Tuesday, December 8, 2020

दयालबाग़ सतसंग / 08/12

राधास्वामी!! 08-12-2020- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-                                   

(1) शब्द बिना सारा जग अंधा। काटे कौन मोह का फंदा।।-(शब्द भेद तुम गुरु से पाओ। शब्द माहिं फिर जाय समाओ।।) (सारबचन-शब्द-5वाँ-पृ.सं।217-218)                                                  

(2) अधर चढ परख शब्द की धार।।टेक।। गुरु दयाल तोहि मरम लखावें। बचध सुनो उन हिये धर प्यार।।-(अलख अगम के पार निशाना। राधास्वामी प्यारे का कर दीदार।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-21-पृ.सं.362)                                                 

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


राधास्वामी!! 08/12 को  आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                   

(1) चेतोरे जग काम न आवे।।टेक।। यह जग चार दिनों का सुपना। कोई थिर न रहावे।।-(सतगुरु दयि काज हुआ पूरा। राधास्वामी चरन समखवे।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-1-भाग-५,पृ.सं.47,48)                                                 

  (2) बाहर के साज काज नहिं सरिहै।।टेक।।बाहर के साज सजो क्या जोगिया। भोगन सँग जब लागी नजर है।।-(राधास्वामी मेहर यह कीट उबारा। कहत बने नहिं उनका शुकर है।।) (प्रेमबिलास-शब्द-105-पृ.सं.151,152)                                                    

(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।        

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


 शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-


कल से आगे (78) का शेष भाग:

- और समय समर पर निम्नांकित पद्दरचना की रटना टरती है:-                        

मन्नियम् वल्लाह याराँ मन्नियम्। मन्नियम् यारस्त अजसर ता कदम।।                      

अर्थात:- हे मित्रों! ईश्वर की शपथ, अब मैं नहीं हूँ, मैं नहीं हूँ, मैं नहीं हूँ। सिर से पैर तक अब सतगुरु ही है। दिन-रात उसके अंतर में उनके पवित्र नाम का स्मरण होता रहता है।

 और उसे प्रतिक्षण उनके पवित्र विशाल स्वरूप का दर्शन मिलता है।  और बारंबार उसके अंतर के अंतर उत्कंठा उठती है कि सतगुरु के दिव्य स्वरूप का स्पर्श करें, और जोकि इसके लिए अत्यंत पवित्रता की आवश्यकता है इसलिए उसकी यह अभिलाषा एकाएक पूरी नहीं होती और वह दिनरात इस अंतरी दात के लिए तड़पता है।

इसी को अनन्यभक्ति कहते हैं। सहज में संसार का मोह छूट गया। सहज में संसार की आशा नाश हो गई।  सहज में सब बंधन दूर हो गये। सहज में मन के अंग चूर हो गए्ये। सूरत और मन की प्रवृत्ति अंतर्मुख हो गई और परमार्थ के सभी विघ्नों से मुक्ति मिल गई।

राधास्वामी- मत ऐसी अनन्यभक्ति ही की शिक्षा देता है और ऐसी अनन्यभक्ति ही की प्राप्ति के लिए सतगुरु- सेवा और साध-संग करने का अनुरोध किया गया है। परंतु यह प्रकट है कि जो लोग सतगुरु भक्ति के नाम से घबराते हैं उनसे अनन्य भक्ति बन पडनी असंभव है।

श्रीमद्भागवद्गीता में एक स्थान पर कृष्ण महाराज का वचन है- " जो लोग निराकार में मन लगाते हैं उनको अधिक कठिनाइयाँ झेलनी पड़ती है क्योंकि देहधारी के लिए निराकार- उपासना के मार्ग पर चलना कठिन है। इसकी अपेक्षा जो लोग सारे कर्मों को मेरे अर्पण करके मुझमें मन जोड़े हुए और सर्वांग से मेरा ही ध्यान करते हुए मेरी पूजा करते हैं उनको मैं इस जन्म मरण के सागर से शीघ्र ही निकाल लेता हूँ क्योंकि उनका चित्त मुझ में लगा है" ( अध्याय १२, श्लोक ५,६,७)   

                                                

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

 यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा

- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**


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