Thursday, August 4, 2011

भगतसिंह के प्रेरणाश्रोत थे शहीद कर्तार सिंह सराभा

अरविन्द विद्रोही
सरदार भगत सिंह के प्रेरणाश्रोत थे कर्तार सिंह सराभा।भगतसिंह के पास सदैव उनका चित्र रहता था,भगत सिंह के शब्दों में- यह मेरा गुरू,साथी व भाई है। गावँ सराभा जनपद लुधियाना में इकलौते पुत्र के रूप में जन्म लेने वाले माँ भारती के इस लाल की जिन्दगी का एक ही लक्ष्य,एक ही इच्छा थी-क्रान्ति।अल्पायु में ही पिताजी का देहावसान हो जाने के पश्चात् दादा की स्नेहिल छावं में आपका पालन-पोषण हुआ।नवीं कक्षा के बाद आपने अपने चाचा के घर रहकर दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1910-1911 के वक्त आप कॉलेज में दाखिला लिये।यह आन्दोलन का समय आपके भीतर देशप्रेम की भावना को अंकुरित करने में सहायक सिद्ध हुआ।1912 में आप सान्फ्रान-सिस्को-अमेरिका पॅंहुचे। गोरों की जबान से डैम हिन्दू और ब्लैक मैन आदि सुनते ही सुनते ही वे पागल हो जाते।भारत की इज्जत,सम्मान की धज्जियां उधड़ते देखना उनका कोमल मन सहन नहीं कर पाता।घर-परिवार की याद आने पर गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ अपना देश भारत नजर आता।यह असम्भव था कि कर्तार सिंह सराभा को चैन मिलता।आज भारत की जो दुर्दषा है वो अपने ही धरा के लोगों के कारण है परन्तु उस समय गुलामी का अतिरिक्त दंश कोढ में खाज का कार्य कर रहा था।मन में विचार आया कि यदि शान्ति से, ब्रितानिया हुकूमत के आगे गिड़गिड़ाने से मुल्क आजाद न हुआ तो देश किस तरह से आजाद होगा?फिर किशोर सराभा क्रान्ति के पथ पर चलने का दृढ़ निश्चय करके,अपना सर्वस्व भारत माँ को अर्पण करने की ठानकर,भारतीय मजदूरों के बीच क्रान्ति की भभूत का वितरण करने में लग गया।भारत की आजादी किस राह से लायी जाये इस पर सराभा ने गहरा मनन् किया था। अपमान की,गुलामी की जिन्दगी से मौत हजार दर्जा अच्छी-यह मूलमंत्र हर मजदूर के मन में आत्मसात करा रहे थे क्रान्ति पथ प्रदर्शक कर्तार सिंह सराभा। मई 1912 में एक गुप्त बैठक आयोजित की गई। प।जाब के देशभक्त भगवान सिंह वहां पहुंचे ।लगातार जनसम्पर्क व जलसे आयोजित हुए।नवम्बर 1913 में गदर का प्रथम अंक प्रकाशित हुआ।गदर हैण्ड प्रेस पर छापा जाता था।कर्तार सिंह सराभा मतवाले नौजवान थे।प्रेस चलाते2 थक जाने पर वे गाने लगते थे-
सेवा देश दी जिन्दड़िए बड़ी औखी, गल्लां करनीआँ ढेर सुखल्लीयाँ ने।
जिन्ना देशसेवा विच पैर पाया,
उन्नां लक्ख मुसीबतां झल्लियां ने।
करतार सिंह न्यूयार्क में विमान कम्पनी में कार्य करने लगे।सितम्बर 1914 में कामागाटारू जहाज प्रकरण के प्श्चात् कर्तार सिंह,क्रान्तिप्रिय गुप्ता और एक अमेरिकी क्रान्तिकारी जैक एक साथ जापान आये और बाबा गुरदित्त सिंह से मुलाकात कर योजनायें बनाई।प्रचार युद्ध को तेज किया गया।स्टारकन के पब्लिक जलसे में क्रान्तिपुत्रों ने आजादी और बराबरी की कसमें खायीं एवं आजादी का झण्डा फहराया।सभी क्रान्तिकारियों ने भारत लौटने का संकल्प लिया।
चलो चलें देश के लिए युद्ध करने,
यही आखिरी वचन और फरमान हो गये।
