Saturday, July 3, 2021

ग्रेशस हुज़ूर की ओर से संकटों से सुरक्षित रहने का आश्वासन*

 🙏🙏 *एक महत्वपूर्ण बचन*  🙏🙏


12 सितम्बर सन् 1981 ई० को शाम के सतसंग में सार बचन, बचन 18, शब्द चौथा पढ़ा गया। शब्द यह है-



गुरू  बिन  कभी न उतरे पार। /      नाम बिन कभी न होय उधार।।


            और उसके बाद प्रेमबिलास भाग 2 से शब्द 60 पढ़ा गया। शब्द यह है-


अरे सुमिरन करले मूढ़ जना,/         क्यों जग सँग भूल भुलाना रे।


            पहले शब्द में यह बयान किया गया है कि केवल गुरु- उनके प्रति प्रेम, उनके संग, उनकी आज्ञाओं के पालन और उनकी दया- के द्वारा ही संभव है कि जीव मुक्ति प्राप्त कर सके और दूसरे शब्द में यह वर्णन किया गया कि जीव को जन्म-मरण के चक्र के दुखों व क्लेशों से छुटकारा पाने के लिए गुरू नाम का सुमिरन करना चाहिए और संसारी कामों में नहीं फँसना चाहिए।


            इन दो शब्दों के पढ़े जाने के बाद *ग्रेशस हुज़ूर ने संगत को सम्बोधित करते हुए नीचे लिखे शब्दों में सब के दिलों में आशा और विश्वास बंधाया।*


        *“आप लोग कोई फ़िक्र न करिए जो instructions (हिदायतें) सतसंग में हों वह follow (उन पर अमल) करिये तो जिन दिक्कतों का दूसरे शब्द में बयान है वह नहीं आयेंगी।”*


            इसके बाद पाठियों को आदेश दिया कि वह प्रेम बिलास से शब्द नं. 123 पढ़ें। शब्द था-


भूल  पड़ी  जग  माहिं  भरम बस जिव भयो,


निज घर सुधि बिसराय जगत संग लग रह्यो।


            इस शब्द की अन्तिम पंक्तियाँ है-


राधास्वामी गुरू दयाल, जगत रछपाल हैं।


चरन  सरन  उन  धार  मिटें  दुख साल हैं।


            इस शब्द में भी यह फ़रमाया गया है कि जीव किस तरह ख़ुद ब ख़ुद अपने अज्ञान के कारण इस संसार के दुखों और झमेलों में फँस गया है। एक हंस, जिसको समुद्र के किनारे जाकर मोतियों से अपनी भूख मिटानी चाहिए थी, ग़लती से गन्दे तालाब में जाता है और कंकड़ पत्थर खाता है, परिणाम स्वरूप दिन रात दुख दर्द सहता है। संत सतगुरु उसकी सहायता के लिए आते हैं और उससे कहते हैं- “तुम दुख व दर्द की ग़लत जगह पर आ गए हो, मेरे साथ समुद्र पर आओ, अपनी अज्ञानता छोड़ो और सतगुरु की, जो सबके रक्षक है, शरण में आओ और तमाम दुखों से छुटकारा पाओ।”


            इस शब्द के बाद *प्रेम उपदेश से बचन नं. 103* पढ़ा गया। बचन नीचे दिया जाता है-


            *“103-* पूरी सरन का स्वरूप यह है कि सतगुरु राधास्वामी दयाल को सर्व समर्थ जाने और सब कामों में क्या संसारी, क्या परमार्थी, उन्हीं के चरनों का भरोसा अन्तर में रक्खे। दूसरे की तरफ़ चित्त न जावे। बाहरी कामों के वास्ते बाहरी सहारा जो लेवे तो कुछ हर्ज नहीं, पर मन में यह समझता रहे कि यह बाहरी आसरे भी उनकी मौज से पैदा हुए और काम देते हैं बगैर उनकी मौज के कोई भी कुछ मदद और सहारा नहीं दे सकता है। और अन्तर में यह निश्चय दृढ़ रहे कि जैसा सतगुरु राधास्वामी चाहेंगे, वैसा करेंगे, दूसरा कोई समर्थ नहीं है और न कोई बिना उनकी मौज और दया के कुछ कर सकता है। जिसकी ऐसी सरन है वह उनके भरोसे पर रहे और उनकी मौज के साथ मुवाफ़िकत करे। और जो अपने मन की हालत देख कर चित्त में डर आता है, सो यह भी दया है। ऐसा डर लेकर सरन को ज़्यादा मज़बूत करे और नहीं तो ढीलम ढाल रहेगा और चरनों में कभी कभी पुकार और प्रार्थना वास्ते प्रीति और प्रतीति के तरक़्क़ी के करना चाहिए।”          


