Tuesday, July 27, 2021

सतसंग की जरुरत क्यों?

 सत्संग क्यो जरूरी??आज का प्रभू संकीर्तन।ग्रहस्थ जीवन मे मनुष्य काम,क्रोध और अहंकार के वशीभूत रहता है।क्योंकि परमात्मा का चिंतन मनन न कर पाने से वह माया के प्रभाव में रहता है।इसी कारण दूसरो के दोष में हम ज्यादा आनन्द लेते हैं, जबकि ऐसा करने से  हमारा मन अत्यंत दूषित हो जाता है।और इस मन मे हम दूसरों के दोषों का कूड़ा भरकर इसे कूड़ादान बना लेते हैं।उत्तम जीवन के लिए हमे दुसरो के दोष नही स्वयं के दोष देखने चाहिए,ताकि हम अपने दोषों को स्वयं सुधार सकें, यही हमारे लिए उत्तम व्यवस्था होगी। बिना गलती किये कोई महान नही बनता।इसलिए स्वयं के दोषों ढूंढकर उन्हें दूर करने का उपाय करें।  जो बदला जा सके, उसे बदलिये, जो बदला ना जा सके, उसे स्वीकारिये, जो स्वीकारा न जा सके, उससे दूर हो जाइये, लेकिन खुद को खुश रखिये, क्योंकि वह भी एक बड़ी जिम्मेदारी है!अपने दोषों को दूर करने के लिए सत्संग का सहारा लें।  सत्संग से आचरण और विवेक तत्काल बदल जाते हैं।अगर नही बदले तो या तो सत्संग नही मिला या हम सत्संग में नही गये।

कथा मे रूचि नही होती तो स्पष्ट है कि हमाराअंतः करण बहुत ही दूषित है।उसे नाम जप के  अभ्यास से साबुन रूपी घोल में खूब रगड़ रगड़ कर धोएं।

तुलसी पूरब पाप ते,हरि चर्चा न सुहाय।

जैसे ज्वर के जोर ते,भूख विदा ह्वै जाय।।

भजन मे रूचि नही हो तो भी भजन करते रहो।भजन करते करते जैसे जैसे अभ्यास होगा वैसे वैसे पाप नष्ट होते है,और फिर हमें सत्संग से उत्तम कुछ  भी नही भायेगा।।जब हम सत्संग,भजन,चिंतन,मनन के सागर में डूबेंगे तो इससे सुन्दर हमे कोई सागर नही लगेगा। संसार के सारे सुख तुच्छ लगने लगेंगे।सांसारिक कार्य करते करते उसमें उलझ जाते है तो सांसारिक माया का जहर चढ़ जाता है।वह जहर सत्संग मे जाने से ठीक हो जाता है।  पद सरोज अनपायनी भगति और सदा सत्संग ! सत्संग की बातों को अपने आचरण मे लाना चाहिये।जय जय श्री राधेकृष्ण जी।

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