Saturday, October 16, 2021

स्वामीजी महाराज ने फरमाया है कि

 

"हम हर एक के अंग संग रहेंगे और सतसंग की दिन दूनी तरक्की होगी"


फिर ऐसा नहीं हो सकता है कि राधास्वामी मत में कोई उसको चलाने वाला न रहे। यह जरूर है कि यह मत बिना अनुभवी पुरुष के नहीं चल सकता है, लेकिन यह खयाल करना मुनासिब नहीं कि किसी वक़्त कोई अनुभवी पुरुष न रहेगा। कुल्ल मालिक राधास्वामी दयाल ने स्वयं आकर जगत उद्धार का वचन दिया है तो ख्वाह संत सतगुरु हों, ख्वाह साध गुरु हों, या फिर किसी प्रेमी भाई को इस काम के लायक बना कर और गुप्त तौर से मददगार बन कर बराबर चलावेंगे, यह मत गुम नहीं हो जावेगा। यह कहना कि अब कोई इस लायक नहीं रहा है, पिछले संतों को लाज लगाना है। क्या वह इतने समर्थ नहीं थे कि जो एक भी उनके बाद इस मत को चलाने वाला बाकी न रहे। वह किसी को अपने बाद के लिए, ऐसा बनाकर नहीं छोड़ गए। हैरत है ऐसे खयाल करने वालों पर। और यह खयाल करना भी गलती है कि उनके गुप्त होने के बाद फौरन ही दूसरा प्रकट हो, जैसा कि एक बादशाह के मरने के बाद दूसरा फौरन नामजद किया जाता है। अगर इस कदर जल्द प्रकट होने की मौज हो तो गुप्त होने की क्या जरूरत है ? क्या वे इस देह के कायम रखने के लिए समर्थ नहीं थे ? कोई तो मसलहत थी कि खुद देह का त्याग किया और जब तक वक़्त मुनासिब प्रकट कार्रवाई करने के लिए नहीं आवेगा, जरूर गुप्त रहेंगे और गुप्त तौर से मददगार रहकर किसी न किसी के जरिए से कार्रवाई बराबर जारी रक्खेंगे। राधास्वामी मत अनुभवी पुरुषों से खाली कभी नहीं रहेगा।

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