Monday, August 8, 2011

हर हाल में बने ब्लागरों का संगठन


हो सकता है कि हर बार कि तरह कुछ विघ्नसंतोषी मेरी बातों का दूसरा ही अर्थ निकाले लेकिन मैं मानता हूं कि जब रिक्शे और आटो वालों का संगठन हो सकता है तो फिर ब्लागरों का संगठन क्यों नहीं हो सकता है। दिल्ली के ब्लागर मिलन समारोह में इस बार भी यही चिन्ता उभरकर सामने आई है कि अब ब्लागरों को अपना एक मंच तैयार कर लेना चाहिए। मैं भले ही उस सम्मेलन का मौजूद नहीं था लेकिन मेरा मानना है कि वहां अविनाशजी ने जो बातें कही वह सौ-फीसदी सही है। ब्लागरों का अपना एक संगठन तो होना ही चाहिए।

वैसे तो पूरा ब्लागजगत ही एक तरह का मंच है, लेकिन यदि एक संगठन तैयार हो गया तो इस मंच की आवाज को एक सही शक्ल देने में सुविधा होगी। वर्तमान में ब्लागजगत के लोग जो कुछ लिखते-पढ़ते है वह खुद को आत्ममुग्ध रखने से ज्यादा कुछ भी नजर नहीं आता है लेकिन यदि संगठन तैयार हो जाता है यही आत्ममुग्धता शायद दूसरों के काम को अन्जाम तक पहुंचाने का सुख भी प्राप्त कर लेगी। मैं बहुत सारे मित्रों के ब्लागों पर जाता हूं। ज्यादातर ब्लाग तो कविता और कहानियां सुनाने के लिए ही एक पैर पर खड़े दिखते हैं (हालांकि इसमें बुराई नहीं है क्योंकि चाहे जो भी .. आखिरकार वे लोग नफरत फैलाने का काम तो नहीं करते) लेकिन कुछ ब्लाग तो निश्चित तौर पर नई जानकारियों और मीडिया के विकल्प के तौर पर अपना काम करते हुए नजर आते हैं। कई बार तो लगता है कि जो खबरें मीडिया के नक्कारखाने में तूती की आवाज बनकर रह जाती है उनका प्रकाशन किसी न किसी रूप में ब्लागों पर हो ही जाता है। सूचनाओं के विस्फोट से भरे इस खतरनाक समय में जबकि सारी चीजें बाजार आधारित बनती जा रही है यदि वहां हम मंच तैयार कर सकें तो इससे अच्छी बात क्या हो सकती है। हालांकि बाजार की ताकतों का मुकाबला आसान नहीं माना जाता फिर भी हस्तक्षेप या दखल को कम करके नहीं आंका जा सकता है।

ब्लागर मंच या संगठन को लेकर कुछ चिरकुट यह सवाल उठा ही सकते हैं कि इससे मठीधीशी चालू हो जाएंगी.. कुछ लोग राज करने लगेंगे। कुछ लोग अपनी चलाएंगे.. कुछ लोग अपने मतलब की बातों को परोसने के लिए एकजुटता  दिखाएंगे आदि.. आदि।

चिरकुटों के यह सवाल तब लाजिमी हो सकते हैं जब संगठन से जुड़ने वाले लोग गलत प्रवृति के निकलेंगे। गलत प्रवृतियों के लोग जहां कही भी रहेंगे वे अपने आपको बगैर चुनाव के भी स्वयंभू बताते रहेंगे। ऐसे मठाधीशों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि कोई उनका नाम लेकर दिन में कितनी बार थूकता है। चिरकुट... पद आदि पाने के लिए भी जी-तोड़ लगाने का सवाल उठाकर भ्रम फैला सकते हैं। वैसे ही जैसे किसी महापुरूष ने यह सवाल उठा दिया था कि पिछली ब्लागर मीट का अजय झा जी हिसाब दें। बहरहाल दिल्ली के ब्लागर सम्मेलन में एक नई दिशा दिखाई है। सोचिए यदि हम सबका एक संगठन दिल्ली में हो और फिर हम एक ईकाई के तौर पर उससे जुड़े रहे तो कितना मजा आएगा। मैं तो उस दिन की कल्पना करके प्रसन्नता से भर उठ रहा हूं जब मैं घर से सूटकेस तैयार कर यह कहते हुए निकलूंगा कि चार दिन बाद तो लौट ही आऊंगा, ब्लागर सम्मेलन में जा रहा हूं। और फिर सम्मेलन में जब देश-दुनिया की चिन्ता करने वाले एक से बढ़कर एक लोगों से मुलाकात होगी तो क्या नहीं लगेगा कि मेरा घर थोड़ा बड़ा हो गया है। सम्मेलन में पहुंचने के बाद जब कोई इस बात के लिए चिहुंक उठेगा कि अरे बिगुल वाले भाई... तो क्या उस खुशी को मैं अपनी आंखों के कैमरे में हमेशा के लिए कैद नहीं करना चाहूंगा। मुझे हर रोज नए लोगों से मिलना-जुलना अच्छा लगता है इसलिए मैं संगठन को बनाए जाने के पक्ष में हूं। मेरे ख्याल से आप भी होंगे , तो फिर जोर से बोलिए- कितने बाजूं कितने सर, लेले दुश्मन जान के
हारेगा हर वो बाजी खेले जब हम जी जान से

