए सड़कों पर उतरे। [8] शाम को दिल्ली के इंडिया गेट और छत्रसाल स्टेडियम में सैकड़ों लोगों ने इकट्ठा होकर मोमबत्तियाँ जलाकर विरोध प्रदर्शन किया। यह प्रदर्शन १७ अगस्त को भी तिहाड़ जेल में बंद अन्ना हजारे के समर्थन में जारी रहा। मुंबई में ५ बड़ी रैलियाँ निकाली गई। पटना में जुनियर डॉक्टरों ने हड़ताल किया। भोपाल में स्कूली बच्चों, छात्रों और प्राध्यापकों, वकीलों एवं कई सरकारी कर्मचारियों ने प्रदर्शन में भाग लिया। दिल्ली में छत्रसाल स्टेडियम प्रदर्शन कारियों का कारागार बना रहा। अंदर और बाहर हजारों लोग जमा थे जिन्होंने अन्ना की ही तरह रिहा होने से इनकार कर दिया। शाम चार बजे हजारों लोगों ने स्वतः ही इंडिया गेट पहुँचकर जंतर-मंतर की ओर मार्च शुरू कर दिया। [9]

[संपादित करें] तिहाड़ जेल में

अन्ना को मिल रहे देशव्यापी समर्थन के दबाब में सरकार ने उन्हें मुक्त करने का फैसला किया। १६ अगस्त की ही शाम साढ़े सात बजे तक दिल्ली पुलिस ने विशेष अदालत से अन्ना की रिहाई के लिए आवेदन किया जिसे मान लिया गया। लेकिन ने अन्ना ने रिहाइ के बाद अपने गाँव लौट जाने या दिल्ली में तीन दिन अनशन कर लेने की शर्त के साथ रिहा होने से इनकार कर दिया और तिहाड़ में ही रात बिताई। जेल के कई कैदियों ने उनके समर्थन में भोजन लेने से इनकार कर दिया। जेल के बाहर हजारों लोगों का हुजूम उनका समर्थन करने के लिए डटा रहा। अन्ना ने बिना शर्त प्रदर्शन करने की अनुमति मिलने तक तिहाड़ जेल में ही अनशन जारी रखने का फैसला किया। १७ अगस्त को दिन भर दिल्ली पुलिस अन्ना को तिहाड़ से बाहर करने के लिए माथा-पच्ची करती रही। उसने अन्ना तथा उनके रिहा साथियों किरण वेदी तथा उनके समर्थन में पहुँचे लोगों मेधा पाटकर, स्वामी अग्निवेश, आदि से भी बात की। शाम तक दिल्ली पुलिस ने उन्हें अनशन के लिए रामलीला मैदान का प्रस्ताव दिया जिसे अन्ना ने स्वीकार कर लिया। मगर उन्होंने दिल्ली पुलिस के ३ दिन का प्रदर्शन करने की शर्त को मानने से इनकार कर दिया। उन्हें बीमार बताकर तिहाड़ से बाहर करने के लिए बुलाए गए एंबुलेंस को अन्ना समर्थकों ने जेल तक पहुँचने ही नहीं दिया। दिल्ली पुलिस ने लोगों पर बल-प्रयोग का साहस नहीं किया। १७ अगस्त की रात भी तिहाड़ ही आंदोलन की धूरी बना रहा। अन्ना कम-से-कम ३० दिनों तक अनशन से कम पर राजी नहीं थे। देर रात को दिल्ली के पुलिस आयुक्त ने किरन बेदी, प्रशांत भूषण, मनीष सिसौदिया और अरविंद केज़रीवाल वाली अन्ना टीम के साथ बैठक की। [10]
तीन दिन तिहाड़ जेल में गुजारने के बाद जब अन्ना हजारे पौने 12 बजे बाहर निकले तो जोश से भरे हुए दिखे। उन्होंने इंकलाब जिंदाबाद और भारत माता की जय के नारे के साथ अपने समर्थकों का जोश बढ़ाया। समर्थकों को संदेश देने के बाद अन्ना हजारे जुलूस के साथ मायापुरी की ओर रवाना हो गए। खुले ट्रक में अन्ना के जुलूस के साथ- साथ हजारों लोगों की भीड़ हाथ में तिरंगा लिए उनके साथ पैदल मार्च कर रही थी। दिल्ली की सड़कों पर ऐसा नज़ारा शायद ही पहले देखा गया हो , जब तेज बारिश में हाथ में झंडा लिए नारे लगाते हुआ जनसैलाब आगे बढ़ा। मायापुरी चौक पर पहुंचने के बाद अन्ना कार से राजघाट पहुंचे।

