Monday, December 20, 2010

आत्मबोध : भारत की 70 करोड़ तरुण शक्ति कहाँ खो गई


आत्मबोध : भारत की 70 करोड़ तरुण शक्ति कहाँ खो गई?




70 करोड़ युवाशक्ति से सुसज्जित देश क्यों अपंग है? क्यों गरीब है? भारत की तरुणाई क्यों माँ भारती का दर्द नहीं समझती? आईए, तुम्हें इसका रहस्य समझाएं। ध्यान दीजिए जब से भारत में 1857 का महासंग्राम हुआ, तबसे भारत की शक्ति को नष्ट करने के लिए अंग्रेज़ों ने ऐसी कूटनीति का निर्माण किया कि जिसे आज तक देश का प्रबुद्ध वर्ग नहीं समझ पा रहा है। इस समय हम आपको यह बताना चाहते हैं कि किस षड़यन्त्र के अन्तर्गत हम उनके गुलाम बनने को मज़बूर हैं।
 जिस समय राष्टभक्तों ने स्वतन्त्रता की लड़ाई लड़ी, उस समय यह नारा काफी गुंजायमान हुआ ‘अंग्रेज़ो भारत छोड़ो’। उस समय जो अंग्रेज़ी शासक थे, वे चले गए तो क्या भारत आजाद हो गया? क्या अंग्रेज़ो ने अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए व्यवस्था का निर्माण नहीं किया, जिससे उनका साम्राज्यवाद अनवरत चलता रहे? यदि किया, तो क्या स्वतन्त्र भारत ने उस व्यवस्था को उखाड़ा? उस व्यवस्था को उखाड़ने के लिए भारत के राजनैतिक नेतृत्व ने क्या किया? आप सब जानते हैं कि उसने कुछ नहीं किया। सब कुछ उसी र्रे पर चल रहा है, जिसकी स्थापना अंग्रेजी सत्ता ने की थी। अंग्रेज़ चले गए, लेकिन अंग्रेज़ियत कायम रही। वह अंग्रेज़ियत हम भारतवासियों को अंग्रेज़ बना रही है, एवं आज भारत कहीं दिखता नहीं। ब्रिटिश सत्ता का नारा है ’king is dead, long live THE KING’ इसका अर्थ कि राजा मर गया, लेकिन उसकी सल्तनत कायम रहे। भारत के साथ यही हुआ।
आप बताईए, अंग्रेज़ नाम के व्यक्तियों के भारत से चले जाने से हमने भारत को आज़ाद कैसे मान लिया? भारत तो तब आज़ाद हो, यदि अंग्रेजी सल्तनत समाप्त हो जाए। इतनी सी बात हमें समझ नहीं आती। आईए, अंग्रेज़ों की कूटनीति समझें। आप बताएं कि भारत को बर्बाद करने के लिए अंग्रेज़ो ने किस ब्रहास्त्र का प्रयोग किया? यदि आप नहीं जानते तो हम बता दें कि भारत को अधिकार में लेने के लिए उन्होंने सन 1600 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी का निर्माण किया। इसके द्वारा भारत की आर्थिक री़ को तोड़ दिया गया। इसके लिए सबसे बड़ी कुदाल बनी मैकाले द्वारा निर्मित शिक्षा पद्धति। इसके द्वारा शिक्षा से स्वालम्बन को नष्ट करके भारत के स्वाभिमान को समाप्त कर दिया गया। आजादी के बाद ईस्ट इण्डिया कं कहाँ गई? भारतीय शिक्षा जस की तस है। इन दोनों का गठजोड़ किस प्रकार भारत की युवा पी़ी को मुर्दा बना रहा है, हम आपको समझाते हैं।
 सबसे पहले ईस्ट इण्डिया कं का रूपान्तरण समझें। ईस्ट इण्डिया कं पहले एक थी, अब अनेक है। कैसे? जितनी भी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ हैं, सब की जननी ईस्ट इण्डिया कं है। आज की शिक्षा पद्धति की योग्यता का लक्ष्य बहुराष्टीय कं की नौकरी करना है। इसके लिए कैसे छल का सहारा लिया गया, आप इसे समझें। कैसे मैकाले की शिक्षा पद्धति का शिकंजा हम पर कसता चला गया। जब से पब्लिक स्कूलों का दौर आया, शिक्षक की गरिमा का विघटन शुरु हो गया। आज पब्लिक स्कूलों में कम से कम तनख्वाह पाने वाले शिक्षक हैं क्योंकि पिंसीपल की दादागीरी चलती है। आज से 20 वर्ष के शिक्षक एवं आज के शिक्षक पर ध्यान दें तो सब समझ आ जाएगा। यदि बच्चे के माता पिता पॄढे लिखे नहीं हैं तो