Monday, December 20, 2010

भारतीय अंग्रेजी पत्रकारितापर आरोप



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अजय गोयल
भारतीय अंग्रेजी पत्रकारिता की दो महान हस्ती इन दिनों एक दागी लॉबिस्ट, जो कथित तौर पर काले धन को वैध करने के मामले में टैक्स अधिकारियों की जांच दायरे में है, के साथ बातचीत का टेप एक्सपोज होने के बाद अपने बचाव में बयान दे रहे हैं। नीरा राडियो टेप को सुनना हजारों लोगों के लिए जिंदगी का एक अनिवार्य हिस्सा बन गया है।
अक्टूबर से भारत में भ्रष्टाचार की एक श्रृंखला शुरू हुई है। सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी के आदरणीय प्रधानमंत्री, मिस्टर क्लीन भ्रष्टाचार को रोकने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं। एक के बाद दूसरा बड़ा घोटाला सरकार के मुंह पर तमाचे की तरह पड़ रही है। मोबाइल लाइसेंस के एक टेलीकॉम घोटाले में भारतीय राजस्व को 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा है। कितने मंत्रियों, दलालों, पत्रकारों औऱ ब्यूरोक्रेटस को राष्ट्रीय राजस्व को हुए नुकसान में रिश्वत मिली है, अभी तक इसका पता नहीं चल पाया है।
जो हमें पता चला है वह यह है कि भारतीय मीडिया के कुछ बेस्ट प्रजेंटर और स्तंभकार, सरकार बनाने और मंत्रियों के विभाग के बंटबारे में उच्च स्तर पर शामिल थे। और वे लोग, यह काम सिर्फ पत्रकारिता की जिज्ञासा से ही नहीं कर रहे थे। वे सब लॉबीस्टों के साथ मिले हुए थे।
भारत की राजधानी, नईदिल्ली में जहां कांग्रेस पार्टी का शासन है, हाल ही में हुए कॉमनवेल्थ गेम घोटाले में लगभग 8 बिलियन अमेरिकी डॉलर, सड़क, निर्माण और गेम से जुड़े प्रोजेक्ट पर खर्च हुए थे, यह राशि बिना किसी ट्रेस के गायब हो गई। इस सबका कोई चिन्ह नहीं है कि दिल्ली के विकास में इतने बड़े पैमाने पर खर्च हुए। शहर में, जगह-जगह गंदगी के ढ़ेर लगे हैं, गड्ढ़े, और मुख्य सड़क ऐसे लगता है मानो चांद पर गड्ढ़े की अपेक्षा खुला सीवेज है।
सरकार के पास सार्वजनिक सेवाओं के सुधार, यथा लाखों लोगों को शौचालय एवं पीने के लिए साफ पानी उपलब्ध कराने के लिए कोई पैसा नहीं है, लेकिन प्रगति और विकास के नाम पर अंग्रेजी भाषी अखबारों में विज्ञापन देने के लिए पैसे की कोई कमी नहीं है।
उदाहरण के लिए, एक कांग्रेस पार्टी शासित राज्य अपने बजट का एक चौथाई हिस्सा, दूर-दराज के गांवों में रहने वाले अनपढ़ माता-पिता को कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए, अंग्रेजी अखबारों में खर्च करती है।
एक अंदरूनी सूत्र के मुताबिक, मीडिया संगठनों ने कॉमनवेल्थ गेम के आयोजकों से घोटालों पर अपना मुंह बंद रखने के लिए, बेशर्मी से जबरन वसूली का प्रयास किया।
भारत की अंग्रेजी भाषी मीडिया में नैतिकता, सिद्धांत और पत्रकारिता सिद्धांत में देश में शासन के मानकों की तुलना में अत्यधिक गिरावट आई है। आम जनता न तो राजनीतिज्ञों पर भरोसा करती है और ना ही मीडिया पर। इसलिए, दोनों मिलकर एक अभिनव तरीके से देश को लूट रहे हैं। भारतीय अखबार और केबल टेलीविजन ने आम चुनाव 2009 में सबसे अधिक बोली लगाने वालों को चुनावी कवरेज बेचा। चुनाव अभियान के माध्यम से मतदाताओं के लिए काल्पनिक और असत्य न्यूज़ आइटम प्रकाशित और प्रसारित किया गया। चुनाव में धांधली हुई और मीडिया ने इसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। यह भारत में पहली बार नहीं हुआ, जब खुलेआम डकैती को अंजाम दिया गया।
