Saturday, July 9, 2011

डा. मनमोहन सिंह के अर्थशास्‍त्र ने आम आदमी को पूंजीपतियों का चारा बना दिया

Written by शेष नारायण सिंह Category: सियासत-ताकत-राजकाज-देश-प्रदेश-दुनिया-समाज-सरोकार Published on 08 July 2011
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केंद्र सरकार से दयानिधि मारन ने भी इस्तीफ़ा दे दिया. उनका इस्तीफ़ा इसलिए लिया गया कि सुप्रीम कोर्ट में उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी गयी थी. 2जी घोटाले में उनके शामिल होने की बात सारे देश को मालूम थी लेकिन प्रधानमंत्री ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई तब तक नहीं की जब तक कि देश की सबसे बड़ी अदालत से फटकार का ख़तरा नहीं बढ़ गया. पूर्व मंत्री, ए राजा के मामले में भी यही हुआ था. उनके केस में भी जब साफ़ हो गया कि अगर उनसे पिंड न छुड़ा लिया गया तो केंद्र सरकार पर भी आंच आ सकती है तो उन्हें हटाया गया था. इसके पहले नीरा राडिया के नेटवर्क के सार्वजनिक होने के बाद लोगों की समझ में आ गया था कि भ्रष्टाचार सत्ता की हर परत में है. लेकिन सरकारी एक्शन केवल इस बात पर हुआ कि नीरा राडिया से टाटा की बातचीत को पब्लिक क्यों किया जा रहा है.
अभी पिछले दिनों केन्द्रीय मंत्रिमंडल से मुरली देवड़ा को हटाया गया था. उनके बारे में यह चर्चा शुरू हो गयी थी कि अपने मित्र के पारिवार के उद्योगों को नीतियाँ बदल-बदल कर वे लाभ पहुंचा रहे हैं. जहां कहीं भी भ्रष्टाचार की बात होती है यह कह कर उसे ढंकने की कोशिश की जाती है कि अगर भ्रष्टाचार को मीडिया ने उछाला तो विदेशी पूंजी निवेश पर उल्टा असर पड़ेगा. सरकार का हर विभाग पूंजीपतियों के हित में काम कर रहा है. आम आदमी को केवल पूंजीपति बिरादरी के ग्राहक के रूप में देखा जा रहा है. 2जी घोटाला ऐसा उदाहरण है जिस की मदद से सरकार की नीयत को समझा जा सकता है. 2जी स्पेक्ट्रम के घोटाले में जो कुछ भी मंत्रियों ने बेचा वह सब सरकारी माल था, जनता का माल था. उसी स्पेक्ट्रम को लेकर पूंजीपति कंपनियों ने अपनी आमदनी में खरबों रुपये का इजाफा किया लेकिन जनता को क्या मिला? उसकी जेब से टेलीफोन के भारी भरकम बिल की अदायगी होती रही जबकि उसी के स्पेक्ट्रम को केंद्र सरकार के मंत्रियों को घूस देकर खरीदने वाली कंपनियों की आमदनी दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती रही.
यहाँ किसी पार्टी की निंदा  करना उद्देश्य नहीं है. इस लूट में कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार के मंत्री तो रहे ही,  बीजेपी के अरुण शौरी और प्रमोद महाजन की भूमिका भी कम नहीं है. इसलिए देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के लिए किसी एक पार्टी या नेता को ज़िम्मेदार ठहराना बेमतलब होगा. इसमें सभी शामिल हैं. लेकिन इसके लिए सबसे ज्यादा  ज़िम्मेदार डॉ. मनमोहन सिंह हैं. हालांकि अपने बैंक में उन्होंने रिश्वत का एक पैसा नहीं डाला है,  लेकिन उनकी आर्थिक नीतियाँ ऐसी हैं जो पूंजीवादी अर्थ व्यवस्था के लूट के अर्थशास्त्र की पोषक हैं. जब उन्हें चंद्रशेखर जी के प्रधानमंत्रित्व काल में सलाहकार बनाया गया था तो आईएमएफ और अमरीका ने भारत को उबारने का फैसला किया था. उसके पहले तो भारत लगभग दीवालियापन के करीब पंहुच चुका था. उस वक़्त के वित्‍तमंत्री की बाकी दुनिया में विश्वसनीयता इतनी कम थी कि रिज़र्व बैंक का सोना गिरवी रख कर रोज़मर्रा के काम के लिए क़र्ज़ लिया गया था. लेकिन मनमोहन सिंह ने अपने पूंजीवादी मित्रों को समझा दिया कि अब भारत के प्रधानमंत्री को वे समझाने की स्थिति में हैं और सब कुछ ठीक कर दिया जाएगा.
उसके बाद जो सरकार आई उसमें मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे. अपने उस अवतार में उन्होंने नेहरू की सोशलिस्टिक पैटर्न आफ सोसाइटी की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से बदल डाला और देश को पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के सांचे में डाल दिया. उनकी आर्थिक सोच और दर्शनशास्त्र ही ऐसा है जिसमें पूंजीपति की
शेषजी
शेषजी
भलाई को ही लक्ष्य में रखा जाता है. पिछले बीस साल में जब से उनकी आर्थिक नीतियाँ लागू हुई हैं गरीब आदमी केवल पूंजीपतियों के चारे के रूप में इस्तेमाल हो रहा है. सरकार का काम केवल पूंजीपतियों की झोली भरना है. लेकिन इसके लिए केवल कांग्रेस को गुनाहगार कहने से काम नहीं चलेगा. पिछले बीस वर्षों में जितने लोग और पार्टियां केंद्र की सत्ता में आई हैं सब ने मनमोहन सिंह की आर्थिक सोच को लागू किया है और वे सब बराबर की गुनाहगार हैं.

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