             *इस बचन के पढ़े जाने के बाद ग्रेशस हुज़ूर ने फिर संगत को सम्बोधित करते हुए फ़रमाया-*


            यह जो बचन अभी पढ़ा गया है वह मैंने जो तीसरा शब्द पढ़वाया था उससे बिल्कुल मिलता है। तीसरे शब्द में जो instructions (हिदायतें) थे वह इस बचन में भी ज़्यादा explain (व्याख्या) करके कहे गए हैं। दूसरे शब्द में जीव की जो परमार्थी कमी या Difficulty (मुश्किल) है, कि सुमिरन और अभ्यास नहीं होता, का बयान है। तीसरे शब्द में उसको दूर करने का कुछ उपाय बताया है और बचन में उसका पूरा explanation (व्याख्या) है कि आपका क्या attitude (ढंग) हो तो वे दिक्कतें न हों।

      इस मज़मून को ख़त्म करने से पहले प्रेम बिलास से एक और शब्द जो जीव की तरफ़ से prayer (प्रार्थना) है, पढ़िए-


गुरु दयाल अब सुधि लेव मेरी।


            जब यह शब्द पढ़ा जा चुका तो *हुज़ूर ने अपना बचन जारी रखते हुए फ़रमाया-*


            “अभी पहला, दूसरा, तीसरा शब्द व चौथा शब्द जो पढ़े गये उससे एक बहुत interesting theme (रुचिकर विषय) हो गया। अगर आप जब इन को फिर पढ़ेंगे तो आपको मालूम होगा कि पहले दो शब्दों में जो instructions हैं, उन्हें आप हिदायतें या चेतावनी कह सकते हैं। उसके बाद तीसरे शब्द में समझाया गया है कि मनुष्य का व्यवहार क्या हो। उसमें सहज उपाय बताये गये हैं और जो बचन पढ़ा गया वह बड़ा apt (प्रसंगानुसार) निकला क्योंकि यह तीसरे शब्द को ज़्यादा तफ़सील के साथ explain (बयान) करता है। इस शब्द के बाद भक्त को कुदरती अहसास यह होता है कि जो कुछ बयान किया गया और परामर्श दिया गया वह सब ठीक तो है लेकिन उससे साधन कामयाबी के साथ नहीं बनता तो वह क्या करे ? तब जो चौथा शब्द पढ़ा गया वह उसी के लिए Prayer (प्रार्थना) है। उसमें प्रार्थना है कि वह दयाल भक्त की सँभाल करे और उसकी नाव को डूबने से बचाये। बाकी जो बिनती का विषय है वह उसी के Continuation (सिल्सिले) में है।


            आपको जब टाइम मिले तो यह इसी Sequence (क्रम) में पढ़िए तो उसमें जो Idea (विचार-प्रसंग) आज develop हुआ है वह अच्छी तरह से grasp (ग्रहण) कर सकेंगे।


(प्रेम प्रचारक 12-19 अक्टूबर, 1981)


                          *बचनांश*


            मैं आपसे अवश्य कहूँगा कि सच्चे मालिक को याद करने के लिये सतसंगी किसी स्थान पर एकत्रित होंगे और प्रार्थनाएँ करेंगे तो हुज़ूर राधास्वामी दयाल ख़ास दया की वर्षा उन पर करेंगे। ऐसा आप चाहे भारतवर्ष में, श्री लंका में या किसी भी देश में करें इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता।


(प्रेम प्रचारक 29 सितम्बर, 1980)

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