1000 ई.पूर्व के लगभग, फारस के महमूद गजनबी ने सोना और जवाहरात लूटने के लिए भारत पर आक्रमण करने का निर्णय लिया, जो उसने उन दिनों के रिपोर्टर्स से सुन रखा था। उसका पसंदीदा लक्ष्य सोने से लदा सोमनाथ मंदिर था, जिस पर उसने कम से कम 12 बार आक्रमण किया। उन दिनों गुगल के नक्शे, ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम या मोबाइल फोन का अभाव था। किसी ने उसे रास्ता दिखाया। इसमें, वहां के कुछ शिक्षित, महात्वाकांक्षी और स्थानीय उद्यमियों ने लूट में सक्रिय भूमिका निभाई। कुछ लोगों को उसने अपने जीते हुए प्रदेशों में गवर्नर का पद दे दिया। अन्यों को कुछ सोने के सिक्के से ही संतोष करना पड़ा। अंग्रेज हमलावरों ने भी इसी तरीके को अपनाया। शिक्षित धर्मनिरपेक्ष भारतीयों ने भारत को 200 वर्षों तक लूटने में सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी की भूमिका निभाई। यह एक परंपरा सी बन गई है – सबसे शिक्षित और उन्मुक्त भारतीय देश के सबसे बड़े दुश्मन हो जाते हैं। प्रतिभाशाली और वाचाल भारतीयों की यह परंपरा हमलावरों के हाथों खेल रही है।
1010 वर्षों से अभी तक भारतीय राजकोष की लूट जारी है। 75 वर्ष के असहाय प्रधानमंत्री जिसे (जनता) किसी ने भी चुना नहीं है के नेतृत्व में दिल्ली में खुलेआम लूट जारी है। कुख्यात टेप हमें बताते हैं कि मीडिया के कुछ लोग इस चोरी मे न सिर्फ गवाह हैं, बल्कि सक्रिय रुप से उन्होंने इसमें भूमिका निभाई। मीडिया के इन महान हस्तियों ने निरंकुश सत्ता और राजस्व चोरी में सक्रिय रुप से योगदान किया। उन्हें सब कुछ पता था। वे न सिर्फ मूक पर्यवेक्षक रहे बल्कि इतने बड़े पैमाने पर राजस्व चोरी को होने दिया।
यह सलाह दिया जाता है कि मीडिया के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कि जा सकती, क्योंकि भाषण की स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी के अंतर्गत, झूठ बोलने का अधिकार प्राप्त है। लेकिन यह गढ़ा गया और पेड न्यूज़ की तरह भारतीय प्रजातंत्र और संविधान पर एक आक्रमण की तरह है। यहां देशद्रोह से निपटने के लिए कानून हैं।
कोई भी इन चमकते प्रतीकों या अनुभवहीन होने की पत्रकारिता पर आरोप लगा सकता है, जब तक कि वह अपने सबक ठीक से सीख न लें। महमूद गजनवी के लिए शाहनामा में 60 हजार दोहे लिखने के लिए, कवि फिरदौस ने लगभग 25 वर्षों तक काम किया। गजनवी ने उसे प्रत्येक दोहे के लिए एक दीनार का वादा किया था। जब, फिरदौस 60 हजार श्लोकों के साथ गजनवी के सामने उपस्थित हुआ तो, उसने फिरदौस को धोखा देते हुए सिर्फ 200 दीनार दिए। लेकिन, हमलावरों के आज के समर्थक उन पर विश्वास नहीं करते हैं और तुरत नकद भुगतान ले लेते हैं। भारत पर शासन करने वाले और राजस्व लूटने वाले, ‘डियर अंकल’ गिरोह का हमेशा जन्मदिन या सालगिरह का आयोजन होता रहता है।

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