Wednesday, July 13, 2011

पूर्वांचलः जान देंगे, जमीन नहीं



उत्तर प्रदेश सरकार आंख-कान बंद करके काम कर रही है. भूमि अधिग्रहण मामले में बार-बार अदालत में मुंह की खाने और कई स्थानों कृषि भूमि बचाने के लिए किसान आंदोलन के उग्र रूप धारण करने के बाद भी वह चेती नहीं है. यही वजह थी कि भट्टा-पारसौल में भूमि अधिग्रहण मामले की आग ठंडी भी नहीं हो पाई थी और सरकारी नुमाइंदे पूर्वांचल के चंदौली ज़िले के कटेसर और कोडोपुर गांव में ज़मीन अधिग्रहण के लिए पहुंच गए. ख़बर सुनते ही किसान उत्तेजित होकर उसी आग में जलने लगे, जिसमें कुछ समय पहले भट्टा-पारसौल के किसान जल रहे थे. किसानों का आरोप है कि नई काशी (सांस्कृतिक हब) बसाने के नाम पर सरकार उनकी हज़ारों एकड़ ज़मीन हथियाना चाहती है. पहले तो किसानों ने शांतिपूर्ण तरीक़े से मायावती के दरबार में अपनी बात कहने की कोशिश की, लेकिन जब शासन-प्रशासन में बैठे लोगों ने उनकी नहीं सुनी तो उन्हें सड़क पर संघर्ष के लिए उतरना पड़ा. पुरखों की ज़मीन हाथ से जाते देख किसान न केवल सड़क पर उतार आए, बल्कि उन्होंने आत्मदाह की धमकी देते हुए अपने लिए चिता भी सज़ा ली. कटेसर के किसान रामलखन की पूरी चार बीघा ज़मीन जा रही थी. विरोध स्वरूप वह एक चिता पर बैठ गए और बोले जान दे दूंगा, लेकिन ज़मीन देकर अपने हाथ-पैर नहीं कटाऊंगा. जब इस बात का पता चला तो भाजपा, कांग्रेस, सपा और भाकपा (माले) के नेता भी वहां पहुंच गए. समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह यादव ने कहा कि मायावती का ज़मीन, पत्थरों और सोने-चांदी के प्रति मोह किसी से छिपा नहीं है. सपा की सरकार आने पर सभी मामलों की जांच कराई जाएगी. इस बात की भनक जब शासन को लगी तो मामला तुरंत संज्ञान में लिया गया, लेकिन उसका सारा ध्यान मामला सुलझाने से अधिक इस बात पर था कि किसी तरह किसानों को ज़मीन देने के लिए मना लिया जाए. यही वजह थी कि आंदोलन स्थल पर जब ज़िलाधिकारी विजय शंकर त्रिपाठी और पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर पूरे लाव-लश्कर के साथ पहुंचे तो एकबारगी लगा कि यहां ग्रामीण और पुलिस नहीं, दो दुश्मन देशों की फौजें आमने-सामने आ गई हों. पुलिस के हाथों में रायफलें थीं तो किसान लाठी-डंडा लिए खड़े थे.
समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह यादव ने कहा कि मायावती का ज़मीन, पत्थरों और सोने-चांदी के प्रति मोह किसी से छिपा नहीं है. सपा की सरकार आने पर सभी मामलों की जांच कराई जाएगी. इस बात की भनक जब शासन को लगी तो मामला तुरंत संज्ञान में लिया गया, लेकिन उसका सारा ध्यान मामला सुलझाने से अधिक इस बात पर था कि किसी तरह किसानों को ज़मीन देने के लिए मना लिया जाए.
आंदोलन कर रहे किसान जब किसी तरह अपनी ज़मीन देने को राजी नहीं हुए और मामला बिगड़ने लगा तो ज़िलाधिकारी ने भूमि अधिग्रहण निरस्तीकरण की स़िफारिश से संबंधित पत्र शासन को लिख दिया. इसके बाद किसानों ने अपनी मुहिम एक महीने के लिए स्थगित कर तो कर दी, लेकिन उन्हें सरकार से ज़्यादा उम्मीद नहीं थी. अपनी ज़मीन न देने पर अड़े किसानों के साथ बीती 30 मई को कई दौर की बातचीत विफल होने के बाद ज़िलाधिकारी ने आवास एवं शहरी नियोजन विभाग के प्रमुख सचिव को लिखे पत्र में कहा कि किसानों की मांग के अनुरूप वह कटेसर गांव में ज़मीन अधिग्रहण के लिए लागू की गई धारा संख्या चार और छह को निरस्त करने की स़िफारिश करते हैं. ज़िलाधिकारी ने अपने पत्र में लिखा कि आंदोलन कर रही किसान संघर्ष समिति ने एक पत्र दिया है, जिसमें कहा गया है कि भूमि अधिग्रहण के बाद किसानों के सामने रोजी-रोटी की समस्या पैदा हो जाएगी. इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए मांग पत्र में उठाए गए तथ्यों के आधार पर प्रश्नगत प्रकरण में धारा चार और छह को निरस्त करने की स़िफारिश की जाती है. प्रदेश सरकार ने 9 फरवरी, 2010 को भूमि अधिग्रहण क़ानून की धारा चार के तहत, जबकि 26 मार्च, 2011 को धारा छह के तहत अधिग्रहण की अधिसूचना जारी की थी.
किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष राम लखन यादव ने कहा कि ज़िलाधिकारी द्वारा किसानों की ज़मीन का अधिग्रहण न किए जाने का लिखित आश्वासन मिलने के बाद हमने अपना आंदोलन धारा चार और छह के निरस्त होने तक स्थगित करने का निर्णय लिया है. उन्होंने बताया कि ज़िलाधिकारी ने कहा है कि उनकी स़िफारिश पर अमल होने में एक महीने का व़क्त लगेगा, लिहाज़ा आंदोलन भी एक महीने तक स्थगित रहेगा. अगर तब तक धारा चार और छह को निरस्त नहीं किया गया तो किसान अपना आंदोलन फिर शुरू कर देंगे. राम लखन यादव ने कहा कि सरकार अगर बाज़ार मूल्य से 10 गुना ज़्यादा क़ीमत दे तो भी हम अपनी ज़मीन नहीं देंगे. उन्होंने कहा कि किसानों को प्रति बिस्वा ज़मीन के एवज में 40 हज़ार रुपये देने का प्रस्ताव किया गया है, जबकि इसका बाज़ार मूल्य 80 हज़ार रुपये प्रति बिस्वा है. किसानों ने कटेसर गांव में भूमि अधिग्रहण के ख़िला़फ बीती 24 मई से धरना-प्रदर्शन शुरू किया था. उनका कहना था कि अगर भूमि अधिग्रहण की योजना रद्द नहीं हुई तो ख़ूनी संघर्ष होगा. जानकार बताते हैं कि सांस्कृतिक हब के लिए ज़मीन अधिग्रहण होने से 1500 से ज़्यादा किसान प्रभावित होंगे. बीती 22 मई को ज़िला प्रशासन ने किसानों को आश्वासन दिया था कि उनकी मांगों पर विचार किया जा रहा है, गांव में अब और ज़मीन अधिग्रहीत नहीं की जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. मालूम हो कि वाराणसी विकास प्राधिकरण को गंगा किनारे सांस्कृतिक हब परियोजना के लिए 300 हेक्टेयर ज़मीन की आवश्यकता है, जिसमें से 121 हेक्टेयर भूमि कटेसर और शेष कोडोपुर गांव में अधिग्रहीत की जानी है. इस बीच प्रदेश सरकार ने कहा है कि किसानों की भूमि का अधिग्रहण बिना उनकी मर्जी के नहीं होगा. गृह सचिव दीपक कुमार ने कहा, ख़ुद मुख्यमंत्री मायावती कह चुकी हैं कि किसानों की ज़मीन उनकी अनुमति के बाद ही ली जाएगी. किसानों ने फिलहाल तो अपना आंदोलन स्थगित कर दिया है, लेकिन इस सवाल का जवाब मिलना बाक़ी है कि आख़िर कब तक किसानों और सरकार के बीच भूमि अधिग्रहण के नाम पर संघर्ष चलता रहेगा. यह आग पूरे प्रदेश में कहीं भी, कभी भी फैल जाती है. जब केंद्र सरकार आगामी मानसून सत्र में भूमि अधिग्रहण के लिए नई नीति लाने की बात कर रही है तो राज्य सरकार उससे पहले ज़मीन हथियाने को लेकर इतनी उतावली क्यों है? जबकि इस बात को लेकर कई जगह किसान उग्र हो चुके हैं. शासन-प्रशासन के लोग इस बात से अनभिज्ञ नहीं हैं कि किसानों के लिए भूमि अधिग्रहण का मुद्दा हमेशा संवेदनशील होता है और उसकी तलवार उनके सिर पर हमेशा लटकती रहती है. जहां भी किसी योजना-परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण प्रस्तावित है, वहां लोग गुस्से में हैं. उनका गुस्सा बढ़ने का एक कारण उनकी बात सरकारी स्तर पर न सुना जाना भी है. भूमि अधिग्रहण में अड़चन आने से कई योजनाओं-परियोजनाओं पर आगे काम नहीं हो पा रहा है.
कांग्रेस के नेता एवं सांसद जगदंबिका पाल ने किसानों की ज़मीन हथियाने को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि मायावती सरकार के पापों का घड़ा भर गया है. यह बात वह भी जानती हैं, इसीलिए ज़्यादा से ज़्यादा पैसा बटोर कर अपनी भूख शांत कर लेना चाहती हैं. भाजपा के महामंत्री डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय और चंदौली भाजपा के ज़िलाध्यक्ष राणा प्रताप सिंह ने कहा कि मायावती सरकार या उनके किसी भी नुमाइंदे को एक इंच ज़मीन नहीं लेने दी जाएगी. जनता जानती है कि वह विकास के नाम पर अपनी तिजोरी भर रही हैं. कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी भी चंदौली की घटना से नाराज़ दिखीं. उन्होंने कहा कि मायावती सरकार की कोई भी साजिश सफल नहीं होने दी जाएगी. बसपा सरकार व्यापारियों की तरह काम कर रही है. किसानों से कौड़ी के भाव ज़मीन लेकर उसे ऊंचे दामों पर बेचना सरासर अन्याय है.
उधर गांव-देहात से दूरी बनाकर चलने वाली मायावती चुनावी साल में ज़मीन अधिग्रहण के ख़िला़फ उभरा आक्रोश ठंडा करने में लगी हैं. जगह-जगह किसान आंदोलनों के बाद अपनी छवि को हुए नुक़सान की भरपाई की कोशिश के तहत वह किसानों की समस्याएं सुनने के लिए महा पंचायत जैसे हथकंडे अपना रही हैं. मुख्यमंत्री प्रदेश के विभिन्न ज़िलों के किसान प्रतिनिधिमंडलों से मुलाक़ात करके ज़मीन अधिग्रहण और खेती-बाड़ी से संबंधित समस्याएं भी सुनने लगी हैं.

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