ब्लागर एकता जिन्दाबाद.
(जल्द ही छत्तीसगढ़ में भी एक ब्लागर सम्मेलन होगा और हम लोग इस बात पर मंथन करेंगे कि क्या कुछ नया कर सकते हैं। छत्तीसगढ़ का दिल दिल्ली से जुड़ा हुआ है)

Saturday, May 22, 2010


विवाद के बाद दिल्ली का ब्लागर सम्मेलन

दिल्ली में होने वाले ब्लागर सम्मेलन ने सबकी जिज्ञासाएं बढ़ा दी है। सम्मेलन की जवाबदारी अविनाश जी ने ली है। ब्लाग जगत के जितने भी मूर्धन्य है वे सभी अविनाशजी का बड़ा आदर सम्मान करते हैं इसलिए यह भी माना जा रहा है कि सम्मेलन मनोरंजक, रोमांचक होने के साथ-साथ ज्ञानवर्धक भी होगा। सम्मेलन में हर दिल अजीज बीएस पाबला जी के भी शामिल होने की सूचना है वही यह तो पक्के में तय है कि कल के सम्मेलन में हम सबके चहेते ललित शर्मा शिरकत करेंगे ही। ललित शर्माजी का नाम जुड़ते ही कोई भी सम्मेलन अपने आप इंटरनेशलन स्तर का हो जाता है। जिस प्रकार से ब्लाग जगत में उड़न तश्तरी यानी समीरलाल समीरजी का नाम बड़े ही सम्मान के साथ लिया जाता है उसी तरह से लोगों को सुख-दुख में हमेशा हंसते रहने का संदेश देने के मामले में लोग ललित शर्मा को याद करते हैं। 
कोई इसे माने या न माने लेकिन यह सच है कि पिछले तीन-चार दिनों से जब से ललित शर्मा छत्तीसगढ़ से गायब है तब से यहां एक तरह से खामोशी भी छाई हुई। मैं ललित शर्मा द्वारा स्वाभाविक ढंग से पैदा की जाने वाली हलचल को देखने और उसमें शामिल रहने का आदी हो चला हूं इसलिए उसका शहर से बाहर रहना मुझे बहुत अखर रहा हैं।

ललित अपने ब्लागर मित्रों के बीच कितना लोकप्रिय है इसका अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले दिनों जब एक झोला छाप डाक्टर की सलाह के बाद उसने ब्लागिंग को अलविदा कहा तब ब्लागजगत में एक तूफान सा ही खड़ा हो गया था। सब जानते हैं कि लोगों ने किसे समर्थन दिया था।
अब मैं सम्मेलन करने वाले आयोजकों को एक जरूरी सूचना देना चाहता हूं कि पिछले दिनों हुए विवाद के बाद एकायक आयोजित होने वाले इस सम्मेलन को लेकर एक गुट विशेष के लोगों ने अपनी पैनी निगाह भी लगा रखी है। गुट विशेष के लोग किसी तरह से इस फिराक में हैं कि सम्मेलन असफल और विवादित हो जाए। सम्मेलन के पल-पल की रपट पहुंचाने का जिम्मा भी एक आदमी को सौंपा जा चुका है। जिम्मा को आप सुपारी भी कह सकते हैं।

