Sunday, April 11, 2021

गुरु दर्शन गुरु वचन अमृत जल

*जो व्यक्ति गुरु के वचनों पर*वि श्वास नहीं किया, गुरु की दवा *का जिसने सेवन नहीं किया, उसके जीवन में निरन्तर अंधेरा का वास l 

 दिखाई देगा।*l 


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     आप यदि विश्व के सबसे बड़े चिकित्सक को अपना चिकित्सक तो बना लें, किन्तु जब दवा करना हो तब आप अपने मन की ही दवा करें, तो क्या इससे रोग ठीक हो जाएगा ? ठीक यही समस्या रावण के जीवन की हैं। रावण के मन में जब यह प्रश्न आया कि राम मनुष्य हैं अथवा ईश्वर। उस समय उसे गुरु के पास जाकर यह संशय उनके समक्ष रखना चाहिए था, क्योंकि गुरु का वरण ही संशय को दूर करने के लिए किया जाता है । पर रावण सन्देह उत्पन्न होने के बाद शंकर जी के पास नहीं गया। रावण से किसी ने पूछा कि तुम शंकर जी के पास क्यों नहीं जाते ? तो रावण ने कहा कि -- अब क्या दस सिर वाला, पाँच सिर वाले से ही पूछेगा ?

-- तो फिर तुमने गुरु क्यों बनाया ?

-- तो उसने कहा -- भई ! गुरु बनाना चाहिए इसलिए मैंने भी गुरु बना लिया।

     *कुछ लोग गुरु बनाने के लिए ही गुरु बनाते हैं कि बहुत-सी वस्तुओं के साथ गुरु भी होना चाहिए। और गुरु जितना प्रसिद्ध हो उतना ही बढ़िया हैं ऐसा मान कर गुरु बनाते हैं।*

      रावण ने गुरु का वरण किया पर शंकर जी के वचनों पर विश्वास नहीं किया, गुरु की दवा का सेवन नहीं किया, और उसके जीवन में निरन्तर कुपथ्य ही दिखाई दे रहे हैं। इसलिए रावण के जीवन में निरन्तर दोषों की वृद्धि होती गई। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। इसलिए गोस्वामी जी विनय-पत्रिका के पद में कहते हैं कि -- *जस आमय भेषज न कीन्ह तस दोष कहा दिरमानी* -- जैसा रोग था, वैसी यदि दवा नहीं की गई तो फिर बेचारे वैद्य का क्या दोष ? वस्तुत: जब हमारे जीवन में साधन करते भी लाभ न मिल रहा हो, तो हमें साधनों को मिथ्या मानने की आवश्यकता नहीं है। सबसे पहले हमें यह पता लगाना चाहिए कि हमने सही मार्ग का, सही साधन का चुनाव किया है कि नहीं। तथा साधन के लिए जो बातें होनी चाहिए उनका हम ठीक-ठीक पालन कर रहे हैं कि नहीं। अगर दोनों बातों का ध्यान हम रख रहे हैं तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि व्यक्ति को साधना के बाद सफलता न मिले ।

      इन सन्दर्भ में वह व्यंग्यात्मक गाथा आपने अवश्य सुनी होगी जिस में यह बताया गया है कि किसी व्यक्ति ने सोचा कि रात्रि में नौका चलाकर यात्रा करेंगे तो बड़ा आराम रहेगा क्योंकि उस समय धूप नहीं रहेगी इसलिए शीतलता तथा शांति में यात्रा होगी। बेचारा रात्रि में नाव पर बैठा और रातभर नाव खेता रहा । सुबह हुई तो उजाले में देखा कि रात्रि को जहाँ से चले थे वहीं पर हैं।

बड़ा आश्चर्य हुआ उसे, उसने सोचा कि मैंने इतने घण्टे नाव खेई, मुझे तो काफी दूर पर होना चाहिए था, परन्तु यह क्या हुआ ? तो किसी बुद्धिमान व्यक्ति ने बताया कि भलेमानुष ! तुम नाव तो खेते रहे पर लंगर ⚓ तो हटाया ही नही। इ🙏🙏स तरह तो अगर जिन्दगी भर भी नाव खेते रहो फिर भी जहाँ-के-तहाँ ही रहोगे। ठीक यही बात साधन के सम्बन्ध में भी है।

🙏🙏 राधास्वामी 🙏 राधास्वामी 🙏 राधास्वामी🙏🙏

         🚣‍♂️ 🙏

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