[संपादित करें] रामलीला मैदान पर

तिहाड़ जेल में ३ दिन बिताने के बाद रामलीला मैदान को अनशन के लिए तैयार कर दिए जाने पर अन्ना हजारे जुलूस के साथ मायापुरी और राजघाट होते हुए 18 अगस्त को दोपहर बाद सवा दो बजे वहाँ पहुंच गए। वहाँ उनके आने का सुबह से इंतजार कर रहे समर्थकों ने नारों के साथ उनका स्वागत किया।

[संपादित करें] पहला संवोधन

रामलीला मैदान में मंच पर आते ही अन्ना ने भी भारत माता की जय , इंकलाब जिंदाबाद के नारों के साथ अपने समर्थकों का अभिवादन किया और उन्हें अपना संदेश दिया- "1942 में हमारे देश में एक क्रांति हुई थी , जिससे अंग्रेज चले गए थे। अंग्रेज चले गए , लेकिन भ्रष्टाचार खत्म नहीं हुआ। इसलिए अब आजादी की दूसरी लड़ाई की शुरुआत हो गई है। देश के सभी लोगों ने मेरे भाई , मेरी बहन , युवा - युवतियों ने यह जो मशाल जलाई है , इस मशाल को कभी बुझने नहीं देना। चाहे अन्ना हजारे रहे न रहे मशाल जलती रहेगी। अभी एक लोकपाल नहीं इस देश में पूरा परिवर्तन लाना है। देश के गरीब महकमे को हम कैसे महल दे सकेंगे यह सोचना है। क्रांति की शुरुआत हो चुकी है। मैं आज ज्यादा कुछ नहीं बोलूंगा क्योंकि पिछले तीन दिनों में मेरा वजन 3 किलो कम हो गया है , लेकिन आप लोग जो आंदोलन देश में चला रहे हैं उसकी ऊर्जा मुझे मिल रही है। '
कई देशों को युवकों ने बनाया है , मुझे पूरा विश्वास है इस देश का युवा जग चुका है और अब इस देश का भविष्य उज्ज्वल है। इन गद्दारों ने देश को लूटा है अब हम भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं करेंगे। अपनी आजादी को हम हरगिज भुला सकते नहीं। सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं। मैं खुश हूं कि कोई तोड़फोड़ नहीं हुई और न ही राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुंचा। अब मैं ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा , लेकिन मैं आपसे फिर बात करूंगा। "