सूत्र बताते हैं कि सम्मेलन का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए एक अन्य ब्लागर सम्मेलन किसी दूसरे स्थान में भी कराए जाने की योजना बनाई जा रही हैं। बहरहाल एकजुट रहिए और सम्मेलन को सफल बनाने की विन्रम कोशिश जारी रखिए। सम्मेलन को लेकर मजेदार टिप्पणियां भी सामने आ रही है। अच्छा लग रहा है। चलो कोई तो है जो हंसा भी रहा हैं।

Friday, May 21, 2010


काली दुनिया का नंगा सच

वे सब प्रियंका,करीना, कैटरीना और दीपिका बनने के लिए ही घर से बाहर निकली थी, लेकिन लंपटों  की फौज उनके पीछे लग गई। किसी ने कहा कि वह उसकी जिन्दगी संवार सकता है तो किसी ने यह कहकर फुसलाया कि बस एक एलबम कर लो फिर तो फिल्मों की लाइन लग जाएगी। वे झांसे में आ गई। चकाचौंध की काली दुनिया में प्रवेश का नतीजा यह हुआ कि किसी प्रतिभा ने बिस्तर पर जाकर दम तोड़ दिया तो किसी को जहर खाकर मौत को गले लगा लिया।

जी हां..छत्तीसगढ़ फिल्म जगत का यह भी एक सच है। भले ही मोटे तौर पर दिख रहा है कि छत्तीसगढ़ का फिल्म जगत बड़ी तेजी से फल-फूल रहा है, लेकिन तल्ख सच्चाई कुछ और है। अब तक एक हीरो अनुज, खलनायक मनमोहन और निर्माता-निर्देशक सतीश जैन को छोड़कर कोई नाम ऐसा नहीं है जो स्थायित्व पा सका हो। यदि कोई पूछे कि भाई छत्तीसगढ़ फिल्मों का सुपर स्टार कौन है तो सबसे पहले अनुज का ही नाम आता है। खलनायकों में लोग मनमोहन का नाम जानते हैं, इसी प्रकार तीन सुपर-डुपर फिल्म बनाने वाले सतीश जैन को भी लोग इसलिए याद रख पा रहे  हैं क्योंकि उनका बंबईया अनुभव जलवा बिखेर रहा है।
बाकी न तो चरित्र अभिनेताओं को पहचान मिल पाई है और न ही हास्य अभिनेताओं को। हिरोइनों की दशा तो और भी खराब है। ऐसा भी नहीं है कि छत्तीसगढ़ी फिल्मों में काम करने वाली हिरोइनों ने अपने आपको स्थायित्व प्रदान करने के लिए संघर्ष नहीं किया लेकिन मुबंई में फैली हुई गंदगी ने उनके दामन को भी साफ नहीं रहने दिया है।

सब जानते हैं कि जब राज्य का निर्माण हुआ था तब एक फिल्म किस कदर से सुपर-डुपर हिट हुई थी। लगभग हर जगह से यही आवाज आती थी-आइसक्रीम खाके टूरी फरार होंगे रे.. लेकिन थोड़े समय के बाद ही फिल्म की एक टूरी (लड़की) पर राज्य के एक मंत्री की नजर पड़ गई। उन्होंने एक रेस्ट हाउस में हिरोइन को पकड़ लिया। बात आगे बढ़ पाती इससे पहले हिरोइन को चाहने वाले एक शुभचिन्तक ने एक निजी चैनल वालों को रेस्ट हाउस भेज दिया और मामला गरमा गया। जमकर अखबारबाजी हुई और कुछ दिनों के बाद ही टीवी चैनल के दफ्तरों पर छापा पड़ा और उसका संचालक जेल भेज दिया गया। जोगी शासनकाल में हुई इस घटना को लोग आज भी चटखारा लेकर याद करते हैं। मामले के  सुर्खियों में आ जाने के बाद हिरोइन ने कुछ और फिल्मों में काम किया और फिर कहां चली गई कोई नहीं जानता।

