Monday, April 5, 2021

सतसंग सुबह RS 06/04

 **राधास्वामी!! 06-04-2021-आज सुडह सतसँग में पढे गये पाठ:-                                        


 (1) चलो री सखी अब आलस छोड।

सुनो अब चढकर घट में घोर।।

-(राधास्वामी डारा मन को तोड। चरन मैं परसे दोउ टर जोड।।) (सारबचन-शब्द-22-पृ।सं.776,777-राजाबरारी ब्राँच-105-उपस्थिति!)                                     

 (2)-गुरु प्यारे के दर्शन करत रहूँ।।टेक।।

 दर्शन कहो चाहे जीव अधारा।

बिन दर्शन अति बिकल रहूँ।।

-(नित प्रति दर्शन देव राधास्वामी। बार बार तुम चरन पडूँ।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-17-पृ.सं.22)                        

सतसँग के बाद:-                                            

 (1) राधास्वामी मूल नाम।।                               

(2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                                 

(3) बढत सतसँग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।                             

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज -

भाग-1- कल से आगे:-

साहबजी महाराज ने फरमाया था कि राधास्वामी दयाल ने इस संगत को संसार में बड़ी से बड़ी सेवाएँ करने के लिए चुन लिया है। और यह भी फरमाया था कि सुपरमैन की नस्ल इसी में से पैदा होगी। यह जो छोटी सी तजवीज परसों पेश की गई थी उसके अनुसार यदि सत्संगी और सत्संगिने शुरु ही से अपने बच्चों को सत्संग के हवाले कर दें और वे सत्संग के प्रबंध में पलें  तो हमको उस उद्देश्य को पूरा करने के लिये बहुत कुछ सहायता मिल सकती है।

 यदि सत्संग के भीतर इस तरह से जन्म लेने के बाद ही बच्चों के पालन पोषण व शिक्षा- दिक्षा का प्रबंध जारी किया गया तो इसका नतीजा यह होगा कि बच्चों को माताओं का  और माताओं को अपने बच्चों  का स्वभावतःसत्संग से ही प्रेम होगा। चूँकि संगत के खर्चे से उनका पालन पोषण व उनकी शिक्षा-दीक्षा होगी इसलिए उनके दिल में यह विचार पैदा होगा कि संगत की सेवा करें और जिस प्रकार से Geometric Progression  में (रेखागणित के नियम अनुसार) अंक एक से दुगना और दुगने चौगुना और चौगुने से आठ गुना एक के बाद दूसरे बढ़ते जाते हैं इसी तरह ऐसे बच्चे जब पालन पोषण पाकर मर्द बनेंगे तो उनकी संतानों में भी स्वदेशानुराग और सत्संग का प्रेम पूर्वोक्त रेखागणित नियमानुसार एक संतान के बाद दूसरी संतान दुगनी, और दुगनी से चौगुनी और  चौगुनी से आठ गुनी होती जावेगी।

 क्रमशः                       

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -

[भगवद् गीता के उपदेश]

- कल से आगे:-

कृपापूर्वक बतलाइये इस भयानक रूप वाले आप कौन हैं?

 मैं आपको नमस्कार करता हूँ । हे विश्वपति मेरे ऊपर दया करें। मुझे अपने आदिस्वरूप का पता दें। आप का यह प्रवर्त अर्थात् धारण किया हुआ स्वरूप मेरी समझ में नहीं आता।                                                

श्री कृष्ण जी ने जवाब में फर्माया (यह जवाब उसी विश्वरूप से फर्माया गया है और उसकी हकीकत पर रोशनी डालता है), हे अर्जुन! मैं काल हूँ। दुनिया का नाश करने वाला हूँ। मनुष्य जाति का नाश करने के लिए दुनिया में मेरा अवतार हुआ है। जितने ये शूरवीर युद्ध के लिए सुसज्जित है तेरे न लड़ने पर भी इनमें से एक भी मृत्यु से न बचेगा।

 इसलिये खड़ा हो और अपने लिए यश प्राप्त कर। दुश्मनों को फतह पा और दौलत से भरे हुए राज को भोग। मैंने इन सब को पहले ही मार डाला है। तुझे सिर्फ दिखलावे के लिए कारण बनना है। क्या द्रोण और भीष्म क्या जयद्रथ और कर्ण, क्या दूसरे शूरवीर, सब के सब मैंने कत्ल कर छोड़े हैं। तू बेखौफ हो कर अपना हाथ उन पर चला और खूब लड़। तू मैदान में अपने बैरियों पर जरूर विजय प्राप्त करेगा।                                                 

संजय कहता है कि कृष्ण महाराज की जबान से ये शब्द सुन कर मुकुटधारी अर्जुन ने हाथ जोड़ और काँपते हुए नमस्कार करके, नीची निगाह किये, हुए डर के मारे लड़खडाती हुई जुबान से अर्ज किया।

【35】

क्रमशः          

                           

  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजू महाराज

 -प्रेम पत्र -कल से आगे:-(4)

- सच्चे परमार्थी को मुनासिब है कि अपने मन और इंद्रियों की चाल की जाँच करता रहे और जब वह नाममुनासिब और गैर-जरूरी और फजूल ख्यालों या कामों में तवज्जह करें, उसी वक्त या जिस कदर जल्दी होश और समझ आवे, उनको रोक कर या तो चरणों की तरफ अपने अंतर में लगावे या सुमिरन और ध्यान करें या पोथी का पाठ करें और नहीं तो जो जरूरी और मुनासिब कार या ख्याल दुनियावी  होवे, उसमें लगावे।

 खुलासा यह कि मन और इन्द्रियों को बाहर की तरफ या अपने अंतर में नीचे की तरफ  बेफायदा बहने से जहाँ तक मुमकिन होंवे रोकता रहे और जब कभी इसका बल पेश न जावे तब चरणों में प्रार्थना करें और अपनी नालायकी पर अफसोस करके आइंदा को हिम्मत बाँधे कि फिर ख्याल या तरंग के उठते ही रोक लगाऊँगा ।

और जब ऐसा मौका होवे, उस वक्त फौरन नाम के सुमिरन या स्वरुप के ध्यान या शब्द के श्रवन में लग जावे। तो वह तरंग, जो बहुत जबर न होगी, हट जावेगी और जो पूरी पूरी न हटा सके, तो भी इस खैंचातानी में उसका जोर बहुत कम हो जावेगा,यानी यह उसको ऊपर की तरफ खींचेगा और वह तरंग नीचे या बाहर की तरफ। जो इसकी ताकत जबर होगी तो वह तरंग दूर हो जावेगी।

और मन अंतर में चरणों में लग जावेगा और जो तरंग जबर हुई,तो नीचे की तरफ बहुत कमजोर होकर जारी होगी। इसी तौर से लडाई करते करते अभ्यासी की ताकत बढती जावेगी और फिर वह हर किस्म की तरंग को उसके उठते ही राधास्वा

मी दयाल की दया से जीत सकेगा।क्रमशः                     

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻*l

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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