Saturday, April 10, 2021

पंचम किला तख्त सुल्तानी –

 पंचम किला तख्त सुल्तानी –


दौर ए वक़्त में ज़ाहिर है कि राधास्वामी मत के नाम पर तमाम जमातें कायम हैं. अगर मत के इतिहास पर गौर किया जाय तो साफ़ तौर पर दिखता है कि राधास्वामी मत के सदर मुकाम ‘स्वामीबाग’ आगरा से मुखालफत ही इन अलग-अलग फिरकों की जड़ में कायम है. नतीजा यह है कि राधास्वामी मत जो प्रेम, भक्ति, दया, इत्तेफाक और सभी मजहबों में समानता के भाव पर आधारित है, ... तो वह भाव वह इत्तेफाक कहीं खो सा गया है. 

‘राधास्वामी मत’ का मूल सिद्धांत ‘मालिक की मौज में राजी’ रहना ही है, फिर भी खुद को राधास्वामी मत का अनुयायी और सत्संगी कहने वाले अधिकतर लोग आपस में ही खुद को दोष-द्रष्टि और छींटाकशी से बचा नहीं पाते, क्यूंकि आज भी उनके दिलों में वह मुखालफत कायम है. तो ज़रूरी हो जाता है कि मत के सदर मुकाम स्वामीबाग से संबन्धित सत्संगी विशेष सावधानी बरतें और खुद को नाकारात्मक सोच से बचाएं ... क्यूंकि कुछ न कुछ असर तो पड़ ही रहा है और हम इससे अनजान भी नहीं. 

हम महाकाल के अवतार क्रष्ण महाराज के उस उसूल पर नहीं चल सकते कि ‘ चाहें जिस भी रास्ते से आओ, आखिर में पहुंचोगे मुझ तक ही’. ‘राधास्वामी मत’ जिसे स्वंम परमपुरुष कुल मालिक दयाल ने प्रगट और कायम किया है, उसमें मुख्तलिफ रास्तों और शाखाओं का ज़िक्र या उपदेश नहीं किया है. यह मुखालफत की फाड़ तो काल ने डाली है. राधास्वामी मत में सिर्फ एक रास्ता और एक ही तरीका बताया गया है, जो कि आज की तारीख में मत के सदर मुकाम स्वामीबाग में ही कायम है और मिल सकता है.

हाँ ! मैं मानता हूँ कि जब क्लास टीचर – प्रिंसपल आफिस में गया होता है, तब बच्चे कुछ मनमानी और शरारतें कर सकते हैं, क्लास में मानीटर भी होता है पर उसके अधिकारों की भी एक सीमा होती है. फिर भी अच्छी बात यह है कि सभी बच्चे कक्षा में ही हैं और स्कूल से बाहर नहीं जाते. धीरे-धीरे जब शरारतें चुक जाती हैं तब फिर किताबें खोल कर बैठ जाते हैं, पर कोई पढ़ाने और समझाने वाला न होने से ठीक से समझ नहीं पाते और तब पूरी शिद्दत से गुरु का आने का इंतज़ार करने लगते हैं.   जैसे-जैसे इंतज़ार बढ़ता जाता है, साथ ही साथ बेकली और बेचैनी भी बढ़ती जाती है. यही विरह की तड़प सतगुरु को अधिकारी जीवों तक ले आती है.

आज हम विरह से व्याकुल हैं प्रभु .....


करत हूँ पुकार आज सुनिए गुहार,

मैं   दीन   हूँ   अधीन,

तुम  दाता   दयार   हो.  -   (अगम गीत)

अरजी करत बहुत दिन बीते .

अब तो धरा मेहर का हाथ..

बिन दर्शन अब चैन न आवे.

और कहीं मन लगे न लगात.. -  (सुरतिया मांग रही)

सप्रेम राधास्वामी 

राधास्वामी 🙏🙏

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏✌️🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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