राजनांदगांव जिले की दिव्या साहू भी हिरोइन बनने के लिए रायपुर आई थी। यहां आकर उसने फिल्मों और एलबम के लिए अपना संघर्ष जारी रखा था तभी उस पर प्रीतम बार के संचालक की नजर पड़ गई। आकर्षक शरीर के धनी प्रीतम ने उस पर डोरे डाले और फिर बात फिल्मों से हटकर कही और जा पहुंची। दिव्या ने प्रीतम पर इस बात के लिए दबाव डाला कि वह उससे शादी कर लें। पहले से ही शादी-शुदा प्रीतम ने पिंड छुड़ाने के लिए अपनी पत्नी की मदद ली और फिर एक उसने पत्नी के साथ मिलकर हमेशा-हमेशा के लिए दिव्या को मौत के घाट उतार दिया। प्रीतम और उसकी पत्नी स्वीटी को तो सजा हो चुकी है लेकिन दिव्या एक सफल हिरोइन और माडल बनने से पहले ही इस दुनिया को अलविदा कहने को मजबूर हो गई।
मध्यप्रदेश के भोपाल से यहां छत्तीसगढ़ की फिल्मों में किस्मत आजमाने आई अनिंदता की कहानी भी अलग नहीं है। अनिंदता पहले से ही शादी-शुदा थी। वह अपने छोटे से बच्चे को लेकर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर चली आई थी। यहां पहुंचने के बाद किसी ने उसे टाप की हिरोइन बनाने का झांसा दिया तो किसी ने गाड़ी-घोड़े, बंगले-नौकर-चाकर सब कुछ होने का लालच दिया। बचपन से अभाव की जिन्दगी गुजर-बसर करने वाली अनिंदता झांसों में आ गई और फिर उसने सफलता का सबसे शार्टकट रास्ता अपनाया। वह कुछ फिल्मों को हासिल करने में सफल हो ही गई थी कि एक रोज राजधानी से कुछ किलोमीटर की दूरी पर उसकी लाश पाई गई। अनिंदता की गाड़ी जिस पेड़ से टकराई थी वहां महंगी सिगरेट और शराब की बोतलें मिली। खुद अनिंदता भी अच्छी हालात में नहीं मिली थी। बताते है कि उसे ठीक-ठाक दशा में  नहीं देखकर गांववालों ने गाड़ी को जलाने का प्रयास भी किया था लेकिन किसी समझदार ग्रामीण ने पुलिस को इत्तला कर दी और मामला इसलिए भी रफा-दफा हो गया क्योंकि इस बार भी हिरोइन के साथ एक नेता का पुत्र घायल मिला था।

राज्य निर्माण के बाद जब पहली बार प्रदेश में आम चुनाव हुए तब विपक्ष के एक खांटी नेता ने अपनी पार्टी को छोड़कर दूसरी पार्टी में प्रवेश ले लिया था। इस प्रवेश को लेकर बाद में यह अफवाह फैली कि नेताजी इसलिए दीगर पार्टी में आ गए थे क्योंकि किसी ने महासमुंद के रेस्टहाउस में उनकी फिल्म बना ली थी। नेताजी की सीडी सार्वजनिक हो पाती इससे पहले उन्होंने सुरक्षित ठिकाना ढूंढ लिया था। जिस अभिनेत्री के साथ नेताजी रेस्टहाउस में ता-ता थैय्या करते हुए मिले थे वे तो अब भी राजनीतिक बनवास ही काट रहे हैं लेकिन अभिनेत्री जरूर एलबम और फिल्मों में ठुमका लगा रही है। छत्तीसगढ़ की सुपर-डुपर फिल्म के एक हीरो के साथ फिल्मी अन्दाज में ही पिज्जा सेंटर और अन्य जगहों पर दिखने वाली एक हिरोइन के बारे में स्थानीय फिल्म समीक्षकों ने यह धारणा बनाई थी कि भविष्य में यह हिरोइन स्मिता पाटिल या शबाना आजमी का रिकार्ड तोड़ डालेंगी लेकिन एक रोज हिरोइन की फोटो पोर्न साइट में नजर आई तो लोगों की संभावनाओं को पलीता लग गया। एक हिरोइन ने खाड़ी देश में रहने वाले किसी युवक से ब्याह रचा लिया था लेकिन कुछ दिनों के बाद ही अभिनेत्री ने एक पत्रवार्ता लेकर युवक पर तरह-तरह के आरोप लगाए। बताते हैं कि हिरोइन अब अपने से उम्र में काफी बड़े यूं कहे एक बूढ़े को अपना सहारा बना लिया है। यह बूढ़ा अपना घर-परिवार छोड़कर फिलहाल रायपुर में ही रहता है और हिरोइन का राकेश रिंकूनाथ बना हुआ है।