कर्तार सिंह गजब के उत्साही और जोशीले थे। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद वे अमेरिका से भारत आये।दिसम्बर 1914 में मराठा नौजवान विष्णु पिंगले भी आ गये।इनकी कोशिश से श्री शचीन्द्रनाथ सान्याल और श्री रासबिहारी बोस आये।क्रान्तिकारी योद्धा रासबिहारी बोस के साथ मिलकर कर्तार सिंह सराभा ने सम्पूर्ण भारत में पुनः एक बार गदर करने की योजना बनाई।तारीख तय हुई 21 फरवरी 1915।भारतीय फौजों को अपने पक्ष में करना एक बहुत बड़ा काम था।हथियार,गोलाबारूद,काफी धन सभी वस्तुओं का योजनापूर्वक प्रबन्ध किया।देश के सभी क्रान्तिपुत्रों में जोश की लहर दौड़ पडी।सर्वत्र संगठन किया जाने लगा!
गदर पार्टी के सारे कार्य सुनियोजित ढ़ग से होते थे।21 फरवरी 1915 को बर्मा,सिंगापुर समेत सारे भारत में क्रान्ति होनी थी,लेकिन होनी को कुछ और मंजूर था।पंजाब पुलिस का जासूस सैनिक कृपाल सिंह क्रान्तिकारियों की पार्टी में शामिल हो चुका था।पैसे के लिए उसने अपना जमीर बेच दिया।तैयारी की सूचना उसने अंग्रजों को दे दी। परिणामस्वरूप समस्त भारत में धरपकड़,तलाशियां और गिरफतारियां हुईं। अनेक क्रान्तिकारी गिरफतार हुए,कुछ भूमिगत हुए,तो कुछ काबुल की तरफ निकल गये। विफल होने की ऐसी स्थिति में रासबिहारी बोस मायूस होकर लाहौर के एक मकान में लेटे थे।कर्तार सिंह भी वहीं चारपाई पर आकर दूसरी तरफ मुहॅं करके लेट गये।दोनो ने आपस में कोई बात नहीं की,लेकिन चुपचाप ही एक दूसरे के हालात समझ गये होंगें।इनके हालात का अनुमान हम क्या लगा सकते हैं-
दरे-तदबीर पर सर फोड़ना शेवः रहा अपना,
वसीले हाथ ही न आये किस्मत आजमाई के।
कर्तार सिंह सराभा की इच्छा थी कि आजादी मिले या लड़ते-लड़ते मौत।वे फिर अलख जगाने निकल पड़े।सरगाोधा के नजदीक चक्क नम्बर 5 में पहुँच कर उन्होंने विद्रोह की चर्चा छेडी़।आप यहाॅं पर पकड़ लिए गये।मस्त मौला कर्तार सिंह के आर्कषक व्यक्तित्व से सभी प्रभावित होते थे।मुकदमा चला।साढ़े अठारह वर्ष की उम्र थी।सबसे कम उम्र के क्रान्तिकारी थे सराभा।आपके बारे में जज ने लिखा-वह इन अपराधियों में,सबसे खतरनाक अपराधियों में एक है।अमेरिका की यात्रा के दौरान और फिर भारत में इस षड़यन्त्र का ऐसा कोई हिस्सा नहीं जिसमें इसने महत्वपूर्ण भूमिका न निभाई हो।दौरान-ए-मुकदमा आपने बयान में कहाःअपराध के लिए मुझे उम्रकैद की सजा मिलेगी या फांसी !लेकिन मैं फांसी को प्राथमिकता दूॅंगा ताकि फिर जन्म लेकर-जब तक हिन्दुस्तान आज़ाद नहीं हो,तब तक मैं बार बार जन्म लेकर,फांसी पर लटकता रहूंगा ।यही मेरी अन्तिम इच्छा हैं…………
चमन ज़ारे मुहब्बत में,उसी ने बाग़बानी की,
जिसने मेहनत को ही मेहनत का समर जाना।
नहीं होता है मुहताजे नुमाइश फै़ज शबनम का,
अँधेरी रातें मोती लुटा जाती हैं गुलशन में।
डेढ़ साल तक मुकदमा चलने के पश्चात् 16 नवम्बर 1915 के दिन कर्तार सिंह सराभा को विष्णु गणेश पिंगले,बख्शीश सिंह,सुरेन सिंह वल्द बूटासिंह,सुरेन सिंह वल्द ईश्वर सिंह,हरनाम सिंह और जगत सिंह के साथ फांसी पर चढ़ा दिया गया।दस पौण्ड वजन बढ़ गया था। प्रसन्नचित्त सराभा भारत माता का जयकारा लगाते हुए क्रान्ति-पथ को आलोकित कर सरदार भगतसिंह जैसा अनुयायी भारत माँ की सेवा के लिए तैयार कर,मेहनतकश-मज़लूमों की आवाज बनने के लिए,गुलामी की बेड़िया। तोड़ने के लिए हमारे बीच छोड़ गया।।।।

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