Monday, December 20, 2010

जनता, संवाददाता और कानून"व्यावहारिक पत्रकारिता"--पत्रकार


जनता, संवाददाता और कानून


पीके खुराना
लेखक और संवाददाता में कई बुनियादी फर्क हैं। कोई कहानीकार सत्यकथाएं लिख सकता है, सत्य पर आधारित कथाएं लिख सकता है, जिनमें सत्य और कल्पना का रुचिकर संगम हो। अपनी कल्पनाशक्ति से पूरा का पूरा कथानक गढ़ सकने के लिए भी वह पूर्णत: स्वतंत्र होता है। संवाददाता को यह स्वतंत्रता उपलब्ध नहीं है। साहित्य विशुद्ध सूचना नहीं है परंतु समाचार विशुद्घ सूचना है, अत: इसका तथ्यपरक होना नितांत आवश्यक है। इसमें कल्पना की ज्यादा गुंजायश नहीं है। अक्सर समाचारों में संवाददाता अपनी टिप्पणियां नहीं जोड़ता, पर किसी घटना का विश्लेषण करते समय अथवा उसकी पृष्ठभूमि बताते समय उसे कुछ सीमा तक यह स्वतंत्रता हासिल है। समाचारों में किसी एक घटना-विशेष का विवरण होता है इस कारण उस घटना से जुड़े लोगों के नामों का उल्लेख भी समाचारों में आता है। ध्यान देने की बात यह है कि जब हम किसी व्यक्ति के नाम का उल्लेख करते हुए उसके बारे में कुछ लिखते हैं तो उसके सम्मान, उसकी प्रतिष्ठा और उसकी निजता के अधिकारों का प्रश्न भी महत्वपूर्ण हो उठता है। एक दूसरा अंतर यह है कि एक लेखक को बिना किसी समय सीमा के अपनी रचना पूरी करने का अधिकार है जबकि संवाददाता को समय सीमा के भीतर रहकर ही काम करना होता है। उसकी योग्यता ही इसमें निहित है कि वह अपने क्षेत्र में घटने वाली हर महत्वपूर्ण घटना की जानकारी अपने समाचारपत्र को तुरंत दे। परंतु संवाददाता को एक सुविधा भी है। लेखक को सजग रहकर अपने लेखन के लिए विषय ढूंढऩे पड़ते हैं और उन्हें पठनीय बनाने के लिए उनमें कल्पना के रंग भरने पड़ते हैं जिसमें ज्यादा कौशल की आवश्यकता होती है जबकि संवाददाता चूंकि घटी हुई घटनाओं का ब्योरा देता है, अत: उसे सिर्फ भाषा, शब्दों के प्रयोग तथा सूचनाओं की पूरी जानकारी की आवश्यकता होती है। पत्रकारिता एक प्रकार से जल्दबाजी में लिखा गया साहित्य है और दोनों का लक्ष्य लोकरंजन एवं लोक कल्याण ही है।
मूल आवश्यकता यह है कि संवाददाता को अपने व समाचार में उल्लिखित लोगों के कानूनी अधिकारों तथा सीमाओं की जानकारी हो, अन्यथा यह संभव है कि वह किसी की मानहानि कर बैठे और फिर अदालतों के चक्कर काटता रहे। संवाददाता की ओर से किसी गैरजिम्मेदार व्यवहार के कारण उसे अपनी नौकरी भी गंवानी पड़ सकती है।
संवाददाताओं को तीन वर्गों में बांटा जा सकता है। पहला वर्ग उन संवाददाताओं का है जो किसी समाचार पत्र के पूर्णकालिक कर्मचारी हैं और सिर्फ उसी समाचारपत्र के लिए कार्य करते हैं। संवाददाताओं की दूसरी श्रेणी अंशकालिक संवाददाताओं की है जो एक (या अधिक) अखबारों के लिए कार्य करते हैं और उन्हें एक निश्चित धनराशि के अतिरिक्त प्रकाशित समाचारों पर पारिश्रमिक भी मिलता है। अपवादों को छोड़ दें तो इन दोनों वर्गों के पत्रकारों को केंद्र, राज्य अथवा जिला स्तर की सरकारी मान्यता एवं कई अन्य सुविधाएं भी मिलती हैं। मान्यता-प्राप्त संवाददाताओं में भी दो तरह के लोग होते हैं, एक वे जिन्हें पूर्ण एक्रीडिटेशन प्राप्त है जबकि दूसरे वर्ग के संवाददाता रिकग्नाइज्ड तो होते हैं पर वे एक्रिडिटेटिड नहीं होते।