रंगमंच में इधर-उधर छिटपुट रोल करने के बाद एक अभिनेत्री को भी जब उसके ड्राइवर पति ने तलाक दे दिया तो एक हीरो ने उससे नजदीकियां बढ़ाई। हीरो कुछ समय के बाद उससे पिंड छुड़ाना चाहता रहा लेकिन जब अभिनेत्री ने चार-पांच बार जहर खाया तो मामला चलो तुम्हारी जीत हुई पर जाकर टिक गया है। भिलाई की एक अभिनेत्री को जब पुलिस ने यह कहकर परेशान करना चालू किया कि वह सेक्स रैकेट चलाती है तो वह रायपुर आ गई। यहां आने के बाद उसे एलबम में काम करने का मौका मिला और फिल्मों में काम पाने के लिए संघर्ष करने वाले एक युवक का साथ भी। दोनों की दोस्ती इस कदर परवान चढ़ी कि वे सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले ही बगैर शादी के एक साथ रहने लगे। हिरोइन अपने हीरो को प्यार से चूजा कहकर बुलाती थी। फिल्म जगत से जुड़े लोग बताते हैं कि हिरोइन ने अपने चूजे को काम दिलाने के लिए निर्माताओं की चौखटों पर जमकर एड़िया रगड़ी। एक रोज जब चूजे को 20 लाख रुपए बजट की एक फिल्म में काम मिल गया तो उसने चूजी का साथ छोड़ दिया। पहले-पहल तो चूजी ने अपने चूजे को खूब समझाया लेकिन जब वह उससे शादी के लिए राजी नहीं हुआ तो चूजी ने हाथों में मेहन्दी लगाई और माथे पर सिन्दूर तेरे नाम का लगाकर थाने जा पहुंची। चूजे को जेल हो गई। इस अलगाव के बाद राजधानी के प्रशासनिक-राजनीतिक हल्कों में इस बात की जबरदस्त चर्चा है कि हिरोइन को मीडिया जगत से जुड़े होने का दावा करने वाले एक शख्स ने छत्तीसगढ़ी फिल्मों की मल्लिका शेरावत बनाने का झांसा दे रखा है। प्रदेश में ऐसा पहली बार हुआ था जब किसी कथित मीडिया कर्मी के साथ फिल्मों में काम करने वाली हिरोइन वेलन्टाइन डे के दिन ऊर्जा पार्क मे पुलिस के हत्थे चढ़ी थी। चर्चा है कि यह शख्स अब भी युवतियों, सहायक कलाकारों को हाइलाइट करने का झांसा देकर न केवल रकम ऐंठ रहा है बल्कि उनकी जिन्दगी से खिलवाड़ करने में भी लगा हुआ है। फिल्मों में असफल होने के बाद एक हिरोइन ने चुनाव मैदान में भी भाग्य आजमाया लेकिन वहां भी बात नहीं जम पाई। इसी तरह एक अभिनेत्री ने अपने से उम्र में काफी बड़े नृत्य गुरू का ही दामन थाम लिया है

बहरहाल छत्तीसगढ़ का फिल्म जगत एक खतरनाक मोड़ से तो गुजर ही रहा है। उस खतरनाक मोड़ से जहां सामने घना जंगल है और गहरी खाई भी। थोड़ा पैसा लगाकर फिल्म बनाने वाले नवधनाढ्य लोगों ने इस खाई को दलदल की शक्ल भी दे डाली है। छत्तीसगढ़ में कई फिल्मे इन दिनों फ्लोर में है लेकिन किसी से पूछिएगा कि हिरोइन कहां मिलेगी तो जवाब मिलेगा-अभी आती ही होगी एसटीडी पीसीओ से निकलकर। कम्प्यूटर सेंटर से निकलकर। एक फोन करो.. जब बोलो वहां बुला लेंगे। ऐसा भी नहीं है कि छत्तीसगढ़ी फिल्मों की हिरोइने प्रतिभाशाली नहीं है लेकिन इनकी संख्या बेहद कम है और इन क्षेत्रीय हिरोइनों पर अभी मां-बाप का पहरा खत्म नहीं हुआ है।
यदि मन हुआ तो इस मामले में दूसरी किश्त भी लिखूंगा।

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