Friday, July 2, 2021

नये मगध में : कुछ कविताएं / राकेश रेणु

 नये मगध में -- ( 1-6)


- एक -



झोपड़ियाँ थीं नदियों के पेट में

खोलियाँ नालियों के पेट में

ढाणियाँ थीं रेगिस्तान के पेट में

घर थीं उनकी किलकारियों से गुलज़ार।

 

सड़कों के किनारे रहे सड़क बनाते

खुद सड़क बनते

पाइपों में रहे रहवासियों को पानी पहुँचाते

मल साफ़ करते

गगनचुंबी भवनों की नींव में रहे दफ़्न होते

वे हमेशा जमींदोज रहे इस तरह

कि चुँधियाती रौशनी के शहर को मालूम न चला, वे हैं

यहीं दफ़्न हैं जगह-जगह।

 

उनकी रक्त-मज्जा-अस्थियों से आबाद थी

पृथ्वी और शहर की चमक

दान कर दिए उन्होंने अपने शरीर

अस्थियों के साथ

दधीचि फिर भी नहीं कहलाए।

 

न थे वे, तो पटवारी के खातों में नहीं 

सिपहसालारों को हुक्म था वजीरों का

नजर न आएँ सड़कों पर

रेलवे स्टेशनों और बस पड़ावों पर नज़र न आएँ वे

दिखें जो कहीं जब दीये जला रहा हो देश

जमींदोज कर दिए जाएँ

दफ़्न कर दिए जाएँ समुंदर के पेट में।

 

जब साँसों पर ताला लगा आधी रात

वे घुप्प अँधेरे में दिखे

सड़क-वन-खेत-नदियाँ पार करते

रेलवे लाइनों पर दिखे

पटरियों के सहारे आगे बढ़ते

 

दिखे हर उस जगह

जो घर की और जाता दिखे।

 

घर बस एक सपना रहा 

वे बेघरबार रहे हमेशा 

जिनके कंधों पर टिकी थी धरती।

 


नये मगध में /2





उन्होंने सपने बुने घर के

और नींव हो गए

पोषण चाहा 

और फल, सब्जियों, अनाज में बदल गए

इच्छाएँ जताई जब-जब


आदरणीय,

आपके आदेशानुसार कोरोना संबंधी कुछ कविताएं 'जनपथ' के अगले अंक

के लिए भेज रहा हूँ। उम्मीद है, पर्याप्त होगी। कम लगे तो बताएं। 

सादर, 


नये मगध में


- एक -


झोपड़ियाँ थीं नदियों के पेट में

खोलियाँ नालियों के पेट में

ढाणियाँ थीं रेगिस्तान के पेट में

घर थीं उनकी किलकारियों से गुलज़ार।

 

सड़कों के किनारे रहे सड़क बनाते

खुद सड़क बनते

पाइपों में रहे रहवासियों को पानी पहुँचाते

मल साफ़ करते

गगनचुंबी भवनों की नींव में रहे दफ़्न होते

वे हमेशा जमींदोज रहे इस तरह

कि चुँधियाती रौशनी के शहर को मालूम न चला, वे हैं

यहीं दफ़्न हैं जगह-जगह।

 

उनकी रक्त-मज्जा-अस्थियों से आबाद थी

पृथ्वी और शहर की चमक

दान कर दिए उन्होंने अपने शरीर

अस्थियों के साथ

दधीचि फिर भी नहीं कहलाए।

 

न थे वे, तो पटवारी के खातों में न थे

अधिकारी की योजनाओं में नहीं

सिपहसालारों को हुक्म था वजीरों का

नजर न आएँ सड़कों पर

रेलवे स्टेशनों और बस पड़ावों पर नज़र न आएँ वे

दिखें जो कहीं जब दीये जला रहा हो देश

जमींदोज कर दिए जाएँ

दफ़्न कर दिए जाएँ समुंदर के पेट में।

 

जब साँसों पर ताला लगा आधी रात

वे घुप्प अँधेरे में दिखे

सड़क-वन-खेत-नदियाँ पार करते

रेलवे लाइनों पर दिखे

पटरियों के सहारे आगे बढ़ते

 

दिखे हर उस जगह

जो घर की और जाता दिखे।

 

घर बस एक सपना रहा 

वे बेघरबार रहे हमेशा 

जिनके कंधों पर टिकी थी धरती।

 


नये मगध में


- दो -


उन्होंने सपने बुने घर के

और नींव हो गए

पोषण चाहा 

और फल, सब्जियों, अनाज में बदल गए

इच्छाएँ जताई जब-जब

तरह-तरह की जिंसों में बदल गए।

 

उनकी पीठ पर पाँव रखकर चले लोग

फलों-सब्जियों-व्यंजनों की तरह

नये मगध के भोज्य थे वे

पोषण उनसे ही होना था मगध का।

 

उनकी ताम्र मूर्तियाँ सजाई गईं

मगध के ड्राइंगरूमों में

आदिवासी कला कहा गया जिन्हें

न जाने किस आदिम युग के नागरिक थे

जिनने भरोसा किया नये मगध के सपने पर।

 

