Saturday, January 8, 2011

jammu kashmir j&k=तिरसठ साल का इंतज़ार


तिरसठ साल का इंतज़ार

अशोक
1947 में हुए देश के विभाजन के बाद भारत और पाकिस्तान में भड़की सांप्रदायिक हिंसा में हज़ारों परिवार बिखर गए.
ऐसे ही हज़ारों हिंदू परिवार उस समय के पश्चिमी पाकिस्तान से पलायन करके जम्मू क्षेत्र में आ गए थे.
लेकिन 63 वर्ष बाद भी इन लोगों के पास भारत की नागरिकता तो है लेकिन जम्मू-कश्मीर राज्य की नहीं.
भारतीय संविधान की धारा 370 के तहत जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा हासिल है.
धारा 370 के मुताबिक़ जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासियों को ही मूल नागरिक का अधिकार मिलता है. इसे 'स्टेट सबजेक्ट' यानि मूल नागरिक कहा जाता है.

शिक्षा और नौकरी से वंचित

यही लोग ज़मीन जायदाद ख़रीद सकते है और इन्हीं लोगों को सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा का अधिकार होता है.
जिन लोगों को अभी तक ये अधिकार नहीं मिला है उनकी संख्या क़रीब डेढ़ लाख है.
ये लोग न ज़मीन और न ही मकान ख़रीद सकते है. इन्हें राज्य सरकार में नौकरी भी नहीं मिल सकती है और न ही उच्च शिक्षा पा सकते है.
जब 1947 में राज्य पर कबायली हमला हुआ तो हम यहाँ से भी पलायन कर के पड़ोसी राज्य पंजाब जाना चाहते थे. लेकिन हमें उस समय यहाँ के प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्लाह ने रोक कर आश्वासन दिया कि हमें वो सभी अधिकार मिलेंगे जो भारत के अन्य भागों में रह रहे लोगों को मिलेंगे. आज 63 वर्ष बीत गए है लेकिन कुछ नहीं मिला.
राम भगत
इसके अलावा इन लोगों को विधान सभा, स्थानीय निकायों और पंचायती चुनावों में भी वोट देने का अधिकार नहीं है. इन्हें सिर्फ़ संसदीय चुनाव में वोट डालने की अधिकार है.
80 वर्षीय मेला राम भगत जम्मू के निकट तवी नदी के तट पर कच्चे मकान में रहते है. इनके परिवार में 10 सदस्य हैं.
परिवार के मुखिया राम भगत दुखी होकर कहते है, ''इंसान होते हुए भी हमारा जीवन पशु समान है. हमारी चौथी पीढ़ी मज़दूरी कर के पेट पाल रही है. न तो हम यहाँ ज़मीन ख़रीद सकते हैं न ही हमारे बच्चे कोई नौकरी कर सकते है. हम पीढ़ी दर पीढ़ी यहाँ तवी में से रेत इकट्ठा कर के जीवन निर्वाह कर रहे हैं."
इनमें से अधिकतर लोग अनुसूचित जाति के हैं.
सुनीता रानी ने 10वीं कक्षा पास की है. अनुसूचित जाति की होने के कारण उन्हें छात्रवृत्ति मिलनी चाहिए थी.
सुनीता रानी का कहना था, "हमें तो छात्रवृत्ति भी नहीं मिलती. हमारे पास फ़ीस देने के लिए पैसे भी नहीं होते. हम तीन बहनें और एक भाई है. पिताजी मज़दूरी करते हैं. बहुत मुश्किल से गुज़ारा होता है."
55 वर्षीय अशोक कुमार भी 10वीं पास है और तब से मज़दूरी कर रहे हैं.
अशोक कुमार का कहना है, "मैं राज्य का नागरिक नहीं हूँ इसलिए मुझे नौकरी नहीं मिली. मेरे साथ के कुछ लोग रिटायर भी हो चुके हैं. मैनें किसी और की ज़मीन किराए पर लेकर उस पर कच्चा मकान बनाया हैं. ये भी बरसात में कभी-कभी गिर जाता है."

