Sunday, January 2, 2011

अनामिका की कविता


अनामिका की कविता : चढ़कर इश्क की




चढ़कर इश्क की कई मंजिले
अब ये समझ आया
इश्क के दामन में फूल भी है
और कांटे भी
और मेरे हाथ काँटों भरा
फूल आया
————-
फूल सा इश्क पाकर
फूला न समाया
पर बेवफाई का काँटा हर फूल ने
ज़रूर चुभाया
—————-
अब तो मेरी हालत देख
दोस्त ये कहे
इश्क का तो यही ताकाज़ा है
तेरा दिल हर फूल पे
क्यों आया

कविता / आ अब लौट चलें …….



2


अगम रास्ता-रात अँधेरी, आ अब लौट चलें.
सहज स्वरूप पै परत मोह कि, तृष्णा मूंग दले.
जिस पथ बाजे मन-रण-भेरी, शोषण बाण चलें.
नहीं तहां शांति समता अनुशासन ,स्वारथ गगन जले.
विपथ्गमन कर जीवन बीता, अब क्या हाथ मले.
कपटी क्रूर कुचली घेरे, मत जा सांझ ढले.
अगम रास्ता रात घनेरी आ अब लौट चलें.

कदाचित आये प्रलय तो रोकने का दम भी है.
हो रहा सत्य भी नीलाम, महफ़िल में हम भी हैं.
जख्म गैरों ने दिए तो इतराज कम भी हैं.
अपने भी हो गए बधिक जिसका रंजो गम भी है.
हो गईं राहेंभी खूंखार डूबती नैया मझधार.
मत कर हाहाकार, करुण क्रंदन चीत्कार.
सुबह का भूला न भूला गर लौटे सांझ ढले.
अगम रास्ता रात अँधेरी, आ अब लौट चलें….

- श्रीराम तिवारी


3

 औरत



औरत तिल-तिल कर
मरती रही, जलती रही
अपने अस्तित्व को
हर पल खोती रही
दुख के साथ
दुख के बीच
जीवन के कारोबार में
नि:शब्द अपने पगचापों का मिटना देखती रही
सृजन के साथ
जनम गया शोक
रुदाली का जारी है विलाप
सूख गया कंठ
फिर भी वह आंखों से बोलती रही
जीवन के हर कालखंड में
कभी खूंटी पर टंगी
तो कभी मूक मूर्ति बनी
अनंतकाल से उदास है जीवन
पर
वह हमेशा नदी की तरह बहती रही

-सतीश सिंह

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