Saturday, July 9, 2011


वर्धा : नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा में सोमवार को कहा कि गैर-बराबरी ही अन्‍याय का मूल कारण है। पैसे और बाज़ार की व्‍यवस्‍था प्रकृति के साथ जीनेवालों का जीना दूभर कर रही है। विश्‍वविद्यालय में आगामी दिसम्‍बर माह में भारतीय सामाजिक विज्ञान परिषद का 35वां अधिवेशन आयोजित किया जाना है। इस सन्‍दर्भ में ‘शांतिपूर्ण सहअस्तित्‍व और न्‍यायपूर्ण विश्‍व’ विषय पर चर्चा हेतु आयोजित सिम्‍पोजियम में मेधा पाटकर बोल रही थी। 
हबीब तनवीर सभागार में आयोजित सिम्‍पोजियम की अध्‍यक्षता विश्‍वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय ने की। इस दौरान अधिवेशन के संयोजक डॉ.एन.पी.चौबे, स्‍थानीय संयोजक व संस्‍कृति विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. मनोज कुमार, अहिंसा एवं शांति अध्‍ययन विभाग के असिस्‍टेंट प्रोफेसर राकेश मिश्र मंचस्‍थ थे।

मेधा पाटकर ने कहा कि राजनीति से जुड़े लोग हमारा प्रतिनिधित्‍व नहीं करते अपितु वे ऐसा कानून बनाते हैं जो कार्पोरेट, मल्‍टीनेशनल्‍स व बिल्‍डरों के पक्ष में जाता है। फिर ये बहुराष्‍ट्रीय कंपनियां यहां के गरीबों, मजदूरों पर कानून की आड़ में शोषण व अन्‍याय करते हैं। ये हमें साजिशाना तरीके से प्राकृतिक संसाधनों जल, जंगल, जमीन से बेदखल करना चाहती है। सार्वजनिक संपदा निजी कंपनियों के हाथ में जा रही है, उसको टोकने व रोकने की चुनौती है। कानून आधारित शासन, जीवन और सम्‍मान के साथ जीविका एवं जल, जंगल, जमीन और खनिज जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर जनतांत्रिक प्रभुत्‍व स्‍थापित करना हमारी प्राथमिकता होगी। उन्‍होंने  कहा कि भूमंडलीकरण, निजीकरण, सेज आदि से विकास नहीं होगा।  जल, जंगल, जमीन व खनिज से जुड़े विषय पर लोकसभा से पहले ग्राम सभा में निर्णय लेना जरूरी है। लोकपाल विधेयक के संदर्भ में कहा कि इसके दायरे में कर्मचारी से लेकर राष्‍ट्रपति तक सभी आने चाहिए। उदाहरण के लिए कोई प्रधानमंत्री किसी के घर में घुसकर हत्‍या कर देता है तो क्‍या यह जुर्म नहीं है, इसलिए भ्रष्‍टाचार कोई भी करे उसके लिए कानून एक समान हो।

अध्‍यक्षीय वक्‍तव्‍य में विभूति नारायण राय ने कहा कि आज जो भयावह दृश्‍य दिखाई दे रहा है, चाहे वह प्रकृति के साथ असंवेदनशील होने का हो या हाशिए के मुद्दे हों, हमारी कोशिश रहे कि कैसे वर्तमान संकट से मुकाबला किया जा सकता है। इस दौरान डॉ.एन.पी. चौबे ने कहा कि आज हम विकास को समझ नहीं पा रहे हैं। विकास के नाम पर मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियां हमारे घरों के छत पर अनेकानेक टॉवर लगा रही हैं, जिससे रेडिएशन का खतरा उत्‍पन्‍न हो रहा है। अमेरिका का उदाहरण देते हुए उन्‍होंने कहा कि अमेरिका अपने आप को विकसित देश कहता है पर वहां भी भूखमरी का आलम है। आज जिस विकास का नारा लगाया जा रहा हैं उसमें मनुष्‍य के अस्तित्‍व के खतरे भी बढ़ रहे हैं। सामाजिक न्‍याय की बात नहीं की जा रही है। आम जनों या जरूरतमंदों को न्‍याय से वंचित रखा जा रहा है। धन्‍यवाद ज्ञापन करते हुए प्रो.मनोज कुमार ने कहा कि आज के अकादमिक को लोक में, लोक को विज्ञान में और विज्ञान को समाजोपयोगी कैसे बनाया जाय, ये हमारा प्रयास होना चाहिए। संचालन राकेश मिश्र ने किया। इस अवसर पर विश्‍वविद्यालय के अधिकारी, शैक्षणिक, गैर-शैक्षणिक कर्मी, शोधार्थी व विद्यार्थी बड़ी संख्‍या में उपस्थित थे।

मेधा पाटकर ने कहा कि पिछली बार से इस बार विव‍ि में बहुत परिवर्तन देख रही हूं। विश्‍वविद्यालय तीव्र गति से आकार ले रहा है। भाई विभूति जी थिंकटैंक हैं। इन्‍होंने अपने गांव में पुस्‍तकालय खोले। मैं वर्षों पहले, जब इनके गांव जोकहारा गयी थी, तभी से मैं विभूतिजी को जानती हूं। ये एक ऐसे शख्शि़यत हैं, जो मानवीय संवेदना के साथ-साथ ग्रामीण स्थिति और विषमता को न सिर्फ देखते हैं, अपितु समता आधारित समाज के लिए अपना योगदान भी दे रहे हैं। सिर्फ कला, साहित्‍य और संस्‍कृति ही नहीं ब

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