Sunday, October 17, 2021

आरती विशेष पाठ

 **राधास्वामी!! - / 17-10-2021- (भंडारा-परम गुरु महाराज साहब)-आज सुबह सतसंग (आरती) में पढे गये पाठ:-                                                    

 (1) गुरु आरत मैं करने आई। दुक्ख भरम सब दूर नसाई।।-

(राधास्वामी मगन होय कर। दें परशादी लेउँ गोद भर।।)

 (सारबचन-शब्द-4-पृ.सं.170,171,172-

अधिकतम उपस्थिति- करनाल ब्राँच (हरियाणा)-@ 2:51 am दर्ज-151)                                                                    

(2) गुरु सरन आज मैं पाई।

 मेरे आनँद अधिक बधाई।।-

(गुरु चरध पकड़ मेरे भाई।

 कयों भरमैं नर तन पाई।।)

(सारबचन-शब्द-14-पृ.सं.197)                              

 (3) बचन-हिंदी प्रेमप्रचारक विशेषांक।                                                                                                                                                 

सतसंग के बाद:-                                        

  (1)-राधास्वामी मूल नाम।                                            

 (2)-राधास्वामी सुमिरन ध्यान भजन से जनम सुफल कर ले।।                                    

  स्पेशल पाठ:-                                                   

(1) बार बार कर जोर कर,

सविनय करूँ पुकार।

साध संग मोहिं देव नित,

 परम गुरु दातार।।

(अमृत बचन/ रत्नाञ्जली)

-[रानी साहिब एवं पार्टी]                                              

(2) अचरज आरत गुरु की धारूँ। उमँग नई हिये छाय रही री ।।

(प्रेमबानी-4-शब्द-9-पृ.सं.36,37)                                                                                                                                                                                             

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

**प्रेम प्रचारक] ( दैनिक ) -राधास्वामी सम्वत् 204 अर्ध शतक 100 सोमवार अक्टूबर 18 , 2021 अंक 47:-                                 

कृपासिंधु समरथ पुरुष ,

 आदि अनादि अपार

राधास्वामी परम पितु ,

मैं तुम सदा अधार

दीन अधीन अनाथ ,

 हाथ गहा तुम आन कर

 अब राखो नित साथ ,

 दीनदयाल कृपानिधि

 दया करो मेरे साइयाँ ,

 देव प्रेम की दात

दुःख सुख कछु ब्यापै नहीं ,

छूटे सब उत्पात

(अमृत बचन जामिया)

                                                                                                


आप तकलीफ़ उठा कर अब राधास्वामी दयाल अवतार धर कर दया फ़रमा रहे हैं ।

 सब जीवों को चाहिए कि सब अटक भटक छोड़ कर हुज़ूर राधास्वामी दयाल की शरण दृढ़ करें । राधास्वामी दयाल ने ऐसी दया की कि अचेत रूहों को चैतन्य किया । यहाँ का आनन्द बिलास बख़्शा । फिर सबके सत्तलोक पहुँचने की सूरत पैदा कर दी ।

 निहायत दर्जे की दया की जिसका कोई वार पार नहीं है ।

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मालिक की महिमा क्या की जावे । जीवों को चेतन करके आनन्द बख़्शा और आप आनन्द बिलास किया । मालिक की महिमा का शुक्र अदा नहीं हो सकता ।

अनन्त और अपार की क्या पहचान है ? सब जीवों पर दया कर रहा है । ( बचन भाग 1 से परम गुरु महाराज साहब के बचन , ब.न. 135 का अंश )**

**परम गुरु महाराज साहब के बचन संस्कार मिस्ल ( समान ) दरख़्त के बीज के है । जब वह बीज पानी और मिट्टी के साथ मिला और कुल्ला फूटा और दरख़्त उगना शुरू हुआ , तो उसकी परवरिश के लिये माली की ज़रूरत है ताकि वह हर तरफ़ से उसकी निगहदाश्त करे और परवरिश करे , यानी उसको मुनासिब तौर पर सींचे और गाय , बैल व दूसरे जानवरों से उस नाज़ुक पौधे को बचावे और उसके पास जो काँटे वग़ैरह हैं , उनको दूर करे और नीज़ कभी कभी डालियों को क़लम करता ( छाँटता ) रहे । इसी तरह संत सतगुरु संस्कारी जीवों को सतसंग रूपी खेत में जमा करके उनकी निगहदाश्त और परवरिश करते हैं , यानी काल कर्म से उसको बचाते हैं और जो बिकारी अंग उनमें मौजूद हैं , उनको साफ़ करते हैं । और कभी कभी रोग - सोग वग़ैरह लगाकर उनके अंदरूनी बिकारों को छाँटते हैं । संस्कार का बीज भी जीवों के हृदय में संत ही डालते हैं । तो शुरू से आख़िर तक वही कर्त्ता धर्त्ता हैं , यानी जीवों को संस्कारी भी वही बनाते हैं और मुनासिब और ज़रूरी भक्ती वग़ैरह करा कर धुर धाम में पहुँचाते हैं । और ज़ाहिरा यह मालूम होता है कि वह काम जीव ने किया मगर होता सब कुछ उनके हुक्म और मौज से ही है । जैसे कि दरख़्त के बीज में ताक़त और शक्ति उगने और बढ़ने की धरी है , लेकिन बग़ैर मदद और निगहदाश्त माली के वह परवरिश नहीं पा सकता । ( बचन भाग 1 से ब . न . 93 )**


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