शरणार्थियों का अधिकार

कश्मीर रिफ़्यूजी महिला
रिफ़्यूजी महिला चूल्हे पर खाना पकाती हुई.
मेला राम का कहना है, ''जब 1947 में राज्य पर क़बायली हमला हुआ तो हम यहाँ से भी पलायन कर के पड़ोसी राज्य पंजाब जाना चाहते थे. लेकिन हमें उस समय यहाँ के प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्लाह ने रोक कर आश्वासन दिया कि हमें वो सभी अधिकार मिलेंगे जो भारत के अन्य भागों में रह रहे लोगों को मिलेंगे. आज 63 वर्ष बीत गए है लेकिन कुछ नहीं मिला."
उनका कहना है कि भारत के अन्य भागों में गए शरणार्थियों को सभी नागरिक अधिकार मिले हुए हैं.
मेला राम का कहना था, "डॉ मनमोहन सिंह भी तो हमारी तरह शरणार्थी थे."
उनका कहना था कि इस मामले को राजनीतिक रंग दे दिया गया है जिसके कारण उन्हें नागरिक अधिकारों से वंचित रखा गया है. इस मसले को जम्मू बनाम कश्मीर बनाया जा रहा है.

राजनीतिक रंग

शरणार्थियों के नेता लभा राम गाँधी का कहना है, "कश्मीरी नेता जम्मू के हित में यह क़दम उठाएं तो वहां उन्हें राजनीतिक हानि होती है. अगर नेशनल कांफ्रेस हमारे पक्ष में बात करती है तो पीडीपी कश्मीरियों को गुमराह करती है और अगर पीडीपी हमारा साथ दे तो उसे भी कश्मीरियों की नाराज़गी का डर है."
यही कारण है कि ये मसला अब भी जम्मू और कश्मीर केंद्रित दलों में बंट कर रह गया है.
राज्य में नेशनल कांफ्रेंस नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार है.
कश्मीरी नेता जम्मू के हित में यह कदम उठायें तो वहां उन्हें राजनीतिक हानि होती है. अगर नेशनल कांफ्रेस हमारे पक्ष में बात करती है तो पीडीपी कश्मीरियों को गुमराह करती है और अगर पीडीपी हमारा साथ दे तो उसे भी कश्मीरियों कि नाराज़गी का डर है.
लभा राम गाँधी,शरणार्थियों के नेता
नेशनल क्रांफ्रेंस और राज्य के क़ानून मंत्री अली मोहम्मद सागर कहते हैं, "यह बात स्पष्ट है कि इन को नागरिक अधिकार नहीं दिया जा सकता. यह राज्य के मूल नागरिक नहीं बन सकते. लेकिन यह एक इंसानी मसला है और हम सोच रहे हैं कि इनकी रोज़मर्रा की कठिनाइयों को देखते हुए हम किस हद तक जा सकते हैं."
राज्य में विपक्षी पार्टी पीडीपी की वरिष्ठ नेता निजामुदीन बट भी कहते है, "पश्चिमी पाकिस्तान के लोग जम्मू-कश्मीर राज्य के निवासी नहीं है. इसलिए इन्हें मूल नागरिक के अधिकार नहीं मिल सकते. ये लोग विस्थापित हैं और हमें इनके साथ पूरी हमदर्दी है. इनका पुनर्वास राष्ट्रीय स्तर पर होना चाहिए."
भारतीय जनता पार्टी भी धारा 370 को हटाने की बात करती रही है. भाजपा का मानना है कि इन शरणार्थियों को जल्द से जल्द मूल नागरिक का अधिकार दिया जाना चाहिए.
भाजापा के वरिष्ठ नेता प्रोफे़सर चमन लाल गुप्ता कहते है, "63 सालों में जिनके बच्चों को हम कॉलेज की पढ़ाई नहीं दे सकते, नौकरी नहीं दे सकते-ये उनके साथ अन्याय है. हमने ख़ुद उनको यहाँ रखा था और अब इस सूरत में जितनी जल्दी हो इन्हें नागरिक अधिकार मिलने चाहिए."
दोनों तरफ की बात करते हुए कांग्रेस पार्टी के मंत्री रमण भल्ला का कहना है, "धारा 370 के कारण इन लोगों को मूल नागिरकता तो नहीं मिल सकती लेकिन इन की कठिनाइयों को देखते हुए हम सोच रहे हैं कि इन लोगों को निवास स्थान प्रमाण पत्र मिल जाए ताकि इनको यहाँ रहने में मुश्किल न आए."
यह इंसानी मसला जब तक राजनीतिक और क़ानूनी पलड़े में झूलता रहेगा तब तक इन शरणार्थियों को इन बयानों से अंत तक जूझना पड़ेगा.

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