तिहाड़ के बाहर अन्ना का संदेश मंगलवार से अनशन पर बैठे अन्ना ने तिहाड़ के बाहर समर्थकों को सम्बोधित करते हुए पहले भारत माता और वंदेमातरम के नारे लगाए। उन्होंने कहा , '1947 में अधूरी आजादी मिली। 1947 में मिली आजादी के लिए 1942 में आंदोलन शुरू हुआ था और अब 16 अगस्त से दूसरी आजादी की लड़ाई शुरू हो गई हैं जिसे आपको अंजाम तक पहुंचाना है। उन्होंने कहा कि अन्ना रहे या न रहे लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ यह मशाल जलती रहनी चाहिए। अन्ना ने कहा , ' जेल के बाहर 4 दिनों से बैठे आप लोगों को मैं धन्यवाद देता हूं और बच्चे , बूढ़े और युवाओं से अपील करता हूं कि वे अधिक से अधिक संख्या में रामलीला मैदान पहुंचे। ' उन्होंने समर्थकों से अपील की कि कोई तोड़फोड़ और राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचाएं और ट्रैफिक का पूरा ध्यान रखें। छोटे से अपने संदेश में उन्होंने समर्थकों से कहा कि वह अब उनसे रामलीला मैदान पर ही बात करेंगे। इसके बाद एक खुले ट्रक में सवार होकर अन्ना जुलूस के साथ मायापुरी रवाना हो गए।
इससे पहले अन्ना के प्रमुख सहयोगी केजरीवाल ने कहा कि इस आंदोलन के दौरान किसी भी राजनीतिक पार्टी के नेता को अन्ना के मंच पर जाने की इजाजत नहीं दी जाएगी। हां , यदि कोई हमारे समर्थन में आता है तो उसका स्वागत है। केजरीवाल से यह पूछे जाने पर कि बीजेपी के कार्यकर्ता इसमें बढ़ - चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं , तो उन्होंने कहा , ' हम किसी भी पार्टी के कार्यकर्ता और नेता को मना नहीं कर रहे हैं , उनका स्वागत है। वे यहां आकर अन्य समर्थकों के बीच बैठ सकते हैं। '
रामलीला मैदान में अन्ना की अनशन की तैयारी जोर शोर से चल रही है। रातभर काम चलता रहा। सबसे पहले अन्ना के लिए मंच बनाने का काम शुरू हुआ। टीम अन्ना ने कहा कि अन्ना मंच पर अकेले ही बैठेंगे। मैदान का जितना हिस्सा ठीक हो चुका था , उसमें साउंड सिस्टम भी लग चुका था। मोबाइल टॉयलेट्स भी मंगवाए जा चुके थे। मंच पर बैठे अन्ना दूर बैठे लोगों को भी साफ नजर आ सकें , इसके लिए यहां 10 एलसीडी स्क्रीन भी लगाए जाएंगे।
गुरुवार को सुबह करीब आठ बजे जब एमसीडी के लोग रामलीला मैदान पहुंचे तो यहां का हाल बेहद ही खस्ता था। चारों तरफ कीचड़ और जगह जगह गड्ढे। एमसीडी ने करीब 250 लोगों को यहां काम पर लगा दिया। कीचड़ इतना ज्यादा था कि शाम होने तक भी मैदान के करीब 30 % हिस्से पर ही काम हो पाया। सुबह 10 बजे एमसीडी के डिप्टी मेयर अनिल शर्मा यहां पहुंचे। उनके आने के बाद काम में तेजी आ गई। उन्होंने बताया कि हमने जल बोर्ड से पानी का इंतजाम करने के लिए और शेल्टर बोर्ड से मोबाइल टॉयलेट का इंतजाम करने के लिए कहा है। पार्किंग का इंतजाम पुलिस करेगी लेकिन हमारी सभी पार्किंग अन्ना समर्थकों के लिए खुली रहेंगी।
शुक्रवार सुबह से रामलीला मैदान में बड़ी संख्या में पुलिस कर्मी तैनात कर दिए गए। मेन गेट के पास पुलिस ने मेटल डिटेक्टर के साथ ही स्कैनिंग मशीन भी लगा दी। स्निफर डॉग से पूरे मैदान की जांच की गई। इसके बाद पुलिस ने लोगों के मैदान पर आने पर पाबंदी लगा दी। यहां काम कर रहे लोगों के अलावा , अन्ना टीम के सदस्य ही अंदर आ जा रहे थे। सुबह से अन्ना टीम के वॉलेंटियर्स यहां पहुंच गए थे। उन्होंने बताया कि हम हर पल की जानकारी अरविंद केजरीवाल तक पहुंचा रहे हैं और वह अन्ना को इस बारे में बता रहे हैं।
मैदान के बाहर मेला लग चुका है। खोमचे रेहड़ी वालों के साथ साथ तिरंगे झंडे बेचने वालों ने भी मोर्चा संभाल लिया है। अन्ना के अनशन ने तिरंगे झंडे का भाव भी बढ़ा दिया है। जो झंडा पहले 5 रुपये में मिलता था , वो उसके लिए यहां 10 से 20 रुपये तक वसूले जा रहे हैं। शर्ट की जेब पर पिन से लगाया जाने वाला छोटा सा फ्लैग भी 10 रुपये से कम में नहीं मिल रहा है। एक तरफ जहां झंडे के नाम पर लूट मची है , तो दूसरी तरफ रेहड़ी खोमचे वालों को भी बिक्री का नया फंडा मिल गया है। मैदान के बाहर छोले कुलचे बेच रहा एक शख्स लोगों को आकर्षित करने के लिए आवाज लगा रहा था - अन्ना कुलचा खा लो।
फ्री ठंडा पानी रेहड़ी पर बिकने वाला ठंडे पानी का एक गिलास पीने के लिए आमतौर पर एक रुपया खर्च करना पड़ता है , लेकिन अन्ना के एक समर्थक ने रामलीला मैदान के अंदर कई रेहडि़यां लगवा दी थीं और उसके समर्थन का तरीका यह था कि इन रेहडि़यों पर फ्री में ठंडा पानी पिलाया जा रहा था। पुलिस वाले , वॉलंटियर्स , मीडियाकर्मी व अन्य लोग इसका पूरा फायदा उठा रहे थे।

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