Saturday, April 3, 2021

सतसंग Rs शाम 03/04

*राधास्वामी!! 03-04-2021-आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-       

                         

   (1) तडपत रही बेहाल, दरस बिन मन नहिं माने। कासे कहूँ बिथाय, दरद मेरा कोइ नहिं जाने।।-(प्रेमबानी-3-शब्द-3-पृ.सं.326-डेढगाँव ब्राँच-118 उपस्तिथी।)                                               

(2) सुरत रँगीली सतगुरु प्यारी। लाई आरती धार।।टेक।। उमँग उमँग कर सेवा करती। धर गुरच चरनन प्यार।।-(राधास्वामी दया करी अब। लीन्हा गोद बिठार।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-13-पृ.सं.150,15 )      

                                                   

(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।     

 सतसँग के बाद:-                                              

(1) राधास्वामी मूल नाम।।                                 

 (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।।                                                  

   (3) बढत सतसँग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।                                        

  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻



राधास्वामी!!          03-04- 2021-

आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-

कल से आगे:-( 198)- का भाग


:- अभी यह सिद्ध हुआ था कि रचना के 3 बड़े भाग हैं। इसलिए मनुष्य शरीर में भी तीन भाग हैं- निर्मल चेतन देश के समान आत्मिक शरीर, निर्मल माया देश के समान मानसिक शरीर, और मलिन माया देश के समान स्थूल (हाड मास चाम का)।

इस तुलना से मनुष्य शरीर और रचना में पारस्परिक समानता की और भी पुष्टि हो गई।  और यह आयुक्त न होगा कि जैसे सूर्य के किरण की परीक्षा करके सूर्य का तथात्व और कुएँ से पानी का एक लोटा लेकर परीक्षा करने से कुएँ के कुल पानी का हाल-चाल जाँच लिया जाता है, मनुष्य -सत्ता का निरीक्षण करके रचना का तथात्व ज्ञात का कर लिया जाय।।

                         

(ग)- स्थूल शरीर के निरिक्षण से ज्ञात होता है कि इसके मध्य में ६ चक्र या रग-मण्डल के केन्द् (Nervous Centers) है। हृदय कमल का प्रमाण तो ऊपर के उपनिषद्-वाक्य में आ गया । 'ब्राह्मण की गौ' पुस्तक के पृष्ठ 87 पर लिखा है -"वाणी निम्न चार कदमों(कर्मों) द्वारा अपने स्थूल रूप में पहुंचती है। अतएव 'चतुष्पदा' कहलाती है । इसके प्रत्येक पाद को ऋषियों ने भिन्न भिन्न नाम से पुकारा हैं।

 मूलाधार में रहने वाली वाणी 'परा' कहलाती है।••••••••• एक कदम आगे चलकर••••••इसे पश्यंति कहते हैं।इसका स्थान नाभि है। तीसरे क्रम में हृदय में पहुंचती है" इत्यादि । यह दो और स्थानों का प्रमाण मिल गया । पातंजल योग- दर्शन के विभूति पाद में आया है- कंठ के कूप में संयम करने से भूख और प्यास की निवृत्ति होती है।

( सूत्र- 31) मूर्द्धा की ज्योति  में संयम करने से जो का दर्शन होता है।( सूत्र 33 ) अब मूलाधार, नाभि,हृदय,कंठ और मुर्द्धि पाँच चक्रो के नाम मिल गये।संत मत में छः चक्र बतलाये जातज है। मूलाधार, इंद्रघ,नाभि,हँदय,कंठ और आज्ञाचक्र।क्रमशः.                                                   

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻*                              

  *यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा-

परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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