पब्लिक स्कूल में उनका बच्चा दीनहीन ही कहलाएगा। जब सरकारी स्कूल थे, तब शिक्षक की योग्यता एवं समर्पण अच्छा था एवं अनपॄ माता पिता के बच्चे भी पॄ जाते थे। सरकारी एवं पब्लिक स्कूलों ने समाज में अमीर गरीब के भेद को बहुत गहरा कर दिया है। यह तो सामान्य स्थिति की चर्चा पर हम बात कर रहे हैं। अब छल को समझें। पब्लिक स्कूलों के जाल ने धीरे धीरे पॄाई को इतना सीमित कर दिया है कि दसवीं के बाद विद्यार्थी मुख्यतः मैडीकल एवं नॉन मैडीकल का चुनाव करता है। इन दो क्षेत्र के विषयों पर जम कर ट्यूशन होती है। छात्रवर्ग का करियर क्या है? बहुराष्टीय कं की नौकरी। नॉन मैडीकल का मेधावी छात्र आई आई टी, आई आई एम, करता है। उच्च स्तरीय सरकारी कालेज में इन्जीनीयरिंग करता है। सामान्य वर्ग का छात्र बीटेक करता है। बीटेक की पॄाई उच्च उद्योगपतियों के हाथ में है। पैसे की चमक में चमकती इमारतें एवं उनकी फैक्लटी का स्तर अति घटिया। शिक्षा संस्थान पैसा कमाने के अड्डे बन गए हैं। मोटी मोटी फीस देने के लिए माँबाप बैंक से लोन लेते हैं एवं कर्ज में डूब जाते हैं। छात्र जब डिग्री लेता है, तो उसके दिमाग में केवल कम्पनियाँ घुसी रहती हैं, कि उनका ‘प्लेसमेंट’ कहाँ हों, उन्हें क्या ‘पैकेज’ मिलेगा। यही हाल मैडीकल के छात्रों का है। आज डॉ बनाने की बोली लग गई है। उनकी बोली करोड़ों में लगती है। यह डाक्टर मरीजों को ठीक करेंगें या मारेंगे, आप जानते हैं।
इन सब तथ्यों से आप यह समझिए कि भारतीय मेधा एवं युवाशक्ति किस प्रकार ईस्ट इण्डिया कं के विराटतत्व की रखैल बन गई है। यह ‘रखैल’ कैसे भारत को समझेगी। इस खेल में बाजारतन्त्र के विभिन्न वर्ग मालामाल हैं एवं भारत उनका गुलाम बन चुका है। इसका भेद कोई नहीं समझ पा रहा। क्या भारत के किसी प्रबुद्ध वर्ग ने इस छल का भेद खोला इस व्यवस्था की चीरफाड़ की, जैसी हमने की है।
अब आप बताईए कौन माई का लाल माँ भारती की सेवा के लिए आगे आएगा? कौन समझेगा भारत को? हे भारत के युवाओ! तुम्हें माँ भारती की रक्षा के लिए अपने करियर का दावँ खेलना होगा। तुम्हारा करियर है बहुराष्टीय कं की गुलामी। तुम्हे इस ॔॔गुलामी॔॔ को लात मारनी होगी। क्या तुम यह साहस कर पाओगे? तुम्हारे माता पिता कर्ज में डूबें हैं, वे कर्ज तभी उतारेंगे जब तुम बहुराष्ट्रीय कं के नौकर बन कर सुबह 8बजे से रात 10 बजे तक गधे की तरह काम करोगे। तुम्हारा अपना जीवन कुछ नहीं होगा क्योंकि तुम्हें जीवन जीने के लिए समय ही नहीं है। तुम्हें अपने परिवार से सम्बन्ध समाप्त करना होगा। चुनिए किसे चुनते हो? अपने माता पिता को कर्ज से उऋण होने को अथवा अपने जीवन को। तुम्हारे ‘जीवन’ में माँ भारती की सुरक्षा है। क्या अपने माँ बाप को समझा पाओगे कि तुमने यह कदम उनके विद्रोह के लिए नहीं, पूरे जीवन उनकी सुरक्षा एवं सेवा करने के लिए उठाया है। तुम्हें माँ भारती को ‘अंग्रेज़ियत’ से मुक्त करना है। अभी हम गुलाम हैं। यदि हमने ऐसा नहीं किया तो भारत की भावी पी़ी का भविष्य अन्धकारमय है।
हे भारत के युवाओ! तोड़ डालिए अंग्रेजों के इस चक्रव्यूह को। हम तुमसे त्याग नहीं चाहते, तुम्हारा जीवन चाहते हैं। तुम्हारी खुशियाँ चाहते हैं। अपने भारत का निर्माण स्वयं कीजिए। क्यों हमने अंग्रेज़ों को अधिकार दिया कि वे अपनी ‘सल्तनत’ हम पर थोपें? क्योंकि हमें किसी ने इस छल को समझाया नहीं।
रेणु सूद

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