राधास्वामी! / 31-10-2021-आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-
गुरुमुख सुरत प्रेम भरपूरी ।
सतगुरु चरनन सदा हज़री ॥१॥
बिरह अनुराग की नित नई धारन ।
दृढ़ परतीत और प्रीति सँवारन ॥२॥ तन मन धन सब सतगुरु अरपन । करम भरम सब दूर बिडारन ॥३॥
गुरु सेवा हित चित से करना ।
सुरत दृष्टि दोउ तिल में भरना ॥४॥
ऐसा जोग मेहर से पाऊँ ।
राधास्वामी पै बलि बलि जाऊँ ॥५॥
दीन अधीन रहूँ गुरु चरना ।
उमँग सहित धारूँ गुरु सरना ॥६॥
सतसँग महिमा कही न जाई ।
भेद गुप्त सब दिया लखाई ॥७॥
राधास्वामी मत है अति कर गहिरा । राधास्वामी चरनन जीव निबेड़ा ॥८॥ राधास्वामी देस ऊँच से ऊँचा ।
संत बिना कोई जहाँ न पहुँचा ॥९॥
बडभागी जो सतसँग पावे ।
कर परतीत सरन में धावें ॥१०॥
●●●●कल से आगे●●●●
काल करम की फाँसी टूटे।
चौरासी का भरमन छूटे।।११।।
राधास्वामी दया भाग मेरा जागा ।
चित्त चरन में सहजहि लागा ॥१२॥
दया से लिया अपनाई ।
क्योंकर महिमा राधास्वामी गाई ॥१३॥
हिय में उमँग उठी अब भारी ।
आरत सतगुरु करूँ सम्हारी ॥१४॥
बिरह प्रेम का थाल सजाऊँ ।
धुन झनकार जोत जगवाऊँ ॥१५॥
उमँग उमँग कर आरत गाऊँ ।
दृष्टि जोड़ मन सुरत चढ़ाऊँ ॥१६॥
सहसकँवल होय त्रिकुटी धाऊँ । सुन के परे गुफा दरसाऊँ ॥१७॥
सत्तलोक जाय बीन बजाऊँ ।
अलख अगम के पार चढ़ाऊँ ॥१८॥
राधास्वामी प्यारे के दरशन पाऊँ ।
उन चरनन में जाय समाऊँ।।१९।। ( -1-शब्द-46-पृ.सं.203,204,205)
[10/31, 15:56] +91 97176 60451: *रा.धास्वामी!* **आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला पहला पाठ:- गुरु प्यारे के नैन रँगीले , मेरा मन हर लीन ॥ टेक ॥
अद्भुत छबि निरखत नर नारी ।
बचन सुनत हुए दीन ।
मन धार यक़ीन ॥१॥*
*सुन्दर रूप बसा नैनन में ।
दरस बिना तड़पत ग़मगीन |
जस जल बिन मीन ॥२॥ जब गुरु दरशन मिला भाग से ।
मगन हुई रस पियत अमी।
गुरु किरपा चीन ॥३॥
सतसँग कर गुरु सेवा लागी ।
निरमल हुई मेरी सुरत मलीन ।
हुऐ अघ सब छीन ॥४॥ शब्द भेद दे सुरत चढ़ाई ।
राधास्वामी मेहर अनोखी कीन ।
हुई चरनन लीन ॥५॥
(प्रेमबानी-3-शब्द-2-पृ.सं.67,68) (लुधियाना ब्राँच-पंजाब)**
🌹राधास्वामी🌹