तीसरे वर्ग में हम उन संवाददाताओं को रख सकते हैं जो किसी अखबार विशेष से जुड़े हुए नहीं हैं और वे स्वतंत्र रूप से कार्य करते हुए एक साथ कई अखबारों को अपने समाचार भिजवाते हैं। स्वतंत्र संवाददाताओं को मात्र प्रकाशित समाचारों पर ही पारिश्रमिक या मानदेय मिलता है, हालांकि ऐसे अखबारों की कोई कमी कभी नहीं रही जो समाचार प्रकाशित करने के बावजूद न पारिश्रमिक देते हैं, न सूचना देते हैं और न ही प्रकाशित समाचार की कतरन अथवा अखबार की प्रति भिजवाते हैं। ऐसे संवाददाताओं के पारिश्रमिक का मामला बहुत कुछ संवाददाता की स्थिति और अखबार-विशेष की नीति पर भी निर्भर करता है।
एक सफल संवाददाता को अपने उत्तरदायित्वों तथा अपनी सीमाओं का स्पष्टï ज्ञान होना चाहिए। अखबारों में प्रकाशित समाचारों पर लोगों को विश्वास होता है और सामान्य जन पर उनका व्यापक प्रभाव पड़ता है, अत: एक संवाददाता को यह याद रखना चाहिए कि पत्रकारिता लोगों को जोडऩे के लिए है, तोडऩे के लिए नहीं। यह एक मान्य तथ्य है कि एक झूठ सौ बार बोलने से वह झूठ भी सच जैसा प्रभावी बन जाता है अत: यह ध्यान रखने की बात है कि अखबार को किसी दुष्प्रचार का साधन नहीं बनने देना चाहिए। समाज को सूचनाएं -- सही सूचनाएं -- देना संवाददाता का पावन कर्तव्य है। समाचार निष्पक्ष और मर्यादित होने चाहिएं ताकि उनसे समाज में अव्यवस्था या उत्तेजना न फैले। आधुनिकता के इस युग में अधिकांश देशों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा की जाती है। भारतवर्ष में भी संवाददाताओं को खासी स्वतंत्रता प्राप्त है। परंतु संवाददाताओं को यह याद रखना चाहिए कि उनकी स्वतंत्रता किसी दूसरे की स्वतंत्रता में खलल नहीं डाल सकती। इसके अतिरिक्त संवाददाताओं को कुछ कानूनी प्रावधानों का भी ध्यान रखने की आवश्यकता होती है। इनका मोटा-मोटा विवरण इस प्रकार है ::
# बलात्कार का समाचार देते समय समाचार में बलात्कार की शिकार महिला का नाम नहीं दिया जा सकता।
# दंगे अथवा तनाव की स्थिति में किसी संप्रदाय विशेष का जिक्र नहीं किया जा सकता। उत्तेजना व अशांति भडक़ाना भी जुर्म है।
# किसी सांसद द्वारा संसद में अथवा किसी विधायक द्वारा विधानसभा में कही गई किसी आपत्तिजनक बात के कारण संबद्घ सांसद अथवा विधायक पर मुकद्दमा नहीं चलाया जा सकता परंतु उसकी कही गयी बात को ज्यों का त्यों छाप देने पर संवाददाता पर मुकद्दमा चलाया जा सकता है। कुछ विधानसभाओं ने प्रस्ताव पास करके संवाददाताओं को भी इस मामले में संरक्षण देने का प्रावधान बना रखा है अत: संवाददाता को इस संबंध में अपने राज्य के नियमों की जानकारी होना आवश्यक है। वैसे भी एक व्यक्ति दूसरे की आलोचना में कोई अपशब्द इस्तेमाल करे तो उसके शब्दों को हम हूबहू नहीं छाप सकते, छापें तो मानहानि का दावा हो सकता है। लिखित शब्द की कीमत ज्यादा होती है, लिखित अथवा प्रकाशित बात से हम प्रतिबद्घ हो जाते हैं, इसलिए लिखते समय भाषा, उसके संतुलन तथा कहीं न फंसने वाली शब्दावली का प्रयोग आवश्यक है।
# आरोपों की पुष्टि न हो सकने की स्थिति में आरोपी का नाम लिखने के बजाए ‘एक मंत्री’ अथवा ‘एक बड़े अधिकारी’ आदि लिखना चाहिए।
# अदालती फैसलों की सीमित आलोचना ही संभव है। इस आलोचना में जज या मजिस्ट्रेट की नीयत पर संदेह व्यक्त नहीं किया जा सकता वरना वह अदालत की तौहीन मानी जाएगी।
# कोई मामला अदालत के विचाराधीन होने पर उसके पक्ष-विपक्ष में टिप्पणी नहीं की जा सकती।
# समाचारों में अश्लीलता एवं अभद्रता नहीं होनी चाहिए। गरिमा का ध्यान रखना जरूरी है।
# राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मामलों में सूचना का अधिकार असीमित नहीं है। राष्टï्रीय सुरक्षा एवं उसके हितों का ध्यान रखा जाना चाहिए।
# बहुत से अखबारों की नीति है कि वे वीभत्स चित्र (मृतकों आदि के चित्र) नहीं छापते। औचित्य की दृष्टिï से भी वीभत्स रस से बचना चाहिए।
# यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे पर कोई आरोप लगाए (चाहे वह हस्ताक्षरित बयान ही क्यों न हो) तो देखना चाहिए कि वे आरोप प्रथम दृष्ट्या छपने लायक भी हैं या नहीं। इसके अतिरिक्त यह भी देखा जाता है कि आरोप लगाने वाले व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा कैसी है? वह कितना जिम्मेदार व्यक्ति है? जिस पर आरोप लगाया जा रहा है, उसकी व्यक्तिगत-सामाजिक स्थिति कैसी है? वगैरह, वगैरह। अन्यथा ऐसे आरोपों का जिक्र करते समय किसी का नाम न लेने की सुरक्षित राह अपनानी चाहिए।
# इसी प्रकार समाचार लिखते समय संवाददाता द्वारा किसी को आतंकित करने के लिए, ब्लैकमेल करने के लिए, किसी की प्रतिष्ठा को अकारण चोट पहुंचाने के लिए, कोई लाभ प्राप्त करने के इरादे से, व्यक्तिगत राग-द्वेष के कारण, बदनीयती से अथवा तथ्यों के विपरीत किसी बात का उल्लेख नहीं करना चाहिए। ऐसा होने पर उसके विरुद्घ अदालती कार्यवाही की जा सकती है। यूं इस मामले में व्यावहारिक स्थिति यह है कि किसी संवाददाता के विरुद्घ मानहानि का दावा कर देना आसान नहीं है। मानहानि का दावा करने वाले व्यक्ति को हर पेशी पर अदालत में उपस्थित होना पड़ता है और अदालतों के चक्कर में काफी समय बर्बाद करना पड़ता है जिसके कारण हर व्यक्ति मानहानि का दावा करने अथवा दावा करने के बाद उसे चलाते रह पाने का साहस नहीं कर पाता।
कानूनी नियम सभी संवाददाताओं के लिए एक जैसे हैं चाहे वे किसी अखबार के संवाददाता हों अथवा किसी टीवी चैनल या केबल टीवी के प्रतिनिधि हों। मुख्य बात है मर्यादा और संयम के साथ रचनात्मक समाचार दिये जाएं। किसी भ्रष्टाचार अथवा षड्यंत्र के भंडाफोड़ का समाचार देते समय भी संयमित भाषा तथा तथ्यों पर आधारित जानकारी का प्रयोग करना चाहिए। भारतीय प्रेस परिषद् ने इस विषय में विस्तृत निर्देश जारी किये हैं। अगले अध्याय में भारतीय प्रेस परिषद् द्वारा जारी दिशा-निर्देश हू-ब-हू दिये जा रहे हैं। हर संवाददाता को इन नियमों की जानकारी होनी चाहिए और उनका पालन करना चाहिए।
मेहनत, लगन और अभ्यास से हर काम में सफलता पाई जा सकती है। पत्रकारिता का क्षेत्र भी इसका अपवाद नहीं है। यह एक प्रतिष्ठिïत व्यवसाय है और इससे जुड़े लोगों का भविष्य उज्ज्वल है। साथ ही यह भी ध्यान रखने की बात है कि इस व्यवसाय की प्रतिबद्धता समाज और देश के प्रति है। समाज में स्वस्थ माहौल, पारस्परिक सदाशयता तथा शांति की स्थापना में योगदान पत्रकार एवं समाचारपत्र का कर्तव्य है। संवाददाता की लेखनी का भटकाव समाज में विषाक्त माहौल न बनाये, यह आवश्यक है। पत्रकार की कलम अन्याय, दमन, ज्यादती, राष्ट्रघात, शोषण, विषमता एवं विद्वेष को बढ़ावा देने वाली शक्तियों के खिलाफ चलनी चाहिए। यह कहना समीचीन होगा कि पत्रकार की कलम न अटके, न भटके, न रुके और न झुके बल्कि मानवता के हित में चलती रहे तभी इस व्यवसाय को अपनाने की सार्थकता है। ***
अर्जुन शर्मा एवं पीके खुराना द्वारा संयुक्त रूप से लिखित तथा ‘इन्नोवेशन मिशनरीज़के पब्लिकेशन डिवीज़न द्वारा शीघ्र प्रकाश्य पुस्तक"व्यावहारिक पत्रकारिता" 

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