अटूट भरोसा था उन्हें 

आदमी पर, आदमी की बात पर

घर पर, घर के आश्वासन पर

इसे जुमला मानने को कतई तैयार न थे वे।

 


नये मगध में


- तीन -


घटोत्कच जानता था

घर नहीं, चौखट नहीं

एक तिहाई आबादी के पास।

 

जानता था वह

कि वे जिनके चौखट न थे निकल पड़े हैं वापस

उनके ही सपने लिए 

जहाँ होने थे वे वहाँ थे ही नहीं कभी

एक सपना था फ़कत

चौखट का, देहरी का, घर का

जिसे ले, निकले थे वे

दूर देस, परदेस, शहर में।

 

उसी सपने को लादे पीठ पर, काँधे और

सर पर मोटरियों में बाँधे

लौटे हजारहाँ लोग

फिर उसी दिशा में

जहाँ केवल सपने बुने जा सकते थे

हकीकत में कोई संभावना शेष न थी जहाँ।

 

लौटे वे

संभावनाहीन एक जगह से

संभावनाहीन दूसरी जगह पर।

 

 


नये मगध में


- चार -


- लाखों घरों में दिए नहीं जले, महराज! 

- क्यों, ऐसी नाफरमानी क्यों? पूछा महाराज ने 

- प्रजा शोकग्रस्त है 

उनके घरों में मौत का मातम है, महामारी है।

 

- जन्म-मृत्यु मर्त्यलोक का नियम है राजन् 

कहा राजगुरु ने आगे बढ़कर, अतिशय विनम्र होकर। 

स्मृति तेज थी राजन् की 

कहा - लाखों मरते हैं लोग हर बरस, हाँ लाखों  

नानाविध, नाना रोगों से

इसमें नया क्या है – पूछा राजन ने धिक्कार कर।

 

-हम घिर गए हैं राजन चारों तरफ़ से

राजधानी घेर ली गई है, कहा दूसरे आमात्य ने भक्ति-भाव से

-कौन हैं नामुराद? किस ने की हिमाकत?

-इसी मुल्क के हैं। अपनी रियाया। अपने लोग।

-नौजवान हैं, किसान हैं, बेचैन हैं, मांगें हैं उनकी राजन!

-नाफ़रमानी उनकी नाकाबिले बर्दाश्त है

देशद्रोही हैं वे। घेर लो कीलों कंटीले तारों-बाड़ों से।

कहा राजन ने, भक्त मयूर को चुग्गा चुगाते हुए।


फिर राजन ने देशद्रोह की नई परिभाषा दी

किंचित उद्वेग किंचित मुस्कान के साथ

उसे आराम और सहारे की जरूरत थी

उसने कारागारों को बड़ा करने के आदेश दिए

मगध जनतंत्र था सो उसने पूछा इस टीप के साथ

कि साजिशें होती रहेंगी, पैदा करेंगे मुश्किलें शत्रु आगे भी      

तो क्या बंद कर दी जाएँ नृत्यशालाएँ? 

क्या खुश होना छोड़ दें श्रेष्ठिजन?

देव आराधना छोड़ दें भक्तजन? 

- नहीं राजन, कहा चिंतित राजगुरु ने 

- ऐसा न कहें देव, कहा महामात्य ने 

- नहीं-नहीं, कहा सभासदों ने।

 

- फिर मुनादी हो, कहा राजन ने

- शोग़ छोड़ दो 

- घरों को रौशन किया जाए 

-सड़क-उपवन-सरोवर-सविता तट, चतुर्दिश दीए जलें!

-खुलें देवालय, मदिरालय, नृत्यशालाएँ !

खुश होवे प्रजा शोग़ छोड़ कर 

खुश होवे, मगध में रामराज आया!

 

 

नये मगध में


- पाँच -

 

बीमारी ने रोग से लड़ने की ताकत दी 

भूख ने हार न मानने की 

बाढ़ ने बाँध बनाने की जरूरत बताई 

सूखे से मिली कुआँ खोदने की प्रेरणा।

 

मूर्खता ने ज्ञान की जरूरत बताई 

जैसे बताता आया है अंधकार जरूरत प्रकाश की। 

 

दूरियों ने पस्त नहीं किया हमें 

हौसला मजबूत किया पैदल चलने का 

वृद्धा ने संकल्प लिया, वह चलेगी 

स्कूल जाने वाला बच्चा ठिठका और चल पड़ा 

गर्भवती चली सैकड़ों कोस हजार-हजार मील  

और जन्म दिया जिजीविषा और जीवट को।

 

हमें हर बार चुनौतियों और विपदाओं ने गढ़ा।



 नये मगध में


- छह -


समय स्तब्ध है 

हवाएँ-दिशाएँ सब स्तब्ध 

मौन और आर्तनाद के बीच फ़र्क नहीं रहा  

दोनों बुनते हैं एक-सा गहरा सन्नाटा  ll

यह तुम्हें विदा देने की वेला हैं ll



🙏🙏 राकेश रेणु 🙏🙏

 


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